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सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष से लौटने के बाद बताया, आसमान से कैसा दिखता है भारत

ह्यूस्टन (टेक्सस) के जॉनसन स्पेस सेंटर में हुई इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष में क़रीब 9 महीने से अधिक समय तक बिताए अनुभवों और फिर धरती पर वापस लौटने और भारत के बारे में भी चर्चा की.

उन्होंने स्पेस स्टेशन पर रहते हुए शरीर पर होने वाले प्रभावों का ज़िक्र किया और फिर धरती पर आने के बाद हुए असर के बारे में बताया.

एक पत्रकार के सवाल के जवाब में सुनीता विलियम्स ने बताया कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) से भारत और हिमालय कैसा दिखता है.

आईएसएस में रहने के दौरान अंतरिक्ष से भारत को देखने पर क्या आपको कोई ख़ास पल याद हैं, स्पेस से भारत कैसा दिखाई देता है, इस सवाल पर उन्होंने कहा, “भारत शानदार है, जब कभी भी हम हिमालय के ऊपर से गुज़रते थे तो बुच ने हिमालय की कुछ शानदार तस्वीरें ली थीं.”

उन्होंने कहा, “मैंने पहले भी बताया है कि जब प्लेट्स आपस में टकराती हैं तो जिस तरह की लहरें उठती हैं और फिर वो भारत की तरफ़ जाती हैं. जब आप भारत के पूर्व से पश्चिम की तरफ आते हैं, जैसे गुजरात या मुंबई की तरफ तो आपको मछली पकड़ने वाले जहाज़ दिखते हैं तो मालूम पड़ता है कि आप इस तरफ हैं.”

“भारत के बारे में पूरी तरह से कहूं तो मेरे दिमाग में ऐसी छवि है कि यह रोशनी का एक नेटवर्क है. जो बड़े शहरों से छोटे शहरों की तरफ जाती है. रात में इसे देखना बेहतरीन है. दिन में भी देखना शानदार है, हिमालय के बारे में मैंने आपको बताया ही है.”

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के साथ अपनी विशेषज्ञता साझा करने और भारत आने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, “जहां तक भारत जाने की बात है, तो निश्चित तौर पर मैं उस देश में जाना चाहूंगी जहां मेरे पिता का घर है. वहां लोगों से मिलना अच्छा रहेगा और वहां उन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों से भी मिलना होगा जो स्पेस में जाने वाले हैं. उनके साथ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के अनुभव साझा करना अच्छा रहेगा.”

“वैसे भारत महान देश है, और वो स्पेस की दुनिया में कदम बढ़ाना चाहते हैं, मुझे उसमें सहयोग करके खुशी होगी.”

सुनीता विलियम्स ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वह भारत आएंगी

सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर पाँच जून को बोइंग के स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन गए थे, उन्हें एक हफ़्ते में अंतरिक्ष के वापस लौटना था.

लेकिन इस यान में तकनीकी ख़राबी आ गई और इस वजह से नासा को उन्हें धरती पर लाने में क़रीब नौ महीने का वक़्त लग गया.

उनके परिवार और अमेरिका के लाखों लोगों के साथ ही सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा पर भारत में गुजरात के एक गांव के लोगों की ख़ास नज़र थी.

यह गांव है झुलासण गांव, जो राजधानी गांधीनगर से क़रीब 40 किलोमीटर दूर है और सुनीता का पैतृक गांव है.

सुनीता विलियम्स के पिता दीपक पंड्या का जन्म इसी गांव में हुआ था. साल1957 में वो मेडिकल की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए थे. वहाँ उन्होंने उर्सलीन बोनी से शादी की

सुनीता इसी दंपती की संतान हैं. सुनीता का जन्म 1965 में हुआ था.

इस गांव की आबादी क़रीब सात हज़ार है और यहां अलग-अलग जातियों और समुदायों के लोग रहते हैं.

सुनीता विलियम्स दो बार अपने गांव आ चुकी हैं. साल 2007 और साल 2013 में. दोनों बार वो यहां अपने अंतरिक्ष अभियानों को पूरा करने के बाद ही आई थीं.

सुनीता विलियम्स जब 2013 में यहां आई थीं तो दर्शन के लिए प्रसिद्ध दाला माता मंदिर गई थीं. गांववालों ने इस बार सुनीता की वापसी के लिए इस मंदिर में भी प्रार्थना की थी.

सुनीता विलियम्स ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उस सवाल का जवाब भी दिया है, जिसपर अक्सर चर्चा की जाती है कि अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने का शरीर पर क्या असर होता है?

अगर अंतरिक्ष में अधिक समय बिताना पड़े तो बहुत समर्पित और अनुभवी अंतरिक्ष यात्रियों को भी कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

ट्रेनिंग के दौरान जो अनुभव होता है, वो असली मिशन का तीन चौथाई होता है.

लेकिन अगर निर्धारित समय से अधिक वक़्त गुजारना पड़े तो उनके उत्साह में भी कमी आ सकती है.

अंटार्कटिका में शोध करने वाले वैज्ञानिकों को भी कभी कभार ऐसी मानसिक अवस्था से गुजरना पड़ता है जिसे “साइकोलॉजिकल हिबरनेशन” कहते हैं, जिसमें व्यक्ति भावना शून्य और बिल्कुल अलग-थलग महसूस करने लगता है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि ध्रुवीय और अंतरिक्ष मिशन पर जाने वालों के हालात एक जैसे होते हैं और अच्छी नींद लेकर इन दिक्कतों को कम किया जा सकता है.

सुनीता विलयम्स कहा, “यह सच में एक चमत्कार जैसा है कि हमारा शरीर कैसे बदलाव के साथ खुद को ढाल लेता है. जब मैं वापस आई, तो पहले दिन हम सभी थोड़ा लड़खड़ा रहे थे.”

“यह सच में कमाल की बात है कि सिर्फ़ 24 घंटों में हमारा नर्वस सिस्टम काम करने लगता है. हमारे दिमाग को समझ में आ जाता है कि क्या हो रहा है.”

आईएसएस में शून्य गुरुत्वाकर्षण के वातावरण में रहने से शरीर की मांसपेशियों और हड्डियों के कमज़ोर होने का ख़तरा होता है

इसलिए आईएसएस में हर दिन चार घंटे तक अंतरिक्ष यात्रियों को व्यायाम करना होता है.

इन दोनों यात्रियों ने हर दिन 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखा और अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इससे तालमेल बिठाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण रहा.

सुनीता विलियम्स इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर गई थीं, लेकिन कुछ तकनीकी दिक्कतों की वजह से उन्हें वहां तय समय से ज्यादा रहना पड़ गया था.

286 दिन तक स्पेस में रहने के बाद सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर 19 मार्च को पृथ्वी पर लौटे थे.

इस दौरान सुनीता और बुच ने 900 घंटों तक रिसर्च किया और 150 वैज्ञानिक प्रयोग किए.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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