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Gustakhi Maaf: डंडा सिर्फ प्राइवेट स्कूलों पर

-दीपक रंजन दास
प्रदेश में स्कूलों के युक्तियुक्त करण को लेकर बवाल मचा हुआ है. इससे 25 हजार शिक्षकों का पद प्रभावित होगा, अर्थात विलोपित हो जाएगा. सरकार कह रही है कि इससे स्कूलों का स्तर सुधरेगा. छात्र-शिक्षक अनुपात बेहतर होगा. शिक्षक विहीन स्कूल नहीं रहेंगे. दरअसल, सरकार स्कूल चाहे जितने खोल ले पर इसके आगे वह ज्यादा कुछ नहीं कर पाती. सरकार का डंडा केवल निजी स्कूलों पर चलता है. उनके लिए तमाम नियम हैं. इतनी जगह होनी चाहिए, इतने शिक्षक होने चाहिए, इतने भृत्य होने चाहिए और अगर नहीं हुए तो उनकी मान्यता निरस्त करने की धमकी दे दी जाती है. जबकि सरकारी स्कूलों के लिए ऐसा कुछ नहीं है. नेताजी घोषणा कर आते हैं और नए सत्र से स्कूल खुल जाता है. कभी उसके पास अपना भवन नहीं होता तो कई बार शिक्षकों की व्यवस्था नहीं हो पाती. राज्य के 30,700 प्राइमरी स्कूलों में औसतन प्रति शिक्षक 21.84 बच्चे हैं. वहीं 13,149 मिडिल स्कूलों में यह अनुपात 26.2 बच्चों का है. 212 प्राइमरी स्कूल शिक्षक विहीन हैं. 6,872 प्राथमिक स्कूल एक शिक्षक के भरोसे हैं. वही हेडमास्टर है, वही टीचर है और वही हरकारा. 48 मिडिल स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं. 255 मिडिल स्कूल एक-एक शिक्षक के दम पर चल रहे हैं. 362 स्कूल ऐसे भी हैं जहां शिक्षक तो नियुक्त हैं पर वहां कोई छात्र नहीं है. शहरी क्षेत्रों की बात करें तो 527 स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात 10 या उससे भी कम है. 245 स्कूलों में अनुपात 40 या ज्यादा है. इसलिए स्कूल शिक्षा विभाग ने स्कूलों से युक्तियुक्तकरण का प्रस्ताव मांगा. इसके आधार पर अब 10,463 स्कूलों का युक्तियुक्तकरण किया जाना है. इनमें ई-संवर्ग के 5849 और टी-संवर्ग के 4614 स्कूल हैं. युक्तियुक्तकरण के तहत जहां छात्र नहीं, वहां के शिक्षकों को वहां भेजेंगे जहां शिक्षक नहीं हैं. स्कूल संचालन का खर्च घटेगा. संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा. एक परिसर में प्राथमिक, माध्यमिक, हाई स्कूल एवं हायर सेकेंडरी होंगे. बच्चों को बार-बार एडमिशन लेना नहीं पड़ेगा. ड्रॉपआउट रेट घटेगी. लैब, लाइब्रेरी एक जगह देना आसान होगा. दरअसल, स्कूली शिक्षा का स्वरूप तेजी से बदल रहा है. अभिभावक पूरी कोशिश करते हैं कि उनका बच्चा अंग्रेजी माध्यम की शाला में पढ़ाई करे. आत्मानंद स्कूल खुलने के बाद बच्चों का तेजी से ध्रुवीकरण हुआ. इसलिए भी सरकारी स्कूलों की छात्र संख्या गिरती चली गई. भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संचालित स्कूलों में से हिन्दी मीडियम के स्कूल सालों पहले बंद किये जा चुके हैं. अब कर्मचारी संख्या घटने के बाद अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों का भी युक्तियुक्तकरण हो रहा है. अफसरों के बच्चे डीपीएस में पढ़ने चले गए तो नामचीन बीएसपी स्कूल हाशिए पर आ गए. यही हश्र अब सरकारी स्कूलों का हो रहा है. दिक्कत केवल यह है कि यहां काम करने वाले सरकारी मुलाजिम हैं. उनका क्या होगा? शिक्षकों की भर्ती का क्या होगा? बीएड-डीएड धारी उच्च शिक्षित होनहार विद्यार्थियों का क्या होगा? नौकरी कैसे पैदा होगी?

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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