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खाद्य तेल की कीमतों में लगी आग, त्यौहारी सीजन से पहले ही शुरू हो गई मुनाफाखोरी

रायपुर। छत्तीसगढ़ में त्यौहारी सीजन शुरू होने से पहले ही मुनाफाखोरी का खेल शुरू हो गया है। खाद्य तेलों के दाम अचानक से 40 से 50 रूपए बढ़ा दिए गए हैं। हालांकि इसके पीछे केन्द्र सरकार द्वारा आयात शुल्क बढ़ाए जाने को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन कई ऐसे तेलों के दाम भी बढ़ा दिए गए हैं, जिनका उत्पादन छत्तीसगढ़ में ही होता है और इसका आयात शुल्क से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल, स्थानीय तेल उत्पादक भी बहती गंगा में हाथ धोने में जुट गए हैं।

खाद्य तेलों में आयात शुल्क बढऩे के बाद प्रदेशभर में मुनाफाखोरी का जमकर खेल हो रहा है। जहां राजधानी के डूमरतराई थोक बाजार के कारोबारियों ने सोया और राइसब्रान जैसे तेलों में 30 रुपए प्रति लीटर तक का इजाफा कर दिया है। वहीं रायपुर शहर के छोटे थोक कारोबारियों ने भी कीमत 35 रुपए और चिल्हर दुकानदारों ने कीमत में 40 रुपए का इजाफा कर दिया है। जो सोया तेल पहले थोक में 90 रुपए और चिल्हर में 100 रुपए था, वह अब 140 रुपए में बेचा जा रहा है।

इसी तरह से राइसब्रान हरेली तेल भी थोक में 90 और चिल्हर में 100 रुपए बिक रहा था, उसे 140 रुपए में बेचा जा रहा है। डूमरतराई बाजार में खाद्य तेलों का ही कारोबार रोजाना 80 लाख से एक करोड़ तक का होता है। केंद्र सरकार ने आयात शुल्क में इजाफा किया है। इसके बाद से ही राजधानी रायपुर के थोक से लेकर चिल्हर बाजार में खाद्य तेलों की कीमत में आग लग गई है। हालांकि आयात शुल्क बढऩे के बाद जब नया माल आया था, तभी थोक कारोबारियों ने अपने मन से ही 20 रुपए तक कीमत में इजाफा कर दिया था। अब त्योहारी सीजन को देखते हुए कीमत और बढ़ा दी गई है।

खाद्य तेलों में सबसे ज्यादा बिकने वाले सोया और राइसबान तेल की बात करें तो इसकी कीमत जुलाई में सौ रुपए से कम थी। सोया तेल और राइसबान थोक में 90 रुपए के आसपास और चिल्हर में 95 से 98 रुपए में बिक रहा था, लेकिन बीते माह त्योहारी सीजन प्रारंभ होने से पहले इसकी कीमत बढ़ाई गई थी। अब आयात शुल्क के कारण कीमत में दोबारा इजाफा किया गया है। इस समय थोक बाजार में सोया तेल में सबसे ज्यादा बिकने वाला कीर्ति गोल्ड जहां पेटी में 1500 रुपए में मिल रहा है, वहीं इसे शहर के थोक कारोबारी 1560 रुपए में बेच रहे हैं, यानी यह थोक में 130 रुपए पड़ रहा है। किराना दुकान वाले शहर से ले जाकर चिल्हर में इसे 140 रुपए में बेच रहे हैं। पहले चिल्हर में यह तेल 100 रुपए में बिक रहा था।

राइसबान का हरेली तेल छत्तीसगढ़ में बनता है। जानकारों के मुताबिक, इसका आयात शुल्क से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन इसके बाद भी मौके का फायदा उठाते हुए कारोबारियों ने इसकी कीमत में भी थोक में 30 रुपए और चिल्हर में 40 रुपए का इजाफा कर दिया है। डूमरतराई में थोक में यह 1500 रुपए में एक पेटी 12 लीटर का पैक मिल रहा है। इसे शहर के थोक कारोबारी 1560 रुपए में बेच रहे है, यानी यह तेल भी थोक में 130 रुपए में मिल रहा है। विल्हर कारोबारी इसे 140 रुपए में बेच रहे हैं।

राजधानी के थोक कारोबारियों का कहना है कि उत्पादक कंपनियों ने ही कीमत बढ़ा दी है तो हम क्या करें। ज्यादातर उत्पादक कंपनियों ने दाम में 20 रुपए का इजाफा किया है। ऐसे में थोक कारोबारियों ने अपना मुनाफा लेकर इसे 25 रुपए महंगा किया है। दूसरे नंबर के थोक कारोबारियों ने इसे 30 रुपए महंगा किया है तो चिल्हर कारोबारियों ने इसे 40 रुपए महंगा किया है। जानकारों का कहना है कि उत्पादक कंपनियों के पास दो माह का स्टॉक है, उसके बाद भी कीमत में इजाफा किया गया है, जबकि केंद्र सरकार ने कीमत न बढ़ाने के निर्देश दिए हैं।

देश के सबसे बड़े त्यौहार की तैयारियां शुरू हो गई है। कल से नवरात्र प्रारम्भ हो रहे हैं। नवरात्र में तेलों का काफी डिमांड होती है। वहीं दीवाली में बहुत बड़ी मात्रा में मिठाइयां तैयार की जाती है, जिसमें खाद्य तेलों का इस्तेमाल होता है। लोग घरों में भी मिष्ठान बनाते हैं, जिन्हें खाद्य तेलों से ही तैयार किया जाता है। इस दृष्टिकोण से मिठाइयों के दाम बढऩे और रसोई का बजट गड़बड़ाने की भी संभावना है। जानकारों का कहना है कि तेल उत्पादों ने जानबूझकर ऐसे वक्त का चयन किया है, ताकि मुनाफाखोरी की जा सके।

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