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Gustakhi Maaf: तो गुलामी का दौर खत्म नहीं हुआ है अभी

-दीपक रंजन दास
देश जल्द से जल्द विकसित मुल्कों की सूची में अपना नाम लिखवाने के लिए उतावला हो रहा है. दूसरी तरफ देश की गरीब आबादी आज भी गुलामी के दौर में जी रही है. कौन यकीन कर सकता है कि आज भी लोग अपनी फैक्टरी में काम करने के लिए बंधुआ मजदूर लेकर आते हैं. उनसे 18-18 घंटे काम लेते हैं. रूखा सूखा खाने के लिए देते हैं. उन्हें फैक्टरी के बाहर जाने की इजाजत तक नहीं होती. आराम करने पर उन्हें पीटा जाता है. खौफ ऐसा कि अपना वेतन तो वो मांग ही नहीं पाते. अपने-अपने गांव से निकलकर दूर दराज के शहरों में रोजगार की तलाश में पहुंचने वाले इन लोगों के बारे में आम शहरी तभी जान पाते हैं जब वो खुद बाहर निकलकर अपनी फरियाद करते हैं. पर ऐसा छत्तीसगढ़ में सबकी नाक के नीचे हो रहा होगा, इसकी तो कल्पना करना भी मुश्किल है. घटना रायपुर के मोजो मशरूम फैक्ट्री की है. पुलिस ने यहां के 4 ठेकेदारों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. आरोप है कि ये ठेकेदार काम के बहाने नाबालिगों को अलग-अलग राज्यों से रायपुर लेकर आए. यहां बंधक बनाकर उनसे 18-18 घंटे तक मशरूम कटिंग और पैकिंग का काम करवाया. मारपीट भी की. इनमें नाबालिग मजदूर भी शामिल थे. 11 जुलाई को महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने अन्य विभागों के साथ मिलकर यहां से 97 मजदूरों को मुक्त करवाया था. सभी मजदूर उत्तर प्रदेश बिहार और झारखंड के रहने वाले थे. मोजो मशरूम फैक्टरी खरोरा के उमाश्री राइस मिल कैंपस के भीतर है. दोनों ही मालिकों का अच्छा खासा रसूख है. वैसे भी कौन किसी की फैक्टरी में ताकझांक करता है. दरअसल, पेशगी देकर मजदूर उठाने का चलन पुराना है. अच्छी तनख्वाह का लालच देकर श्रमिक ठेकेदार इन्हें ले तो जाते हैं पर वादे से मुकरने में उन्हें एक मिनट भी नहीं लगता. ईंट भट्ठों से लेकर ऐसे प्रत्येक उद्यम में जहां ज्यादा मजदूरों की जरूरत पड़ती है, इसका चलन है. शासन प्रशासन सभी आंखें मूंदे रहते हैं. यार दोस्त भी चुप ही रहते हैं. सबका हिस्सा फिक्स होता है. इस मामले में तो हद यह हो गई कि मजदूरों के आधार कार्ड और मोबाइल फोन तक छीन लिये गये थे. किसी तरह कुछ मजदूर फैक्टरी से भाग निकले और लगभग 15 किलोमीटर चलकर रायपुर पहुंचे और पुलिस को अपना दुखड़ा सुनाया. इसके बाद कहीं जाकर मामले का खुलासा हुआ. यहां भी वही हुआ जो ऐसे मामलों में पहले भी होता रहा है. फैक्टरी मालिक को छोड़कर श्रमिक ठेकेदारों को आरोपी बनाया गया. फैक्टरी का बाल भी बांका नहीं होगा. श्रमिक ठेकेदार नए पैदा हो जाएंगे. इस बार मजदूर किसी और गांव से फांसे जाएंगे. मुफ्त राशन और लाड़ली बहना टाइप की योजनाओं ने वैसे ही श्रमिक घनिष्ठ इकाइयों की हालत खराब कर रखी है. इसके चलते खेती किसानी की भी लागत बढ़ गई है.

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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