-दीपक रंजन दास
एक मजदूर गंदी-गंदी गालियां बक रहा था. वह रास्ते पर पड़े पत्थर उठाता और उसे उस विशाल गेट की तरफ फेंकता जिसके पीछे बहुत दूर एक सफेद रंग का बंगला दिखाई दे रहा था। गुस्से में उसकी सांसे फूली हुई थीं और शरीर कांप रहा था। उसकी खाली रेहड़ी खुद ही लुढ़कती हुई उससे दूर जा रही थी। चीखते-चीखते जब उसका गला सूख गया तो वह धप से वहीं बैठ गया। सिर पर रखी गमछे की गोल पगड़ी को निकालकर हाथ में ले लिया और उसे यूं मीसने लगा, मानो उसका गला घोंट रहा हो। कुछ देर बाद वह उठा और बंद गेट की तरफ थूककर आगे निकल गया। गरीब असहाय आदमी का आक्रोश इसी तरह अभिव्यक्त होता है। वह विशाल गेट के पीछे के बंगले में रहने वाले उस आदमी का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता। वो आदमी जो अभी-अभी उसकी मेहनत के पैसे में डंडी मारकर भीतर चला गया है। उसे पता है कि देश में कोई ऐसा कानून या एजेंसी नहीं है जो मजदूरी के पैसे दिला सके। वैसे ज्यादा फर्क नहीं है उस मजदूर की लाचारी में और कथित संभ्रांत लोगों में। सभी किसी न किसी के आगे नतमस्तक हैं। इन सबके ऊपर सरकार है। केवल सरकार ही है जो जनता का खौफ खाती है। उसे पता है कि इस जनता के पास एक ऐसा हथियार है जो उसे कभी भी नेस्तनाबूद कर सकती है। इसलिए अब जनता से उसका यह अंतिम हथियार भी छीनने की कोशिशें हो रही हैं। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। देश तेजी से विपक्ष विहीन राजनीति की तरफ बढ़ रहा है। इसके लिए उसी हथियार का उपयोग किया जा रहा है जिसे राजनीति में अफीम कहा जाता है। देश में लोकसभा चुनावों का माहौल है। पर जिस जनता के लिए यह पूरी कवायद हो रही है वह या तो आईपीएल देखने में मस्त है या फिर मूर्तियों के आगे आंसू बहा रहा है। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश की राजनीति किस दिशा में जा रही है। तमाम सरकारी मशीनरी केवल उन्हीं राज्यों में क्यों लगी हुई है जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को नि:शुल्क अनाज दिया गया। यह योजना आगामी पांच वर्षों तक जारी रहेगी। वैसे देश में बीपीएल कार्ड धारकों की संख्या मात्र 6.52 करोड़ है। वल्र्ड इनइक्वालिटी लैब की रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे अमीर एक फीसदी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40.1 फीसदी हिस्सा है। कुल आय में भी इनकी हिस्सेदारी 22.6 फीसदी है। आजादी के समय देश की आय में 10 फीसदी सबसे अमीर लोगों का हिस्सा 40 फीसदी था जो 1982 में घटकर 30 फीसदी पर आ गया। 2022 में यह बढ़कर 60 फीसदी हो गया। 2022-23 में देश के निचले 50 फीसदी लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का केवल 15 फीसदी बचा था।
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