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Gustakhi Maaf: धर्मांतरण और वजह दोनों आमने सामने

-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ के दुर्ग में भारी बवाल चल रहा है. यहां नारायणपुर के एक युवक को दो ननों के साथ हिरासत में लिया गया है. उनपर नारायणपुर से तीन युवतियों को बहला-फुसलाकर भगाने की कोशिश का आरोप है. आरोप यह भी है कि नन इन युवितयों का धर्म परिवर्तन कराने वाली थीं. ननों के बचाव में देशभर से आवाजें उठने लगी हैं. केरल के सांसद विधायक एवं अन्य समर्थक भी दुर्ग पहुंच चुके हैं. उधर संसद में भी इस मामले की गूंज सुनाई दे रही है. युवतियों के परिजनों के हवाले से खबर है कि युवतियां रोजगार के लिए इन ननों के साथ जा रही थीं. हालांकि उन्हें ठीक-ठीक नहीं पता कि यह रोजगार किस प्रकार का होने वाला है. उन्हें बताया गया था कि इन युवतियों को नर्सिंग की ट्रेनिंग दी जाएगी. सूचना है कि ओरछा से बाहर आने वाली ये पहली युवतियां नहीं हैं. इससे पहले भी उनके गांव की लड़कियां इसी तरह शहर जाती रही हैं. हालांकि इसका विस्तृत ब्यौरा अभी नहीं मिल पाया है. दरअसल, पिछले कुछ समय से बस्तर अंचल में मिशनरियों का कामकाज बेहद प्रभावित हुआ है. मिशनरियों को हतोत्साहित करने के लिए चर्च तोड़े गए, प्रार्थना सभाएं भंग की गईं. कुछ गांवों ने ईसाइयों को दफनाने के लिए जमीन तक देने से इंकार कर दिया. इसलिए मिशनरियों द्वारा पहले जो प्रशिक्षण युवाओं को स्थानीय तौर पर ही उपलब्ध करा दिया जाता था, वह अब सेफ नहीं रहा. पर समस्याएं अपनी जगह हैं. वनग्रामों में गरीबी अपने चरम पर है. सरकारी योजनाओं का लाभ यहां आज भी नहीं पहुंच पा रहा है. सरकारें आती रही हैं, जाती रही हैं. योजनाएं बनती रही हैं, कागजों पर क्रियान्वयन भी होता रहा है. पर इनके जीवन में कोई सकारात्मक परिवर्तन आना अभी शेष है. इसलिए यहां के युवा रोजगार और रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण के लिए किसी का भी हाथ थाम सकते हैं. ईसाई मिशनरियां ऐसे परिवारों के लिए वरदान साबित होती रही हैं. जहां तक नर्सिंग प्रशिक्षण का सवाल है तो उसमें प्रवेश के लिए विज्ञान विषय के साथ 12वीं उत्तीर्ण होना जरूरी होता है. इसके साथ ही नर्सिंग की प्रवेश परीक्षा भी उत्तीर्ण करनी पड़ती है और अच्छे रैंक भी लाने होते हैं. पर रोगियों, विशेषकर वृद्धों की सेवा के लिए एक और क्षेत्र है जिसका अभी अधिक प्रचार प्रसार नहीं हुआ है. ऐसे लोगों को बेड साइड अटेंडेंट कहा जाता है. इन्हें भी प्रशिक्षण दिया जाता है पर इसमें श्रम अधिक होता है. रोगी को उठाना, बैठाना, चलाना, प्रातः क्रिया करवाना जैसे कार्यों के लिए इन्हें प्रशिक्षित किया जाता है. इन्हें अस्पतालों में तो रोजगार मिलता ही है, इनकी जरूरत घर पर रहे मरीजों को भी पड़ती है. भिलाई में होम नर्सिंग अभी शैशवावस्था में है पर इस सेवा की एजेंसियां इसके लिए प्रति नर्स प्रति माह 18 हजार रुपए चार्ज करती हैं. अगर ननों का उद्देश्य यही था तो नाराजगी की कोई वजह नहीं है.

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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