रायपुर (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। अपने मजबूत गढ़ में भाजपा की लगाई गई सेंध कांग्रेस को लम्बे समय से सालती रही है, लेकिन अपना किला वापस पाने की तमाम कोशिशों के बाद भी उसे कामयाबी नहीं मिल पाई है। कांग्रेस ने इस बार युवातुर्क विकास उपाध्याय को उतारकर युवा वोटर्स को सकेलने का दाँव तो चला है, पर सवाल यह है कि प्रदेश की सबसे हॉट सीट रायपुर में क्या कांग्रेस उन गड्ढों को भर पाएगी, जो हार का सबब बनते रहे हैं? रायपुर का विकास चुनावों में कोई मुद्दा नहीं है, क्योंकि प्रदेश की राजधानी होने का सबसे पहला लाभ रायपुर को ही मिलता है। ऐसे में भाजपा के लिए केन्द्र में मोदी और राज्य में साय सरकार के कामकाज ही उपलब्धियां हैं। इसके विपरीत कांग्रेस 5 गारंटियों के साथ 25 न्याय को लेकर मैदान में है। पार्टी महिला और युवा वोटर्स पर ज्यादा फोकस कर रही है। महालक्ष्मी न्याय योजना से लेकर अग्निवीर जैसी योजनाओं को लेकर माहौल बनाने की कोशिश है।
1996 में रमेश बैस ने रायपुर लोकसभा क्षेत्र में जो कमल खिलाया था, वह अब भी उसी हाव-भाव और ताव के साथ खिला हुआ है। कांग्रेस 96 के बाद से अब तक यहां जमीन की तलाश कर रही है, लेकिन उसकी यह तलाश खत्म होने का नाम नहीं ले रही। रमेश बैस यहां से 6 बार या कहें 23 वर्षों तक सांसद रहे। इसके बाद उन्हें राज्यपाल बना दिया गया। 2019 के पिछले चुनाव में भाजपा ने रायपुर के महापौर रहे सुनील सोनी को टिकट दिया था। जबकि इस बार 8 बार के विधायक बृजमोहन अग्रवाल पर बड़ा दाँव खेला है। रायपुर में तीसरे व अंतिम चरण में 7 मई को मतदान होगा। जातीय समीकरणों की बात करें तो रायपुर लोकसभा क्षेत्र के भाठापारा, बलौदाबाजार, धरसींवा समेत कुछ और क्षेत्रों में कुर्मी वोटर्स की संख्या ज्यादा हैं। इसी तरह अभनपुर, आरंग, बलौदाबाजार, धरसींवा और भाठापारा में सतनामी मतदाताओं की बहुलता है। रायपुर ग्रामीण, अभनपुर, आरंग, भाठापारा, बलौदाबाजार, धरसींवा और रायपुर पश्चिम में साहू मतदाता ज्यादा हैं। इन सीटों के साहू, कुर्मी और सतनामी वोटर्स सांसद चुनने में अहम भूमिका निभाते हैं। भाजपा यहां से लगातार जीत दर्ज कर रही है तो इसकी सबसे बड़ी वजह जातीय समीकरण भी रहे हैं, लेकिन इस बार दोनों ही दलों ने सामान्य वर्ग से प्रत्यशी उतारकर तमाम समीकरणों को धत्ता बताने की चेष्टा की है। गौरतलब यह भी है कि कांग्रेस इस सीट को हासिल करने के लिए पहले भी जातीय व सामाजिक आधार पर टिकट बांट चुकी है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पाई। ऐसे में इस भाजपाई किले को ध्वस्त करना कांग्रेस की सबसे पहली और बड़ी प्राथमिकता है।
ये हैं दोनों दलों के प्रमुख मुद्दे
रायपुर लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां राष्ट्रीय के साथ ही स्थानीय मुद्दे भी हावी हैं। गांव और शहर की अपनी-अपनी मांग है। भाजपा इस बार भी केंद्र की उपलब्धियां गिनवा रही है तो कांग्रेस रायपुर की जनता को बताने की कोशिश कर रही है कि पिछले 10 साल में किस तरह से देश की अर्थव्यवस्था चौपट हुई। रायपुर लोकसभा के लिए भाजपा राममंदिर, धारा 370, तीन तलाक और महिलाओं की महतारी वंदन योजना का खूब प्रचार कर रही है। इसी के साथ भाजपा ने हर मोर्चे पर ये बताने की कोशिश की है कि यदि अगली बार भी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने तो बुजुर्गों को, जिनकी उम्र 70 साल से ज्यादा हो चुकी है उन्हें 5 लाख तक का मुफ्त इलाज केंद्र सरकार देगी। इसी के साथ ही बेरोजगारी को दूर करने के लिए नई स्कीम के साथ उद्योग स्थापित किए जाएंगे। भाजपा अपनी उपलब्धियों के साथ-साथ कांग्रेस सरकार की खामियां गिनाने में भी पीछे नहीं है। वह अपनी सभाओं में ये बताने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस ने पांच साल के शासन में छत्तीसगढ़ में सिर्फ भ्रष्टाचार किया। वहीं, भाजपा की तुलना में कांग्रेस ने 5 गारंटी के साथ 25 न्याय को पूरा करने का संकल्प लिया है, जिसमें सबसे ज्यादा चर्चा 1 लाख रुपए हर साल गरीब महिलाओं को देने की है। इस महालक्ष्मी न्याय योजना के सहारे कांग्रेस विधानसभा में हुए अपने नुकसान की भरपाई करना चाह रही है। छत्तीसगढ़ में महिला वोटर्स की संख्या ज्यादा है, इसलिए कांग्रेस ने अपनी घोषणाओं में महिलाओं को टारगेट किया है। साथ ही साथ हर साल नौकरी देने, जातिगत आरक्षण के साथ अग्निवीर जैसी भर्ती को बंद करके फिर से सेना में फुल टाइम वैकेंसी की बात कांग्रेस ने कही है।
रायपुर को मिलेगा नया लीडर
भाजपा व कांग्रेस दोनों ने ही लोकसभा की दृष्टि से नए चेहरे को उतारा है। बृजमोहन अग्रवाल भले ही भाजपा के सीनियर नेता है, लेकिन वे पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं विकास उपाध्याय कांग्रेस के युवा और लोकप्रिय चेहरा हैं। ऐसे में चुनाव कोई भी जीते, रायपुर को एक नया लीडर मिलना तय है। रायपुर लोकसभा सीट पर लगभग 20 लाख 46 हजार 14 मतदाता हैं। इनमें से 10 लाख 39 हजार 867 पुरुष वोटर्स हैं, तो वहीं 10 लाख, 5 हजार, 871 महिला वोटर्स हैं। यहां महिलाओं की तुलना में पुरुष मतदाताओं की संख्या ज्यादा हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां 13 लाख, 96 हजार, 250 मतदाताओं ने मतदान किया था। तब यहां 68 फीसद मतदान हुआ था। यहां शहरी जनसंख्या 48.46 प्रतिशत है। वहीं आदिवासियों की आबादी 6 फीसद और दलितों की आबादी 17 फीसदी है। इस बार रायपुर लोकसभा क्षेत्र में 50 हजार से ज्यादा नए मतदाता पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। ऐसे में युवा वोटर्स का फैसला यहां गेमचेंजर साबित हो सकता है। युवाओं के अलावा इस बार रायपुर में थर्ड जेंडर की संख्या 305 है।
9 में से 8 सीटों पर मिली जीत
इस लोकसभा क्षेत्रांतर्गत आने वाली सभी 9 विधानसभा सीटों में से 8 पर विगत चुनाव में भाजपा ने कब्जा किया था। इस आधार पर माना जा रहा है कि भाजपा के लिए इस बार भी लोकसभा की राह में ज्यादा कठिनाई नहीं आएगी। वर्तमान लोकसभा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल स्वयं रायपुर नगर दक्षिण से रिकार्ड मतों से चुनाव जीते थे। उनके अलावा बलौदा बाजार से टंकराम वर्मा, धरसींवा से अनुज शर्मा, रायपुर नगर पश्चिम से राजेश मूणत, रायपुर नगर उत्तर से पुरंदर मिश्रा, रायपुर ग्रामीण से मोतीलाल साहू, अभनपुर से इंद्रकुमार साहू और आरंग से गुरू खुशवंत सिंह ने जीत हासिल की थी। इस लोकसभा क्षेत्र की इकलौती भाटापारा सीट पर भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा था, जहां से भाजपा के सीनियर नेता शिवरतन शर्मा चुनाव हार गए थे। यहां कांग्रेस के इंद्रकुमार साव ने 11 हजार से ज्यादा मतों से जीत हासिल की थी। हालांकि भाजपा का मानना है कि लोकसभा चुनाव में भाटापारा से भी उसे लीड मिलेगी। वहीं कांग्रेस भी रायपुर लोकसभा का रण बड़े अंतर से जीतने की बात कर रही है।
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