जून में दो एकादशी पड़ रही हैं. अपरा और निर्जला एकादशी. अपरा एकादशी कृष्ण पक्ष और निर्जला एकादशी की तिथि शुक्ल पक्ष में पड़ती है. दोनों तिथियों का अपना-अपना महत्व है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा पाठ करने से हर तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं. आइए जानते हैं दोनों एकादशी तिथियां कब-कब हैं और उनका महत्व और पूजा विधि…
अपरा एकादशी कब है
अपरा एकादशी ज्येष्ठ के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि यानी 11वें दिन पड़ती है. मान्यता है कि इस व्रत से सभी पाप मिट जाते हैं. इसे ही अचला एकादशी भी कहा जाता है. यह शुभफलदायी है. इस बार अपरा एकादशी रविवार, 2 जून को मनाई जाएगी. इसमें भगवान श्रीहरि विष्णु के त्रिविक्रम स्वरूप की पूजा की जाती है. अपरा का मतलब ‘असीम’ होता है. माना जाता है कि इस व्रत को करने से असीमित मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसीलिए इसका नाम अपरा एकादशी पड़ा है. ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण में भी अपरा एकादशी का महत्व विस्तार से बताया गया है
अपरा एकादशी का शुभ मुहूर्त
2 जून, रविवार को अपरा एकादशी मनाई जाएगी. सुबह 5.04 बजे से इस तिथि की शुरुआत हो जाएगी, जिसका समापन अगले दिन 3 जून को सुबह 2.41 बजे होगा. अपरा एकादशी के पारण का समय 3 जून को सुबह 8:06 बजे से लेकर 8:24 बजे तक है.
अपरा एकादशी की पूजा विधि
1. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करें.
2. पूर्व दिशा में चौकी पर पीला आसन बिछाकर भगवान विष्णु की तस्वीर रखें.
3. दीपक प्रज्ज्वलित कर पूजन की शुरुआत करें.
4. भगवान को तुलसी की पत्तियां, चंदन, पान, सुपारी, लौंग, फल और गंगाजल चढ़ाएं.
5. अपरा एकादशी की व्रत कथा पढ़कर आरती करें और भोग लगाएं.
निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त
हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का विशेष महत्व है. इसकी शुरुआत सोमवार, 17 जून की सुबह 4.43 बजे से हो रही है. निर्जला एकादशी समापन मंगलवार, 18 जून को सुबह 6.24 बजे होगा. उदया तिथि के अनुसार एकादशी 18 जून को ही मनाई जाएगी. पारण 19 जून बुधवार को सुबह 8 बजे तक होगा.
निर्जला एकादशी का क्या महत्व है
निर्जला एकादशी के दिन बिना अन्न जल के पूरे दिन भक्त उपवास करते हैं. मान्यता है कि इस व्रत से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, जीवन में खुशहाली आती है और दौलत-शोहरत बढ़ती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से हर तरह के दुख-दर्द मिट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. शास्त्रों की अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत रखने वालों को बैकुंठ में स्थान मिलता है.