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Gustakhi Maaf: छत्तीसगढ़ में बन रही साइबर कमांडो की फौज

-दीपक रंजन दास
प्रदेश में बढ़ते साइबर अपराध को रोकने के लिए साइबर कमांडो की फौज तैयार की जा रही है. हालांकि इनके पास कोई खास अधिकार नहीं होंगे पर पुलिस के लिए इनकी मदद से साइबर अपराधियों पर नकेल कसना जरूर आसान हो जाएगा. कमांडोज़ को देश के चोटी के संस्थानों में छह माह का प्रशिक्षण लेना होगा. पहले चरण में पुलिस के सात अधिकारियों और जवानों की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है. अब दूसरा बैच भेजा जाएगा. प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी आईआईटी मद्रास, कानपुर, कोट्टायम एवं नवा रायपुर, राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय गांधीनगर, रक्षा उन्नत प्रौद्योगिकी संस्थान पुणे, राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय गांधीनगर और दिल्ली को सौंपी गई है. साइबर कमांडो सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों, नफरत फैलाने वालों की पहचान करने के साथ देशद्रोहियों को पहचानने का काम भी करेंगे. 200 साइबर वॉलंटियर्स उनकी मदद करेंगे. वॉलंटियर्स में सेना से रिटायर्ड अधिकारियों के अलावा आम लोग और साइबर एक्सपर्ट भी शामिल होंगे. साइबर कमांडो डिजिटल सबूत जुटाने के अलावा जागरूकता अभियान चलाएंगे. साइबर क्रिमिनल्स की पहचान कर उनपर नजर रखेंगे. हैकिंग और मैलवेयर की जांच और विश्लेषण करेंगे. साइबर बुलींग, मॉर्फिंग, फर्जी आईडी जैसी समस्याओं से पीड़ितों की मदद करेंगे. यह जरूरी भी था. यह दुनिया की बदलती तस्वीर के अनुकूल भी है. प्रदेश में पिछले कुछ सालों में साइबर फ्राड्स के केसों की बाढ़ आ गई है. मामले लगातार बढ़ रहे हैं और पुलिस अधिकांश शिकायतों पर ध्यान नहीं दे पा रही. कमांडो इस दिशा में पुलिस की मदद करेंगे. पर अब आते हैं मुख्य उद्देश्य पर. सरकार ने कहा है कि सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वालों, गलत सूचनाएं देने वालों और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को चलाने वालों पर नजर रखी जाएगी. बड़ा सवाल यह है कि यह कौन तय करेगी कि जो सूचनाएं दी जा रही हैं वो नफरत फैलाने या भड़काने वाली हैं या नहीं. गलत सूचनाओं का पर्दाफाश तो पहले ही अलग-अलग वेबसाइट कर रहे हैं पर कौन सी हरकत राष्ट्रविरोधी है और कौन सी नहीं, उसे कौन तय करेगा? कमांडों के पास तकनीकी दक्षता तो होगी किन्तु उसे भी अपने आकाओं की इच्छा पर शहीद होने के लिए तैयार रहना चाहिए. दरअसल, नफरत फैलाने वाली भाषा को लेकर हम पर्याप्त संवेदनशील नहीं है. कुछ लोगों में पता नहीं कौन उपकरण लगा हुआ है कि उन्हें लगता है कि लड़ाई संख्या बल से जीती जाती है. कोई हिन्दू मुसलमान को लड़ा रहा है, कोई मुसलमान को डरा रहा है, कोई सिखों को हिन्दुओं से सावधान रहने के लिए कह रहा है. इसका नमूना भी हम देख चुके हैं. जब ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एक मुस्लिम सेना अधिकारी द्वारा प्रेस ब्रीफिंग किये जाने पर कुछ लोगों ने आपत्ति कर दी. क्या ऐसे लोगों से राष्ट्र को कोई संकट नहीं है? हमें समझना होगा कि हमला हमेशा प्रत्यक्ष नहीं होता. दुश्मन हमेशा सामने से नहीं आता. अगर गृहस्थी चलानी है तो सबको साथ लेना होगा.

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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