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इस बरसाती सब्जी ने बाजार में आती ही मचा दी धूम, कीमत भी बेहद कम, सेहत के लिए भी फायदेमंद

जैसलमेर. जैसलमेर को कम और अनियंत्रित बारिश के लिए जाना जाता है, लेकिन जब यहां बारिश होती है, तो यह सिर्फ मिट्टी नहीं, परंपराओं को भी ताजा कर देती है. इस मानसून में हुई अच्छी बारिश के बाद जैसलमेर के बाजारों में परंपरागत सब्जियां जैसे काचर और गवार फली की भरमार हो गई है. स्थानीय किसान इन ताजा सब्जियों को अपने खेतों से लाकर शहर के बाजारों में बेच रहे हैं, और लोग इन्हें खरीदकर घरों में न सिर्फ ताजा सब्जी के रूप में उपयोग कर रहे हैं, बल्कि सुखाकर साल भर के लिए स्टोर भी करते हैं.जैसलमेर की अनमोल सब्जी काचर पूरे राजस्थान में उगाई जाती है, लेकिन जैसलमेर की बलुई मिट्टी इसको खास स्वाद और बड़ा आकार देती है. यह न केवल सब्जी के रूप में बल्कि अमचूर की तरह खटाई के रूप में भी इस्तेमाल होती है. स्थानीय लोग इसे धूप में सुखाकर साल भर अपने खाने में उपयोग करते हैं. इस सीजन में काचर मात्र 10 रुपये प्रति किलो बिक रही है, जबकि गवार फली 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बाजार में उपलब्ध है.बाजार में रहती है मांगकिसानों का पारंपरिक धरोहर से जुड़ाव 38 वर्षीय किसान कुंदन पूरी बताते हैं कि काचर जैसलमेर की खासियत है. वे इसे सुखाकर सालभर अमचूर की तरह उपयोग करते हैं. उनके अनुसार, काचर केवल सब्जी नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है. जैसलमेर में इस तरह की बरसाती सब्जियों की खेती पीढ़ियों से चली आ रही है, और आज भी इनकी मांग बनी हुई है.सेहत के लिए भी फायदेमंदकाचर का फल के रूप में उपयोग जैसलमेर में पकने के बाद काचर को फल की तरह भी खाया जाता है. इसका स्वाद मीठा और रसीला होता है, जो बच्चों और बुजुर्गों में काफी लोकप्रिय है. इसमें विटामिन C, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं. 57 वर्षीय संपतलाल पुरोहित बताते हैं कि जब काचर पक जाता है, तो इसका मीठा स्वाद ताजगी भरा होता है और इसे फल की तरह खाना सेहत के लिए भी लाभकारी होता है. किसानों की खुशी इस सीजन में काचर और गवार फली की अच्छी पैदावार ने किसानों के चेहरों पर मुस्कान ला दी है. लोग इन्हें बड़े पैमाने पर खरीदकर सुखा रहे हैं, ताकि साल भर इसका उपयोग कर सकें. जैसलमेर की यह पारंपरिक खेती न केवल उनकी आय का साधन है, बल्कि उनकी विरासत और परंपराओं का प्रतीक भी है

Manoj Mishra

Editor in Chief

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