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भारतीय जीवन बीमा निगम : दमनकारी नीतियों के खिलाफ चिट्ठियों से नहीं बनी बात तो आंदोलन पर उतरे अभिकर्ता

देश भर के बीमा अभिकर्ता आंदोलन पर हैं। उनका कहना है की जीवन बीमा अभिकर्ता अधिनियम 1972 भारतीय जीवन बीमा अभिकर्ता (संशोधन) अधिनियम 2017 अभिकर्ताओं के हितों के अनुकूल नहीं हैं। ये दोनों अधिनियम अभिकर्ताओं के अधिकारों को खत्म करने और उनके दमन का रास्ता साफ करने के औज़ार हैं। उनका कहना है कि 1 अक्तूबर 2024 को लाये गए निर्णय में निगम ने कई ऐसे नियम लागू किए जो अभिकर्ताओं और पालिसीधारकों दोनों के लिए खतरनाक हैं। अभिकर्ता संगठनों द्वारा इसका विरोध किया गया लेकिन प्रबंधन ने उनकी कोई बात नहीं मानी। भारतीय जीवन बीमा के अभिकर्ता अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। पूर्वांचल में वाराणसी मंडल सहित अनेक जिलों में स्थित भारतीय जीवन बीमा निगम के कार्यालयों पर धरना और प्रदर्शन होने की खबरें लगातार मिल रही हैं। एक अभिकर्ता द्वारा भेजे गए विडियों में दिख रहा है कि वाराणसी के मंडल कार्यालय पर प्रदर्शनकारियों के पहुंचे ही कार्यालय का मुख्य गेट बंद कर दिया गया।

आल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस एजेंट्स अशोसियेशन के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि भारतीय जीवन बीमा निगम की तानाशाही का आलम यह है कि वह जीवन बीमा की सबसे प्राथमिक कड़ी अभिकर्ताओं की लोकतान्त्रिक आवाज को ही दबाना चाहता है।

अभिकर्ताओं से बात करने की बजाय उनके भीतर बर्खास्तगी और उनका कमीशन जब्त करने का भय पैदा किया जा रहा है ताकि वे चुप रहें और अन्याय पर आँख मूँदें रहें। यह न केवल अभिव्यक्ति के उनके संवैधानिक अधिकार के ऊपर हमला है बल्कि उनकी आवाज दबाकर परोक्ष रूप से बीमाधारकों के हितों के ऊपर भी कुठाराघात है।

बातचीत के दौरान अभिकर्ता संगठनों से जुड़े नेताओं ने बताया कि पूरे देश के 14 लाख अभिकर्ताओं ने सरकार और जीवन बिना निगम की तानाशाही के खिलाफ मुहिम छेड़ी है। दरअसल हमने जब भी अपनी बात रखने की कोशिश की तब-तब हमको न केवल टरकाया गया बल्कि हमारी मांगों को भी डस्टबिन के हवाले कर दिया गया। अब पानी सिर से ऊपर हो रहा है और अब बिना आर-पार के संघर्ष के कोई राह नहीं है।

क्या है मामला

आल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस एजेंट्स एशोसिएशन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि यह आंदोलन पिछले वर्ष अक्तूबर में जीवन बीमा निगम में हुये बदलावों की पृष्ठभूमि में शुरू हुआ है। अशोसियेशन के अध्यक्ष एस एल ठाकुर कहते हैं कि भारतीय जीवन बीमा अभिकर्ता अधिनियम 1972 भारतीय जीवन बीमा अभिकर्ता (संशोधन) अधिनियम 2017 अभिकर्ताओं के हितों के अनुकूल नहीं हैं।ये अधिनियम अभिकर्ताओं के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं। ठाकुर का कहना है कि ये अधिनियम अभिकर्ताओं के दमन के लिए बनाए गए हैं। इसके तहत उनके कमीशन जब्त करना और उन्हें बर्खास्त करना आसान है।

ठाकुर ने आरोप लगाया कि 31 अगस्त 2021 को कूटरचित नियमावली का एक सर्कुलर जारी किया गया जिसमें अभिकर्ताओं की अभिव्यक्ति की संवैधानिक आज़ादी पर हमला करते हुये किसी भी शोषण, अत्याचार, अन्याय और दमन के विरोध में आवाज उठाने पर उनकी बर्खास्तगी और कमीशन की जब्ती का प्रावधान लाया गया।

गौरतलब है कि 1 अक्तूबर 2024 को लाये गए नियमों में पॉलिसीधारकों के पॉलिसी ऋण का ब्याज बढ़ा दिया गया और बोनस घटा दिया गया।

सबसे छोटी पॉलिसी के बीमाधन की सीमा एक लाख से बढ़ा कर सीधे दो लाख कर दी गई। इस निर्णय से बड़े पैमाने पर पॉलिसीधारक प्रभावित हुये। कुछ अभिकर्ताओं का कहना है कि इससे बीमा के प्रति लोगों की सामान्य रुचि न केवल घटी बल्कि उपभोक्ताओं पर पहले से चल रही पॉलिसियों का दबाव भी बढ़ गया।

बीमा योग्य आयु पहले पचपन वर्ष थी जिसे घटा कर पचास वर्ष कर दिया गया जिसका सीधा असर यह हुआ कि बहुत सारे पॉलिसी धारक उम्र की अर्हता को खोने लगे और पॉलिसी करने के प्रति उनकी रुचि में गुणात्मक कमी आई। इन तमाम सारी बातों के अलावा अभिकर्ताओं के कमीशन को भी कम कर दिया गया।

आंकड़े के अनुसार पूरे देश में 28 करोड़ पॉलिसी धारक और 14 लाख अभिकर्ता हैं। अभिकर्ताओं का कहना है कि इन नियमों का हमारे व्यवसाय ही नहीं पूरे बीमा जगत पर नकारात्मक असर पड़ना तय है।

अभिकर्ता अशोसिएशन ने लिखित शिकायत की

इन अधिनियमों के लागू होते ही अभिकर्ताओं के संगठन की ओर से प्रधानमंत्री, भारतीय जीवन बीमा निगम के प्रबंध निदेशक और आईआरडीए के अध्यक्ष को चिट्ठी लिखी गई कि यह कदम न सिर्फ 28 करोड़ पॉलिसीधारकों और 14 लाख अभिकर्ताओं बल्कि स्वयं संस्था के लिए भी आत्मघाती साबित होगा। इससे अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और यह पहले से ही चुनौतियों का सामना कर रहे भारतीय जीवन बीमा निगम के ऊपर नकारात्मक असर डालेगा।

इसके साथ ही संगठन ने इस अधिनियमों  को वापस लेने की अपील की और बातचीत के लिए समय मांगा। कई बार चिट्ठियाँ लिखने के बावजूद अधिकारियों के कान पर जूं न रेंगी। आल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस एजेंट्स एशोसिएशन के अध्यक्ष एस एल ठाकुर ने फोन पर बताया कि हमारी संस्था लोकतान्त्रिक संगठन है और पॉलिसीधारकों तथा अभिकर्ताओं के हितों से सरोकार रखती है लेकिन संस्था द्वारा कई बार अपील करने के बावजूद अधिकारियों ने हमें बातचीत का मौका न देते हुये मामले को टाल दिया।

ठाकुर कहते हैं कि न केवल हमारी बात अनसुनी की गई बल्कि हमारे दमन की कोशिश की गई। यह अभिव्यक्ति की हमारी संवैधानिक आज़ादी का दमन है। हम न केवल इस देश के जिम्मेदार नागरिक हैं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में हमारी महत्वपूर्ण भूमिका है।

अंतिम रास्ता आंदोलन ही बचा है

कई महीने तक इंतज़ार के बाद जब संगठनों की बात न सुनी तब उनका आक्रोश बढ़ने लगा। एस एल ठाकुर कि हमारी चुप्पी का मतलब होता कि हमने नए बदलावों को स्वीकार लिया है जबकि यह हमारे दमन का हथियार बनाकर लाया गया था। इसलिए हमारे पास लड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था।

अभिकर्ताओं के सामने यह गंभीर सवाल था कि क्या करें? अंततः उन्होंने तय कर लिया कि या तो चुप रहकर इस दमन के आसान शिकार बनो या फिर लड़कर अपने अधिकारों कि रक्षा करो। इस क्रम में 21 अक्तूबर 2024 से विभिन्न चरणों में मानव शृंखला बनाकर जुलूस निकाला गया और ज्ञापन सौंपा गया। यह क्रम प्रबंधन के विरोध में असहयोग आन्दोलन के रूप में बढ़ता गया।

हालांकि प्रबंधन इस बात से भी बेपरवाह बना रहा। उसे उम्मीद थी कि यह सब जल्द ही शांत हो जाएगा लेकिन संगठनों ने लंबे विचार-विमर्श के बाद संगठनों ने 24 मार्च 2025 को अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन का निर्णय। प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, भारतीय जीवन बीमा निगम के प्रबंध निदेशक सहित अनेक अधिकारियों को पत्र लिखते हुये यह आंदोलन शुरू हुआ और अब देश भर में फैलता गया है।

क्या हैं माँगें

आल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस एजेंट्स एशोसिएशन ने अपनी आठ सूत्री मांगों में स्पष्ट किया है कि भारतीय जीवन बीमा निगम 1 अक्तूबर 2024 को लिए गए निर्णय सहित दोनों अधिनियमों को वापस ले।

दूसरी मांग यह है कि पॉलिसी ऋण पर ब्याज दर कम कर बोनस बढ़ाया जाय। तीसरी मांग पॉलिसी का बीमाधन पूर्ववत 100000 किया जाय। चौथी मांग  पॉलिसी की किश्तों में की गई बढ़ोत्तरी वापस ली जाय।

पाँचवीं मांग बीमा योग्य आयु को पूर्ववत 55 वर्ष करने की तथा छठी मांग अभिकर्ताओं के कमीशन में की गई घटौती वापस ली जाय और उनका कमीशन पूर्ववत किया जाय।

सातवीं मांग है कि क्ला बैंक लागू न किए जाने का लिखित आश्वासन दिया जाय तथा आठवीं मांग पूरे देश में आंदोलन कर रहे अभिकर्ताओं की अवैध बर्खास्तगी और निलंबन वापस लिया जाय।

मिर्ज़ापुर के चुनार कार्यालय पर प्रदर्शन में शामिल अभिकर्ताओं ने कहा कि असल में हमारी लड़ाई भारतीय जीवन बीमा निगम की उस तानाशाही के खिलाफ है जो हर तरह से हमारे अधिकारों पर कब्जा करके हमें पंगु बनाना चाहती है। वह चाहती है की हम उसके अन्याय और दमन पर अपने मुंह पर ताला लगाए रहे हैं।

लेकिन हम बोल रहे क्योंकि यह न केवल हमारा संवैधानिक अधिकार है बल्कि हम जीवन बीमा के सबसे बुनियादी कार्यकर्ता हैं जिनके बलबूते पर यह पूरा उद्योग लहलहा रहा है।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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