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Gustakhi Maaf: लोग क्या समझते हैं यह ज्यादा महत्वपूर्ण

-दीपक रंजन दास
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ 26 अगस्त से अपना शताब्दी समारोह मनाने जा रहा. संघ ने हमेशा एक ऐसे समाज की रचना करने की कोशिश की है जो एक साथ, एकजुट होकर, सामाजिक चेतना के साथ आगे बढ़े. जो महत्वपूर्ण मुद्दों पर संजीदगी से विमर्श करे और देश को सही दिशा दिखा सके. लोगों को एकजुट करने के लिए और उन्हें सकारात्मकता से जोड़ने के लिए संघ कई प्रकल्प संचालित करता है. इसमें सेवा कार्य भी शामिल है. संघ ने आपदाकाल में भी अपनी इस एकजुट शक्ति का प्रमाण दिया है. संघ में प्रबुद्ध विचारशील लोगों की भी अच्छी खासी संख्या है. संघ प्रमुख समय-समय पर अपने वक्तव्यों से समाज को नई दिशा देने की कोशिश भी करते हैं. पर महत्वपूर्ण यह नहीं है कि संघ या संघ प्रमुख क्या बोलते हैं. इससे भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि लोग क्या समझते हैं. जिस तरह शादी की शानदार पार्टियों में स्वागत करने वालों से लेकर बाउंसर तक की जरूरत पड़ती है उसी तरह राजनीति में प्रवेश करने वालों को भी माहौल बनाने वालों की जरूरत पड़ती है. और जो ये माहौल बनाते हैं, कभी-कभी वही उसे बिगाड़ते भी हैं. संघ का नाम लेकर जो लोग रायता फैलाते हैं, यह उन्हीं की कारस्तानी है कि आज पूरा देश एक और विभाजन की कगार पर खड़ा है. यह विभाजन भौगोलिक न होकर वैचारिक है. आध्यात्म के इस देश में बुद्धिजीवी कहलाना अब एक गाली की तरह है. सेकुलर शब्द का भी यही हाल है. इसमें भी सबसे बड़ी दिक्कत तो हिन्दुत्व की परिभाषा को लेकर है. संघ का हिन्दुत्व समावेशी है जबकि उसके समर्थक इससे सहमत नहीं है. लोगों के मन में क्या चल रहा है इसकी एक झलक ऑपरेशन सिंदूर की प्रेस ब्रीफिंग में शामिल एक मुस्लिम महिला को लेकर सामने आ चुकी है. बहरहाल, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अब कहा कि संघ को यदि एक शब्द में बयान किया जाए तो वह शब्द ‘अपनापन’होगा. संघ का उद्देश्य पूरे हिंदू समाज को अपनेपन और स्नेह के सूत्र में बांधना है. हिंदू समाज ने यह जिम्मेदारी भी ली है कि वह पूरी दुनिया को इसी अपनेपन के सूत्र में बांधे. संघ प्रमुख ने कहा कि जानवरों के मुकाबले इंसान के पास बुद्धि होती है. बुद्धि का सही इस्तेमाल कर वह बेहतर बन सकता है, पर इसी बुद्धि का गलत इस्तेमाल उसे बुरा भी बना सकता है. इसे रोकने वाली एकमात्र चीज है अपनापन और स्नेह. ‘गिविंग बैक’ शब्द आज अंग्रेजी में फैशन बन गया है, लेकिन भारत में यह भावना बहुत पहले से है. अगर कोई आपके प्रति अपनापन दिखा रहा है, तो आपको भी वैसा ही स्नेह और करुणा दिखानी चाहिए. आत्मीयता की इस भावना को और मजबूत किया जाना चाहिए, क्योंकि पूरा विश्व इसी से चलता है. वास्तविक एकता उस सामान्य सूत्र को पहचानने से आती है जो सभी को जोड़ता है. क्या देश सुन रहा है?

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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