छतरपुर: जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कद्दू या कुम्हड़ा एक महत्वपूर्ण फसल है, जिसे लगभग हर घर में उगाया जाता है. यह फल सिर्फ खाने के लिए नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण भी उगाया जाता है. पंडित रमाकांत दीक्षित ने लोकल 18 को बताया कि उनके घर में कद्दू का उपयोग पूरे 12 महीने किया जाता है. इसका उपयोग सब्जी बनाने के साथ-साथ मिठाई और अन्य पारंपरिक व्यंजनों में भी होता है. खासकर गर्मियों में पाग बनाया जाता है क्योंकि यह शरीर को ठंडक प्रदान करता है.धार्मिक रीति-रिवाजों में कद्दू का खास स्थान है. इसे जीव के रूप में पूजा जाता है, इसलिए इसे यज्ञ और पूजा-पाठ में बलि के रूप में भी चढ़ाया जाता है. पंडित दीक्षित के अनुसार, इस फल की ज़रूरत सालभर रहती है. यह सब्जी, मिठाई और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए बेहद उपयोगी हैकद्दू के लड्डू और अन्य व्यंजन
कुम्हड़ा से लड्डू भी बनाए जाते हैं. इसे काटकर गूदा निकालकर सुखाया जाता है. फिर इसे किसकर, ड्राई फ्रूट्स और शक्कर मिलाकर स्वादिष्ट लड्डू तैयार किए जाते हैं. यह ग्रामीण क्षेत्रों में एक लोकप्रिय मिठाई है, जिसे विशेष अवसरों पर बनाया जाता है.कद्दू काटने की परंपरा
भारतीय संस्कृति में कद्दू को पुत्र का प्रतीक माना गया है, इसलिए महिलाओं को कद्दू काटने की अनुमति नहीं होती है जब तक कि पुरुष पहले चाकू न चलाए. पंडित रमाकांत के अनुसार, यह परंपरा उनके घर में पीढ़ियों से चली आ रही है. स्कन्द पुराण और रामचरितमानस में भी कुम्हड़ा का उल्लेख मिलता है, जो इसके सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है.कद्दू उगाने की प्रक्रिया
कद्दू उगाने के लिए इसके बीज को मिट्टी में बोया जाता है और नियमित रूप से पानी दिया जाता है. इसके बाद बेल तैयार होती है, जिसे रस्सी के सहारे या छत पर चढ़ाया जाता है. एक बीज से 1 क्विंटल तक कद्दू उग सकता है, लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि छोटे कद्दू के फल को उंगली दिखाने से यह सूख सकता है.
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