छतरपुर. जिले के आधे से ज्यादा किसानों ने गेहूं की बुवाई कर दी है, लेकिन अभी भी जिन किसानों ने गेहूं की बुवाई नहीं की है, उनके लिए अच्छी खबर है. अगर आप गेहूं की बुवाई करने में पिछड़ गए हैं, तो हल की बुवाई से गेहूं की बुवाई करके फसल का उत्पादन बढ़ा सकते हैं.पिछले 40 सालों से हल-बैल से ही खेती कर रहे हैं. ट्रैक्टर से भी करते हैं, लेकिन ज्यादातर खेती हल से ही करते आए हैं. ज्वार-धान जैसी फसलें सब हल-बैल से ही करते आए हैं. अभी गेहूं की बुवाई कर रहे हैं. ट्रैक्टर से ज्यादा हल से खेती करने में सुविधा होती है.खेत में पूरा बीज उग आता है
किसान बताते हैं कि हल-बैल से बुवाई करने का फायदा ये होता है कि जितना भी बीज खेत में बोते हैं सभी अंकुरित हो जाता है. दरअसल, हवा चलने पर ट्रैक्टर का बीज बाहर निकल आता ह, जबकि हल का बोया हुआ बीज बाहर नहीं आता है, क्योंकि हल का बोया बीज ज्यादा नीचे तक रहता है.
ट्रैक्टर से ज्यादा होता है उत्पादन
किसान बताते हैं कि ट्रैक्टर और हल की बुवाई में जो उत्पादन होता है, उसमें 1 बोरा का अंतर होता है. जैसे ट्रैक्टर से बोये हुए खेत के 1 बीघा में 4 क्विंटल गेहूं निकलता है, तो वहीं हल-बैल की बुवाई में 5 क्विंटल का बीघा निकलता है.
बच जाता है जुताई-बुवाई का पैसा
किसान बताते हैं पुरखों से हमारे पास बैल पाल रहे हैं. इसलिए कि हल-बैल से ही खेती करते हैं. आज बढ़ती महंगाई में हल से खेती करने पर जुताई-बुवाई का पैसा बच जाता है. हालांकि, हल-बैल की खेती में मेहनत लगती है लेकिन यह हम कर लेते हैं.हल-बैल से बोया बीज पहुंचता है मिट्टी शीत में
वहीं किसान छोटा अनुरागी बताते हैं कि हल-बैल की बुवाई का फायदा ये है कि इसका बीज मिट्टी की शीत में पहुंच जाता है. हवा चलने से बीज बाहर नहीं आता है, जबकि ट्रैक्टर से बोया बीज हवा से उदस जाता है मतलब बाहर आ जाता है क्योंकि ट्रैक्टर का बीज मिट्टी की शीत तक पहुंचता ही नहीं है. हम भी हैल-बैल से ही खेती करते आए हैं. सभी फसलें हैल-बैल से ही करते हैं.