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Gustakhi Maaf: जब पति से पहले ‘महाराज’ लगाते थे भोग

-दीपक रंजन दास
नेटफ्लिक्स पर एक मूवी रिलीज हुई है ‘महाराज’। यह फिल्म ब्रिटिश भारत के एक गुजराती पत्रकार के संघर्ष और तत्कालीन बम्बई सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को दर्शाती है। फिल्म में एक धर्मगुरू की सत्ता को एक पत्रकार करसनदास मूलजी चुनौती देते हुए दिखाई देते हैं। धर्मगुरू को उनके अनुयायी ईश्वर मानते थे। धर्मगुरू पादसेवा के नाम पर किसी भी किशोरी या युवती को अपने शयनकक्ष में बुला सकता था। धर्म के नाम पर किशोरियों के धर्षण के इस दृश्य को लोग पैसे देकर झरोखे से देख सकते थे। ईश्वर की इस लीला को देखना पुण्य माना जाता था। करसनदास की मंगेतर भी इस धर्मगुरू की काम-वासना का शिकार हो जाती है। पीड़ादायक यह है कि ऐसा करते समय उसकी मंगेतर के मन में कोई पाप बोध नहीं था। उसे लगता है कि वह श्रेष्ठ परम्पराओं का पालन कर रही है और यही धर्म है। पर बाद में उसे अपनी भूल का अहसास होता है। फिर करसन के नाम एक पत्र लिखकर वह आत्महत्या कर लेती है। धर्म के नाम पर ऐसा पाखंड आज भी होता है। लोग धर्मगुरू के निर्देश को ईश्वर का आदेश मानते हैं। उन्हें लगता है कि धर्मगुरू को खुश कर वे मोक्ष प्राप्त करने वाले हैं। ‘महाराजÓ की कहानी 1860 के दशक की है पर आज 2024 में भी उतनी ही प्रासंगिक है। लोग धर्म की कहानी सुनते-सुनते एक ऐसे अंधे मोड़ पर पहुंच चुके हैं जहां उनकी शिक्षा दीक्षा सबकुछ बेमानी हो जाती है। तर्कशक्ति को लकवा मार जाता है और वो ढिठाई की हदें पार करने लगते हैं। पिछले दो दशकों में ऐसे कई किस्से सामने आ चुके हैं जिसमें आस्था के नाम पर हो रहे ऐसे अपराधों का भांडा फूटा है। पर इससे उनके अनुयायियों की संख्या कम होने की बजाय बढ़ी ही है। ऐसे धर्म गुरूओं के अनुयायियों की संख्या करोड़ों में होती है। धर्मगुरू पर जरा सी आंच आई नहीं कि ये सड़कों पर निकल आते हैं। ऐसे धर्म गुरुओं के आश्रम किसी किले की तरह होते हैं जिसके अंदर उनका अपना कानून चलता है। दरअसल, आधुनिक भारत का इंसान भीतर से खोखला है। वह अपने माता-पिता या बाप-दादा पर विश्वास नहीं करता। उनसे कुछ नहीं सीखता। आचरण सीखने के लिए वह बाबाओं की कोचिंग क्लास में जाता है। लाखों की संख्या में लोग अपना काम-धाम छोड़कर बाबा के पंडाल में पहुंचते हैं। वहां से एक्स्ट्रा ज्ञान प्राप्त कर खुद को श्रेष्ठ समझने लगते हैं। वैसे भी बाबा खुद भीतर से खाली होता है। वह केवल एक कुशल वक्ता होता है। उसे पता है कि उसके ज्ञान पर कोई उंगली नहीं उठाएगा। इसलिए वह कुछ भी बोलता है। यही बोल कभी-कभी उसका काल बन जाता है। नया बवाल राधारानी को लेकर है। एक मशहूर कथावाचक के लिए ब्रजभूमि के मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिये गये हैं। दरवाजे तभी खुलेंगे जब वे सार्वजनिक रूप से माफी मांगें।

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