:- “ईर्ष्या की अग्नि में जलती खुशियाँ”
– बी. के. जितेंद्र सेठ (स्कूल एंड मेडिटेशन टीचर )
आज हम चारों तरफ देखते हैं, कि हर जगह व हर मनुष्य आत्मा के मन में कोई-न-कोई आग लगी हुई है। कहीं काम कि अग्नि तो कहीं क्रोध कि, कहीं लालसा की तो कहीं अभिमान की अग्नि। इन सब अग्नियों के अलावा एक और आग ऐसा भी है, जो मनुष्य के दुःख और असफलता का कारण बना हुआ है। और वो आग है “ईर्ष्या की आग” जो मनुष्य को सफलता से दूर तथा दुःख और पराजय के करीब ला कर खड़ा कर दिया है तथा अम्बन्धो को बिखेर कर रख दिया है। ये ईर्ष्या की आग बहुत ही ख़तरनाक है, इस आग में हमारे सजे सजाये सपने पुरे होने से पहले ही जलकर राख़ हो जाते हैं। हमारा लक्ष्य सिर्फ हमारे ख्यालों तक ही रह जाता है। हमारी मंजिल आईने के प्रतिबिम्ब की तरह ही हो जाता है, जिसे हम देख तो सकते हैँ पर छू नहीं सकते। ये ईर्ष्या का संस्कार अधिकांश लोगों में पाया जाता है, किसी- किसी के अंदर इतने सूक्ष्म रूप में होता है कि वह व्यक्ति स्वम स्वीकार करने से भी इंकार कर देता है।
आतंरिक शाकियों का नाश :- आखिर ये ईर्ष्या अपना प्रभाव दिखता कैसे है, जिसके कारण हम अपनी असफलता से दूर हो जाते हैँ। तो इसका सीधा सा कारण है, कि ईर्ष्या मनुष्य आत्मा के अंतर्मन में छिपी असीम शक्तियों को धीरे – धीरे जलाकर नष्ट कर देता है, जिससे मनुष्य का अंतर्मन पूरी तरह से खोखला और शक्तिहिन हो जाता है। फिर हम स्वम को इतना कमजोर व शक्तिहिन अनुभव करने लगते हैं, जिससे हमारे सफलता के मार्ग में आने वाले चुनौतियों और बाधायों का हम ठीक से सामना भी नहीं कर पाते। और परिणाम असफलता के रूप में हमारे समक्ष रहता है।
ईर्ष्या किससे होता हैं?:- ज़ब एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति से स्वम को किसी क्षेत्र, पद, प्रतिष्ठा, सम्पन्नता या सुविधा इत्यादि में कम आंकता है, तब ईर्ष्या अपना प्रभाव दिखाना प्रारम्भ करता है। सामान्य तौर पे किसी व्यक्ति को ईर्ष्या उसके समीपवर्ती लोगों कि सफलता से होता है। परन्तु एक बात का हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए कि व्यक्ति जिस चीज से ईर्ष्या करता है वो चीज उसके जीवन से दूर होने लगती है, वह चीज चाहे किसी कि सफलता हो, किसी कि प्रगति हो या किसी कि ख़ुशी हो।
ज़ब हम किसी व्यक्ति, संगठन या संस्था को सफल होते देख, हम अपने मन में उसकी असफलता के संकल्प करने लगते हैँ, तथा उसकी सफलता पर दुख़ जाहिर करने लगते हैँ, तब समझ लीजिये हमारी आंतरिक शक्तियां तेजी से क्षीण होने लगी हैं। क्योंकि इस परिस्थिति में हम अपने मन कि ऊर्जा को स्वम को सफल करने के बजाय दूसरे को असफल करने में लगा रहे हैं। इसीलिए हमारी सफलता और ख़ुशी भी हमसे दूर होने लगती है।
ईर्ष्या से बचना आसान है :- अवचेतन मन का सिद्धांत व आकर्षण का नियम ( LAW OF ATTRACTION) तो यही सिखाता है कि हम जिस चीज कि सराहना करते हैं या पसंद करने लगते हैं वो हमारी तरफ आकर्षित होने लगता हैं। ज़ब हम किसी की ख़ुशी, सफलता या उपलब्धि के लिए उसको सच्चे मन से बधाई देते हैं या सराहना करते हैं, तो हम भी उसकी ख़ुशी का हिस्सा बन जाते हैं। यद्यपि वो सफलता हमें नहीं भी मिली हो फिर भी हम उसका अनुभव करने लगते हैं, फलस्वरूप हमारे मन की शक्ति कम होने के बजाय और ही बढ़ने लगती हैं और हमारा जीवन ख़ुशी की तरफ, सफलता की तरफ तथा उपलब्धियों की तरफ अग्रसर होने लगता हैं।

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