छत्तीसगढ़

शीर्षक:- “बच्चों से अपेक्षाएं नहीं उनकी क्षमता बढ़ायेँ” -बी. के. जितेन्द्र सेठ

शीर्षक:- “बच्चों से अपेक्षाएं नहीं उनकी क्षमता बढ़ायेँ”
-बी. के. जितेन्द्र सेठ

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वर्तमान समय बच्चों की शिक्षा तथा आजीविका (Career) को लेकर प्रत्येक माता-पिता अत्यधिक सचेत, प्रयासरत और चिंतित भी हैँ l प्रत्येक माता -पिता चाहते हैँ कि उनका बच्चा शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च प्रदर्शन करके दिखाए, अच्छे से अच्छा अंक प्राप्त करे, शीर्ष स्थान पर पहुंच कर दिखाए l जिससे माता पिता का सर समाज में, गाँव में, शहर में ऊँचा हो। इन्ही अपेक्षाओं को लेकर आज ज्यादातर पालक अपने बच्चों के ऊपर पढ़ाई को लेकर निरंतर दबाव बनाते जा रहे हैँ।
बच्चों के ऊपर असीमित अपेक्षाएं पालक की आँखों को धुंधला कर रही हैँ, जिसके कारण पालक बच्चे की क्षमता, रूचि, दक्षता, कौशल, कला, समस्याएं और सबसे महत्वपूर्ण बच्चों के अपने सपने नजर नहीं आते हैँ। फलस्वरुप पालक खुद के सपनों व अपेक्षायों का बोझ बच्चों पर डालते जाते हैँ।
प्रिय पालकगण व माता पिता मैं आपसे ये नहीं कह रहा कि बच्चों के ऊपर अपेक्षा न रखें या उनके लिये सपने न देखें। आप बच्चों के लिए जरूर सपने देखें, परन्तु ध्यान रहे कि खुद के सपने बच्चों से पुरी कराने के बजाय, बच्चे को उसका सपना पूरा करने में सहयोग करें। आप अपना सपना बच्चों से पूरा कराने के लिए बच्चों के सपनों की बली ना चढ़ाएं। वरना पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये सिलसिला चलता रहेगा। हर कोई दूसरे के सपनों और अपेक्षाओं पूरा करते-करते स्वयं के सपनों की कुर्बानी देता रहेगा। किसी भी इंसान को पूर्ण संतुष्टि और ख़ुशी तब तक नहीं मिलेगी ज़ब तक वह स्वयं का सपना पूर्ण नहीं करेगा।
अब फिर बात करते हैँ अपेक्षायों की। बच्चों पर अपेक्षाएं नहीं बल्कि विश्वास रखें। एक बात हमेशा ध्यान रखियेगा अपेक्षाएं बढ़ाने से बच्चों का प्रदर्शन बेहतर नहो होता बल्कि बच्चों की क्षमता बढ़ाने से उनका प्रदर्शन हर क्षेत्र में बेहतर होता है। अपेक्षा रखने से पहले बच्चे की क्षमता की जाँच करें। बच्चे की रूचि व सपने की पहचान करें। फिर बच्चे की क्षमता, कार्यकुशलता, दक्षता, कौशल व कला को विकसित करने पर जोर लगाएं, प्रेरित करें, प्रोत्साहित करें, सपने देखना व उसे पुरे करना सिखाएं। फिर ज़ब बच्चे के अंदर वो क्षमता एक बार आ जाये, तो यकीन मानिये आपका बच्चा आपकी क्षमताओं से बढ़कर प्रदर्शन करके दिखायेगा, जो सपना आपने अपने लिए देखा था उसे भी पूरा करके दिखायेगा। ऐसा मेरा विश्वास है और सभी पालकों व माता-पिता तथा बच्चों के प्रति मेरी शुभकामनायें हैँ।
तुलना मत करें:- अपने बच्चे की तुलना अन्य बच्चे से कभी भी ना करें, क्योंकि हरेक बच्चे की क्षमता अलग-अलग होती है। ज़ब हम बच्चों की तुलना करने लग बैठते हैँ तो बच्चों में हीन भावना उत्पन्न होती है, वे हतोत्साहित हो जाते हैँ, फिर उनकी कार्यक्षमता गिरने लगती है। जिसके कारण वो बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकते। तुलना करने की जगह आप बच्चों को प्रोत्साहित करें। उन्हें सकारात्मक संकल्प दें, जैसे “तुम कर सकते हो”, “तुम्हारे अंदर असीम शक्ति है”,”सफलता तुम्हारे लिए ही बनी है”। ज़ब ऐसे संकल्प व विचार बच्चों को देंगे तो बच्चों में उत्साह बढ़ेगा और उनकी कार्यक्षमता भी तेजी से विकसित होगी।
असफलता में भी बच्चे को साथ दें :- अपने बच्चे की हर असफलता में उसके साथ खड़े रहें। ऐसे समय पर बच्चों को भावनात्मक सहयोग की जरुरत होती है। क्योंकि माता पिता ही बच्चे के सबसे करीब और उसके साथ भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैँ, इसलिए आप पालक ही बच्चे को भावनात्मक सहयोग दे सकते हैँ। भावनात्मक सहयोग देने का अर्थ यही है कि बच्चे की असफलता को माता-पिता स्वीकार करें और बच्चे को यह विश्वास दिलाएं कि तुम्हारे बार-बार असफल होने पर भी तुम्हारा साथ और सहयोग देने के लिए हम तुम्हारे साथ खड़े हैँ। आपका ये कथन आपके प्रति बच्चे का विश्वास बढ़ाएगा। और यही विश्वास बच्चे का आत्मविश्वास बनेगा और यही आत्मविश्वास आपके बच्चे को हर क्षेत्र में असीम सफलता दिलाएगा।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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