रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऐसा बाजार है, जो करीब 600 साल पुराना है. कलचुरी शासकों ने इस बाजार का निर्माण कराया था. छत्तीसगढ़ में कलचुरी वंश की स्थापना 1000 ईस्वी में हुई थी. कलचुरी वंश दो शाखाओं रतनपुर और रायपुर में बंटा था. रायपुर शाखा की राजधानी रायपुर के बूढ़ा तालाब में हुआ करती थी. उस दौरान रायपुर की पुरानी बस्ती में कलचुरी राजाओं ने एक हटरी यानी बाजार का निर्माण कराया. जिसे टूरी हटरी के नाम से जाना जाता है. टूरी हटरी बाजार आज भी रायपुर में स्थित है. इसका नाम नहीं बदला है.
लगभग 600 साल पुराना बाजार: इतिहासकार डॉ. रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं “टूरी हटरी का यह बाजार लगभग 600 वर्ष पुराना है. छोटी-छोटी बच्चियां, जिनकी उम्र 12 से 15 साल तक की होती थी, वे उस बाजार में व्यवसाय करती थीं.”टूरी हटरी नाम क्यों पड़ा: इतिहासकार मिश्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में छोटी बच्चियों को टूरी कहा जाता है. टूरी यानी छोटी बच्ची और हटरी यानी बाजार. इस वजह से इस बाजार को टूरी हटरी के नाम से जानते हैं. ये बच्चियां साग सब्जी मनिहारी, पान की दुकान, धोबी, मोची और अनाज की दुकान लगाती थीं. वर्ग विशेष के लोग अपने अपने व्यवसाय की दुकान लगाते थे. उस दौर में टीन के शेड और चबूतरा नहीं हुआ करता था, बल्कि जमीन में बैठकर व्यवसाय होता था.”स्थानीय निवासी विजय कुमार झा बताते हैं, “टूरी हटरी बाजार में छोटी छोटी बच्चियां, सब्जियां और दूसरे सामान बेचती थीं. महिलाएं भी व्यवसाय करती थीं. कोशिश यह भी होती थी कि इन सामानों को खरीदने के लिए महिलाएं ही बाजार आएं.”टूरी हटरी के साक्षी बरगद पीपल का पेड़ और मंदिर: इतिहासकार डॉ. रमेंद्रनाथ मिश्र कहते हैं कि इस टूरी हटरी का साक्षी और गवाह यहां मौजूद लगभग 500 साल पुराना बरगद और पीपल के पेड़ के साथ ही जगन्नाथ का मंदिर आज भी मौजूद है
स्थानीय निवासी विजय कुमार झा भी बताते हैं कि टूरी हटरी के पास स्थित जगन्नाथ मंदिर काफी पुराना है. इसी भगवान जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा पूरे रायपुर में निकलती है.
पहले वर्ग विशेष के लोग करते थे व्यवसाय: इतिहास के जानकार के मुताबिक कलचुरी शासनकाल के दौरान कार्य विभाजन जाति और वर्ग विशेष के माध्यम से हुआ करता था. मरार और पटेल समाज के लोग सब्जी बेचते थे. पान का धंधा तंबोली (बरई) लोग किया करते थे. सब्जी बेचने वाले मरार और पटेल समाज के लोग अपनी बाड़ी की ताजी सब्जी लाकर यहां पर बेचते थे. लेकिन बदलते दौर में लोग दूसरी जगह से सब्जी खरीदकर यहां पर बेचने लगे हैं. स्थान और जगह में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है.आज कैसा है बाजार का स्वरूप: स्थानीय निवासी बताते हैं कि टूरी हटरी एक मर्यादित और संयमित बाजार रहा है. वहीं टूरी हटरी बाजार में दुकान लगाने वालों का कहना है कि आज भी इस बाजार में आपसी भाईचारा और मिलजुल कर सभी लोग अपना व्यवसाय करते हैं. सब्जी और मनिहारी की दुकान के साथ ही सोना, चांदी, कपड़ा, जड़ी बूटी और अंतिम संस्कार का सामान भी यहां पर आसानी से मिल जाता है.इतिहासकार डॉ. रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 14 रजवाड़े और 36 जमीदारियां थी. इन सभी जगह पर बाजार लगते थे. मराठा काल में गोल बाजार बनाया गया, जिसे उस दौरान हटरी के नाम से ही जाना जाता था. लेकिन रायपुर का टूरी हटरी आज भी उसी नाम से विख्यात है.





