श्रीहरिकोटा (एजेंसी)। इसरो के पूर्व वैज्ञानिक राधाकृष्ण कवलुरु ने कहा कि निशार मिशन भारत की अंतरिक्ष तकनीक की ताकत को दुनिया के सामने दिखाएगा। यह मिशन धरती का विस्तृत डाटा जुटाएगा और फिर इसे दुनियाभर में उपयोग के उपलब्ध कराया जाएगा। इससे यह पर्यावरण, जलवायु, जंगलों और ग्लेशियर पर निगरानी रखने में मदद मिलेगी। निसार मिशन भारतीय अंतरिक्ष तकनीक की ताकत को पूरी दुनिया के सामने दिखाएगा। यह इसरो और नासा का एक संयुक्त प्रयास है। यह बात मंगलवार को निसार के पूर्व परियोजना प्रबंधन राधाकृष्ण कवलुरु ने कही।
श्रीहरिकोटा से लॉन्च होगा निसार मिशन
कवलुरु ने बताया कि नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (निसार) एक वैश्विक मिशन है। इसका डाटा पूरी दुनिया के लिए डाउनलोड के लिए उपलब्ध रहेगा। इसरो इसे 30 जुलाई को शाम 5:40 बजे श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी-एमके II रॉकेट के जरिए लॉन्च करेगा। यह जीएसएलवी-एफ 16 की 18वीं उड़ान और स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ 9वीं ऑपरेशनल उड़ान होगी।

लॉन्च के 19 मिनट बाद तय कक्षा में स्थापित होगा उपग्रह
यह मिशन पहली बार जीएसएलवी रॉकेट के जरिए सौर-सिंक्रोनस ध्रुवीय कक्षा में भेजा जाएगा। 51.7 मीटर लंबा तीन-स्टेज रॉकेट चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर पूर्व में स्थित दूसरे लॉन्चपैड से उड़ान भरेगा। लॉन्च के करीब 19 मिनट बाद उपग्रह को उसकी तय कक्षा में स्थापित किया जाएगा।

उपग्रह पूरी धरती का डाटा भेजेगा
मिशन के बारे में विस्तार से बताते हुए कवलूरु ने कहा कि नासा इसमें एल-बैंड रडार देगा और इसरो एस-बैंड। दोनों मिलकर एक खास तरह का रडार बनाएंगे जो धरती के हर कोने का बहुत सारा डाटा एकत्र करेगा। इसरो के सूत्रों के मुताबिक, काउंटडाउन मंगलवार को शुरू होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, यह उपग्रह पूरी धरती का डाटा भेजेगा। इसमें अंटार्कटिका, उत्तरी ध्रुव और महासागर भी शामिल होंगे।
साबित होगी भारतीय अंतरिक्ष तकनीक की मजबूती
कवलुरु ने बताया कि पहले के इसरो उपग्रह (जैसे रिसोर्ससैट और रिसैट सीरीज) दुनिया की तस्वीरें ले सकते थे, लेकिन इनका फोकस भारत और उसके आसपास के इलाकों पर ही था। जबकि निसार पूरी दुनिया का डाटा एकत्र करेगा और दुनियाभर की सरकारें और कंपनियां इसका इस्तेमाल करेंगी। उन्होंने कहा, निसार एक ऐसा मिशन है जिससे पूरी दुनिया से हमें फीडबैक मिलेगा और इससे यह भी साबित होगा कि भारत की अंतरिक्ष तकनीक कितनी मजबूत है। यही इसकी असली अहमियत है।
एक-दूसरे के तरीकों को समझेंगे इसरो-नासा
कवलुरु ने बताया कि यह इसरो और नासा के बीच धरती पर नजर रखने वाले उपग्रह के लिए पहली बड़ी साझेदारी है। इससे दोनों एजेंसियों को एक-दूसरे की योजना और काम करने के तरीकों को समझने का मौका मिला। उन्होंने यह भी कहा कि इसरो इस मिशन से मिलने वाले ज्यादातर डाटा को ओपन-सोर्स बनाएगा, ताकि दुनियाभर के लोग उसे इस्तेमाल कर सकें। यह उपग्रह हर 12 दिन में पूरी धरती को कवर करेगा और हर महीने करीब 2.5 बार कवरेज देगा। 120 दिनों में 10 बार पूरी धरती का डाटा मिलेगा।
पांच साल के जीवनकाल के लिए डिजाइन किया गया निसार मिशन
उन्होंने बताया कि इससे हमें मौसम, जंगलों में बदलाव, पहाड़ों की हलचल और हिमालय और अंटार्कटिका में ग्लेशियर की गतिविधियों की निगरानी करने में मदद मिलेगी। कवलुरु ने कहा, यह इसरो के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण, बहुमूल्य और महत्वाकांक्षी मिशन है। जीएसएलवी-एफ16/निसार मिशन को पांच साल के जीवनकाल के लिए डिजाइन किया गया है।
इसरो की भूनिधि वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगा डाटा
लॉन्च के बाद इसरो वैज्ञानिक कई प्रक्रियाएं अपनाएंगे, ताकि उपग्रह को ठीक से चालू किया जा सके। इसमें कुछ दिन लगेंगे। जरूरत पड़ी तो उपग्रह को उसकी तय कक्षा में पहुंचाने के लिए उसमें लगे थ्रस्टर का इस्तेमाल किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसमें 12 मीटर का एक बड़ा एंटीना है, जो फिलहाल रॉकेट के अंदर फोल्ड किया हुआ है। कक्षा में पहुंचने के बाद इसे धीरे-धीरे खोला और टेस्ट किया जाएगा। इसकी लंबाई इतनी है कि तीन कारें उसके नीचे आ सकती हैं। उपग्रह की इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली को चालू करने की प्रक्रिया भी कुछ दिन चलेगी। एक सवाल के जवाब में कवलुरु ने बताया कि निसार का डाटा इसरो की ‘भूनिधि’ वेबसाइट और नासा के ‘अलास्का सैटेलाइट फैसिलिटी’ पोर्टल पर उपलब्ध रहेगा।
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