-दीपक रंजन दास
कुम्हारी में एक सड़क हादसा हो गया। रात के अंधेरे में डिस्टलरी के मजदूरों को लेकर आ रही बस सड़क किनारे की खाई में जा गिरी। लगभग 50 फीट गहरी खाई में गिरने के कारण दर्जनभर मजदूरों की मौत हो गई। घायलों का अलग-अलग अस्पतालों में इलाज हो रहा है। कंपनी ने हर्जाने के साथ ही मृतकों के परिजनों को नौकरी आदि का आश्वासन दिया है। सरकार फिलहाल चुप है क्योंकि आचार संहिता लगी हुई है। घटना ताजा है, इसलिए हायतौबा मची हुई है। पर देश में इस तरह के हादसे रोज होते हैं। सरकार को छोड़ भी दें तो ऐसी घटनाओं को लेकर जनता भी ‘बेहिसÓ है। हादसे को लेकर कोसने का काम शुरू हो गया है। सवाल उठाया जा रहा है कि मजदूरों को 15 साल से भी पुरानी बस में ढोया जा रहा था। देश चाहे कितना भी ‘शाईनÓ क्यों न कर रहा हो, अभी भी उसका कलेजा इतना बड़ा नहीं हुआ है कि वह अच्छी खासी चलती लाखों की गाड़ी को कबाड़ में बेच दे। हादसा बस के खाई में गिरने की वजह से हुआ। बस नई भी होती तो भी यह हादसा हो सकता था, मौत का आंकड़ा भी लगभग ऐसा ही होता। सवाल यह है कि मैदानी इलाके में खाई कहां से आ गई? मुरुम, मिट्टी और गिट्टी वाली कंपनियां किस हद तक जा सकती हैं, कुम्हारी की खाई इसका एक छोटा उदाहरण है। इस खाई को लोग रोज देख रहे हैं पर चुप हैं। वह तो तब भी चुप रहते हैं जब वनांचलों में रहने वाले लोग पेड़ों की कटाई का विरोध करते हैं, कोयले की खुली खदानों के विरुद्ध भूख हड़ताल करते हैं। वो इसे वनवासियों की समस्या मान लेते हैं। अधिकांश को तो इसके बारे में कुछ पता भी नहीं होता। हादसे को लेकर यह सवाल भी उठा कि वहां स्ट्रीट लाइट नहीं है। स्ट्रीट लाइट तो अधिकांश हाइवे पर भी नहीं है। इसलिए तो गाडिय़ों में हेडलाइट होती है। हेडलाइट जलाने के बाद भी गाडिय़ां सड़क पर सो रहे मवेशियों पर चढ़ जाती है, गड्ढों में उछल जाती है, डिवाइडर से टकरा जाती है, सड़क छोड़ कर उतर जाती है या पेड़ों से भिड़ जाती है। लोगों को हेडलाइट जलाने की तमीज नहीं है। वो कभी डिपर नहीं देते। हेडलाइटों को छोड़ भी दें तो आजकल गाडिय़ों की टेल लाइट भी कमाल की होती है। इनकी चमक भी पीछे वाले चालक को कुछ देर के लिए अंधा कर देती है। हेडलाइट और टेललाइट के चलते अंधा हुआ चालक अंदाजे में गाड़ी चला रहा होता है। रात को होने वाले 10 में से 8 सड़क हादसे इसी का परिणाम होते हैं। पर हम इन सभी विसंगतियों के साथ न केवल जी रहे हैं बल्कि खुश भी हैं। हादसों के बाद का यह चीखना-चिल्लाना और रोना-पीटना इसलिए भी अखरता है। कोई तो हादसों को रोकने की दिशा में भी काम करे।
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