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माता- पिता चल बसे, उम्र है 14 साल, घर की उठाती है पूरी जिम्मेदारी, बिटिया की कहानी सुन रो जाएंगे आप!

भरतपुर:- कहते हैं कब किसके जीवन में कौन सी परेशानी आ जाए कहा नहीं जा सकता. बुरा समय न किसी की उम्र देखता है और न उसके हालात, वह बस चला आता है, आज हम आपको ऐसी 14 साल की लड़की के बारे में बताते हैं, जिसकी कहानी दूसरों के लिए प्रेरणा है. दरअसल बयाना पंचायत समिति की ग्राम पंचायत गुर्धा नदी के गांव नगला बंजारा की रहने वाली बेटी पायल है, जिसके माता-पिता का साया सर से उठने के बाद भी, 14 साल की मासूम अपने चार छोटे भाई- बहनों की मां की तरह देखभाल कर रही है, और दादी की पेंशन ही उनकी आमदनी का जरिया है. तो पायल की इस संघर्ष भरी कहानी से आज हम आपको बताते हैं.

माता पिता का बीमारी से हो गया निधन
ग्राम पंचायत गुर्धा नदी के नगला बंजारा गांव की 14 साल की पायल अपने परिवार का सहारा है. बचपन में ही माता-पिता को खोने के बाद पायल अपने चार छोटे भाई बहनों और 75 साल की दिव्यांग दादी की देखभाल कर रही है. खेलने और पढ़ने की उम्र में पायल पर परिवार की जिम्मेदारियों का भार है. पायल के पिता का तीन साल पहले टीबी से और मां का एक साल पहले बीमारी से निधन हो गया. इन कठिन परिस्थितियों में परिवार के पास जमीन का कोई सहारा नहीं है.

दादी के पेंशन ही है सहारा
दादी की पेंशन का मात्र ₹1000 ही उनकी जरूरतों को पूरा करने का एकमात्र जरिया है. आर्थिक संकट के कारण पायल को पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी. अब उसका पूरा दिन घर की साफ-सफाई खाना बनाने और छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखने में बीतता है. पायल के छोटे भाई सुनील को भी स्कूल छोड़ना पड़ा, क्योंकि परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए किसी को घर पर काम करना जरूरी था

उसका सबसे बड़ा सपना था कि वह पढ़-लिखकर परिवार को बेहतर जीवन दे सके, लेकिन अब वह अपनी जिम्मेदारियों में उलझ गई है. ग्राम पंचायत की सरपंच मधु सुनील कटारा और अन्य अधिकारियों ने पायल के परिवार की मदद के लिए पहल की. उन्होंने राशन, कपड़ों और अन्य जरूरी सामान की व्यवस्था की है. हालांकि यह मदद थोड़ी राहत तो देती है, लेकिन इन्हें स्थाई समाधान की जरूरत है.पायल की कहानी देती है प्रेरणा
पायल कहती है मुझे खेलने और पढ़ने का मन करता है, लेकिन मैं जानती हूं कि मेरे भाई-बहनों के लिए मुझे मजबूत बनना होगा. उसकी यह बात उसकी दृढ़ता और साहस को दर्शाती है. पायल की कहानी न केवल उसकी कठिनाइयों को बयां करती है, बल्कि इस बात का भी सबूत है, कि कैसे छोटे बच्चे भी विपरीत परिस्थितियों में परिवार का सहारा बन सकते हैं. जरूरत है, कि समाज और प्रशासन ऐसे बच्चों की सहायता के लिए आगे आए ताकि उनकी शिक्षा और भविष्य सुरक्षित हो सके. यह कहानी हमें यह सिखाती है, कि चाहें परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, हिम्मत और संघर्ष से हर मुश्किल का सामना करना चाहिए पायल की यह संघर्ष यात्रा हर किसी के लिए प्रेरणा है.

 

Manoj Mishra

Editor in Chief

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