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क्यों सुलग रहा बलूचिस्तान? कौन है बीएलए और क्यों ट्रेन पर किया गया हमला, जानें

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अलगाववादी संगठन बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी के लड़ाकों ने मंगलवार को एक जोरदार हमला किया और क्वेटा से पेशावर जा रही एक यात्री रेलगाड़ी जाफर एक्सप्रेस को अगवा कर लिया. पाकिस्तान के एक दूरदराज इलाके में हुई इस वारदात की बहुत ही कम तस्वीरें अभी तक सामने आई हैं.नई दिल्ली:

आपने कार या विमान को हाइजैक होते हुए सुना या देखा होगा लेकिन क्या आपने कभी ट्रेन को हाइजैक होते हुए सुना है? हो सकता है कि आपने सुना हो कि किसी ट्रेन को लूटा गया है लेकिन ट्रेन को हाइजैक होते हुए आज से पहले शायद ही किसी ने सुना होगा. दरअसल, आज पाकिस्तान में एक ट्रेन हाइजैक हो गई है. तो चलिए आपको हमारे इस एक्सप्लेनर में बताते हैं कि इस ट्रेन को किसने हाइजैक किया है और क्यों किया है. साथ ही इस संगठन का मकसद क्या है. साथ ही आपको ये भी बताते हैं कि पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत क्यों सुलग रहा है और बलूच के लोगों को पाकिस्तान से क्या शिकायत है

पाकिस्तान ट्रेन हाइजैक का ब्योरा

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अलगाववादी संगठन बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी के लड़ाकों ने मंगलवार को एक जोरदार हमला किया और क्वेटा से पेशावर जा रही एक यात्री रेलगाड़ी जाफर एक्सप्रेस को अगवा कर लिया. पाकिस्तान के एक दूरदराज इलाके में हुई इस वारदात की बहुत ही कम तस्वीरें अभी तक सामने आई हैं. दरअसल, मंगलवार सुबह 500 यात्रियों के साथ ट्रेन जाफर एक्सप्रेस बलूचिस्तान के दूर दराज पहाड़ी इलाके गुडालार और पीरू कोनेरी से गुजर रही थी. इस इलाके में 17 सुरंगें हैं. ट्रेन जब सुरंग नंबर 8 से गुजर रही थी तभी बीएलए के लड़ाकों ने पटरी को उड़ा दिया और ट्रेन को पटरी से उतार दिया. इसके बाद ट्रेन पर हमला कर दिया. हमले के तुरंत बाद बीएलए के लड़ाके जानकारी के मुताबिक बीएलए ने दावा किया है कि ट्रेन उसकी फिदायीन यूनिट माजीद ब्रिगेड के नियंत्रण में है और उसने ट्रेन में सवार 20 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया है और 182 लोगों को बंधक बना लिया है. महिलाओं, बुज़ुर्गों, बच्चों और बलूच लोगों को सुरक्षित रिहा कर दिया गया है. हालात से निपटने के लिए पाकिस्तानी सेना ने इलाके को घेर लिया है और बीएलए के लड़ाकों के साथ उनकी झड़प जारी है. हालांकि, रात होनेपाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नकवी ने हमले की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार निर्दोष यात्रियों पर हमला करने वालों के साथ कोई रियायत नहीं बरतेगी. उधर बीएलए के एक प्रवक्ता जीयांद बलोच ने कहा है कि पाकिस्तान की सेना ने अगर कोई गुस्ताखी की तो बंधकों को मार दिया जाएगा क्योंकि उसके फिदायीन शहादत देने के लिए तैयार हैं. ये भी जानकारी सामने आई है कि बीएलए ने कई बलूच नेताओं को जेल से छोड़े जाने की मांग की है. पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार आरजू काजमी ने

बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी ने क्यों किया जाफर एक्सप्रेस को हाइजैक

पाकिस्तान जब आजाद हुआ तो उसे चार प्रांतों में बांटा गया. पंजाब प्रांत जो पाकिस्तान की सियासत में हमेशा से ही सबसे ताकतवर सूबा बना रहा जिसकी राजधानी लाहौर है. इसके अलावा सिंध जिसकी राजधानी कराची है, तीसरा प्रांत खैबर पख़्तूनख़्वा जिसे पहले नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस कहा जाता था और जिसकी राजधानी पेशावर है और चौथा सूबा है बलूचिस्तान जिसकी राजधानी क्वेटा

  • बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जहां बलूच समुदाय रहता है.
  • पाकिस्तान के पूरे क्षेत्रफल का 44 फीसदी अकेले बलूचिस्तान में है.
  • लेकिन पाकिस्तान की आबादी का महज छह फीसदी ही इतने बड़े इलाके में बसता है.
  • बलूचिस्तान कुदरती संसाधनों से भरपूर इलाका है और यही इसकी मुसीबत की सबसे बड़ी वजह है.
  • बलूचिस्तान की 1100 किलोमीटर सीमा समुद्र से लगती है. जो समुद्री संसाधनों और व्यापार के लिहाज से काफी अहम है.ऐसे ही एक समुद्र तट को ग्वादर बंदरगाह के तौर पर पाकिस्तान ने चीन के सहयोग से विकसित किया है. वैसे ऐतिहासिक तौर पर बात की जाए तो बलूच लोग दावा करते हैं कि वो 1200 साल ईसा पूर्व से बलूचिस्तान में रहते हैं. जो आज तीन मुख्य भाषाएं बोलते हैं बलूची, ब्राह्वी और सरायकी. आज के दौर में बलूच एक सुन्नी मुस्लिम समुदाय है जो ईरान और पाकिस्तान सीमा के आरपार रहता है. इसके अलावा दक्षिणी अफगानिस्तान में भी बलूच लोग काफी तादाद में रहते हैं. पाकिस्तान वाले इलाके को बलूचिस्तान और ईरान वाले इलाके को सीस्तान-बलूचिस्तान कहा जाता है. सीमा के दोनों ओर उन्हें हिंसक दमन का सामना करना पड़ता रहा है. ईरान में बलूच लोगों की मुश्किल ये है कि वो एक शिया बहुल देश में सुन्नी अल्पसंख्यक हैं. पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान में बलूच लोगों की आबादी करीब 90 लाख है जो बड़े इलाके में बिखरी हुई है. कई कबीलों में बंटे बलूच लोग अपनी राष्ट्रीयता को आज भी शिद्दत से महसूस करते हैं और इसे दबाने में जुटे रहे पाकिस्तान से उनकी नाराजगी पुरानी है.दरअसल जब पाकिस्तान आजाद हुआ तो कई रियासतों का उसमें विलय हुआ और कई को उसने दबाव से अपने में मिलाना शुरू किया. इसके अलावा कुछ पर जबरन कब्जा भी किया गया. इन्ही में से एक थी कलात की रियासत. कलात के शासक अहमद यार खान ने पाकिस्तान की आजादी से पहले ही 12 अगस्त, 1947 को अपनी रियासत की आजादी का एलान कर दिया था लेकिन पाकिस्तान ने अपने गठन के बाद ताकत का इस्तेमाल कर 27 मार्च, 1948 को कलात का अपने में जबरन विलय करा लिया और तीन अन्य रियासतों को मिलाकर 1948 में बलूचिस्तान प्रांत का गठन कर दिया.

    बलूच राष्ट्रवादी तब से ही जबरन हुए इस विलय का विरोध करते रहे हैं और कहते हैं कि बलूच लोग अपनी मर्जी से पाकिस्तान में नहीं मिले. पाकिस्तान के कब्जे से नाराज बलूच लोगों ने विद्रोह शुरू कर दिए जिन्हें पाकिस्तान अपनी फौजी ताकत से दबाता रहा. 1958, 1973, 2005 के विद्रोह ऐसे ही कुछ बड़े विद्रोह रहे. बलूच लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान ने जबरन कब्जा करने के अलावा बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का भारी दोहन किया है और बदले में बलूच लोगों को कुछ नहीं मिल रहा. इस वजह से बलूचिस्तान पाकिस्तान के सबसे गरीब इलाकों में से एक है. इसके अलावा बलूचिस्तान के लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से महरूम किए जाने का आरोप पाकिस्तान सरकार पर लगता रहा है.

    इन सब कारणों से पाकिस्तान का विरोध करने वालों में कई बलूच संगठन शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं तो कई हथियारबंद आंदोलन कर रहे हैं. ऐसे हथियारबंद संगठन आए दिन पाकिस्तान के सैनिक और नागरिक ठिकानों

पर हमला करते रहे हैं. ताज़ा हमला उसी की एक कड़ी है.

बीते पच्चीस साल में इनमें से एक हथियारबंद संगठन सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा है और पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुंचाता रहा है वो है बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी यानी बीएलए. बीएलए उन हथियारबंद लड़ाकों से निकला है जिन्हें बलूचिस्तान के मरी, बुगती, मेंगल और अन्य बलोच कबीलों और उनके सरदारों का समर्थन हासिल है. कई जानकार कहते हैं कि बलोच आंदोलन तत्कालीन सोवियत संघ और उसकी मार्क्सवादी विचारधारा से भी प्रभावित है. यहां तक कि बलोच आंदोलन के कई नेताओं को रूस में भी ट्रेनिंग दी गई है. उसी क्रांतिकारी भावना के साथ बीएलए भी काम कर रहा है. बीएलए के छह हजार से ज्यादा लड़ाके बलूचिस्तान प्रांत और अफगानिस्तान से लगे सीमांत इलाकों में फैले हुए हैं.

वैसे तो बीएलए को कई बलूच नेताओं का समर्थन हासिल है लेकिन बलूच कबीलों के नेता बीएलए के साथ अपने संबंधों को जाहिर नहीं करते. खासतौर पर 2006 से जब पाकिस्तान ने बीएलए पर पाबंदी लगा दी. इसके बावजूद बीते कुछ सालों में बीएलए ने बलूचिस्तान के ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में अपना अच्छा नेटवर्क बना लिया है. पारंपरिक कबीलाई सरदारों की पकड़ से बाहर बीएलए ने बलूच लोगों पर अपनी एक अलग पकड़ बनाई है. खास बात ये है कि बीएलए पारंपरिक सरदार या कबीलाई व्यवस्था के विरोधी हैं. बीएलए लड़ाकों का दावा है कि वो पाकिस्तान से बलूचिस्तान की आजादी और बलूच समाज में अंदरूनी सुधारों के लिए लड़ रहे हैं. गैर पारंपरिक रुख के कारण बीएलए युवा और शिक्षित बलूच लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय है. जानकारों के मुताबिक बीएलए ने न सिर्फ बलूचिस्तान पर पाकिस्तान की पकड़ कमज़ोर की है बल्कि बलोच समाज पर पारंपरिक कबीलाई सरदारों की पकड़ भी कमजोर की है.

बीएलए का नेतृत्व किसके हाथ में है ये साफ नहीं है. एक रणनीति के तहत बीएलए ने अपने नेतृत्व को अलग अलग इलाकों के स्थानीय कमांडरों के बीच बांटा हुआ है. 2018 में असलम बलोच नाम का बीएलए का एक क्रांतिकारी नेता कंधार में एक आत्मघाती बम धमाके में अपने कुछ साथियों के साथ मारा गया था. पाकिस्तान सेना के इस ऑपरेशन में असलम बलोच के मारे जाने के बाद से बीएलए ने अपने नेतृत्व को लेकर रणनीतिक तौर पर खामोशी बनाए रखी है और उसके कई स्थानीय कमांडर मिलकर आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं. बलूचिस्तान के आंदोलन की अधिकतर बड़ी हस्तियां या तो पाकिस्तान के बाहर रहती हैं या फिर गोपनीय तरीके से बलूचिस्तान में ही कहीं रहती हैं.

बीएलए के अलावा बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए लड़ने वाला एक और हथियारबंद संगठन है बलूचिस्तान लिब्रेशन फ्रंट यानी बीएलएफ जिसका गठन 1964 में जुम्मा ख़ान ने किया था. बीएलएफ़ एक दौर में बलूचिस्तान के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ करता था लेकिन माना जाता है कि बाद के दौर में बीएलएफ के कई लड़ाके बीएलए में शामिल हो गए. इसके अलावा वहां दो और संगठन हैं – फ्री बलूचिस्तान मूवमेंट और बलूच रिपब्लिकन पार्टी जिनकी अगुवाई मरी और बुगती परिवारों के वंशज करते हैं. मरी और बुगती कबीलों पर भी पाकिस्तान की सेना ने भारी अत्याचार किए हैं लेकिन ये संगठन पाकिस्तान के ख़िलाफ हथियारबंद विद्रोह नहीं करते.

 

Manoj Mishra

Editor in Chief

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