स्वच्छता सर्वेक्षण 2025 में इंदौर, सूरत और नवी मुंबई जैसे 15 शहरों को ‘स्वच्छता सुपर लीग’ में रखा गया है। पहले इसमें दो साल टॉप-3 में रहे शहर शामिल होते थे, अब अवधि बढ़ाकर तीन साल कर दी गई है। इस लीग में शामिल शहरों की रैंकिंग नहीं होती, लेकिन इन्हें 12,500 अंकों की स्कीम के तहत अंक मिलेंगे। इससे अन्य शहरों को टॉप रैंक पाने का ज्यादा मौका मिलेगा।
सर्वे कमेटी में शामिल सूत्रों का कहना है कि स्वच्छता में इस बार अहमदाबाद पहले नंबर पर रह सकता है। वहीं, भोपाल दूसरा और लखनऊ तीसरा स्थान हासिल कर सकता है। हालांकि, अभी तक इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।
नई दिल्ली में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु 17 जुलाई को स्वच्छ सर्वेक्षण पुरस्कार देंगी। आधिकारिक घोषणा वहीं होगी।
इंदौर, सूरत जैसे 15 शहर ‘सुपर स्वच्छता लीग’ में
पिछले साल (2024) ही स्वच्छ सुपर लीग नाम की नई श्रेणी जोड़ी गई थी। इसमें दो साल से टॉप-3 में आने वाले शहरों को लिया गया था, लेकिन एक दिन पहले ही इसमें बदलाव कर अवधि 3 साल कर दी गई। पिछली बार लीग में सिर्फ 12 शहर थे, अब 15 हो गए हैं।
इंदौर लगातार सात बार देश का नंबर-1 स्वच्छ शहर बन चुका है, लेकिन इस बार सूरत और नवी मुंबई के साथ रैंकिंग से बाहर रहेगा, क्योंकि स्वच्छता सुपर लीग में शामिल शहरों की रैंकिंग नहीं की जाती।
लीग में वही शहर शामिल होते हैं, जो पिछले तीन वर्षों में टॉप-3 में रहे हैं। भले ही स्वच्छता में स्वच्छ सुपर लीग अलग श्रेणी बना दी गई है, लेकिन देश के सभी शहरों को सफाई व्यवस्था के आधार पर 12500 में से अंक दिए जाएंगे।
दरअसल, हर साल अलग-अलग कैटेगरी (50 हजार से ज्यादा और 10 लाख से अधिक आबादी) में टॉप करने वाले कुछ शहर लगातार टॉप-3 में बने हुए थे। इससे अन्य शहरों के लिए मुकाबले की जगह सीमित रह जाती थी।
मध्य प्रदेश के 5 शहरों को भी अवॉर्ड मिलेगा, 3 शहर सुपरलीग में
भोपाल, देवास और शाहगंज प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड की दौड़ में हैं। जबलपुर को मिनिस्ट्रीयल कैटेगरी में और ग्वालियर को स्टेट लेवल अवॉर्ड के लिए आमंत्रण मिला है।
वहीं, इंदौर, उज्जैन और बुदनी सुपरलीग में है। उज्जैन सीएम मोहन यादव का गृह जिला है, जबकि बुदनी पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान का क्षेत्र रहा है।
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इंदौर के सफाई में आगे रहने की कहानी: 2016 तक कचरा सड़क पर फेंकते, अब उसी से बनती है CNG
इंदौर शहर को इतना साफ बनाना बड़ी चुनौती थी। सबसे पहली चुनौती थी, इधर-उधर कचरा फेंकने की आदत। ये एक तरह से लोगों की आदत या स्वभाव में था। कई सफाई कर्मचारी घर बैठे पगार लेते थे। इन तमाम मुश्किलों को पॉइंटआउट कर डोर टू डोर कचरा कलेक्शन और झाड़ू लगवाने का खाका तैयार किया गया। जिसे अमल में लाया