-दीपक रंजन दास
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के वक्तव्यों पर शोध करने का वक्त आ गया है. आज देश में हिन्दू होने का मतलब मुसलमानों और ईसाइयों का विरोध करना रह गया है. यह परिवर्तन पिछले एक-दो दशकों में आया है. इससे पहले तक ये सारे लोग मिलकर एक साथ राष्ट्र का निर्माण करने में जुटे हुए थे. यह परिवर्तन अपने आप नहीं आया है. इसे राजनीतिक जरूरतों के लिए लाया गया है. सोशल मीडिया का एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर इसके लिए अभिमत तैयार किया गया. ऐसी खबरें और ऐसे आख्यान प्रस्तुत किये गये कि लोग 600 साल या उससे भी पुराने इतिहास को लेकर बैठ गए. अपराधी हर कौम में है पर इनके अपराध को बड़ा करके दिखाया गया. मामला चाहे जमीनें हड़पने का हो, गिरोह बनाकर अपराध करने का हो, धार्मिक संस्थानों में कदाचरण का हो या हिंसा के जरिए आजीविका कमाने का, सभी धर्मों के लोगों की इसमें भागीदारी रही है. देश के सबसे बड़े कत्लखाने तक हिन्दुओं के ही हैं. पर अब भागवत कहते हैं कि ‘कट्टर हिंदू होने का मतलब दूसरों का विरोध करना नहीं है, बल्कि हिंदू होने का असली मतलब सबको अपनाना है. तो गांधीजी और क्या कहते थे? इसी बात पर तो गांधी का विरोध हुआ. ईश्वर अल्ला तेरो नाम का विरोध हुआ. गांधी की हत्या तक को समर्थन मिल गया. भागवत यह भी कहते हैं कि हिंदू धर्म सबको साथ लेकर चलने वाला धर्म है. वो कहते हैं कि ‘अक्सर गलतफहमी हो जाती है कि अगर कोई अपने धर्म के प्रति दृढ़ है तो वह दूसरों का विरोध करता है. हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदू होने का सार यह है कि हम सभी को अपनाएं.’ विद्या और अविद्या का महत्व समझाते हुए भागवत कहते हैं कि ज्ञान दो तरह का होता है. एक विद्या जो सत्य से परिचय करवाता है और दूसरी अविद्या जिसे हम अज्ञान भी कह सकते हैं. इससे कुछ ही समय पहले भागवत ने कहा था कि देश को सोने की चिड़िया नहीं बल्कि शेर बनाना है. दुनिया शक्ति की ही बात समझती है और भारत को शक्ति संपन्न होना चाहिए. लेकिन विश्व गुरु भारत कभी युद्ध का कारण नहीं बनेगा, बल्कि वह विश्व में शांति और समृद्धि का संदेशवाहक होगा. भारत की यह पहचान उसकी शिक्षा प्रणाली और सांस्कृतिक मूल्यों से और मजबूत होगी. इतनी गूढ़ बातें आसानी से लोगों की समझ में नहीं आने वाली. विरोध करना और हिंसा करना बहुत आसान है. किसी को क्षमा करने के लिए इससे कहीं बड़े आत्मबल की जरूरत होती है. इसलिए अब संघ प्रमुख की बातों पर शोध करने का वक्त आ गया है. अच्छा हो कि इन शोधों के निष्कर्षों को आम लोगों के बीच पहुंचाया जाए. सदियों पहले कुरुक्षेत्र में जो धर्म युद्ध हुआ था, उसका मर्म समझने की भी जरूरत है. यह युद्ध एक ही परिवार के स्वधर्म के लोगों के बीच हुआ था.
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