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सरकारी कॉलेज लायक नंबर भी लाया; NEET पेपर लीक से रिक्‍शा चलाने को मजबूर

मम्‍मी की तबीयत अचानक रात को बिगड़ने लगी। उनके सीने में तेज दर्द उठ रहा था। मैं तब 17 साल का था। पापा के साथ उन्‍हें लेकर दिल्‍ली के जीबी पंत हॉस्पिटल पहुंचा। डॉक्‍टर ने बताया कि उनके दिल के एक वॉल्‍व में दिक्‍कत है। ऑपरेशन करना होगा 

ऑपरेशन की तारीख 9 महीने बाद की मिली। पापा सोच में पड़ गए। इतने दिन इंतजार नहीं कर सकते थे। उन्‍होंने मम्‍मी से कहा, ‘यहां ऑपरेशन की डेट 9 महीने बाद की है। हम प्राइवेट में इलाज करा लेंगे।’

मम्‍मी दर्द में होते हुए भी मुस्‍कुराईं। पापा का हाथ थामकर बोलीं, ‘जितने में मेरा इलाज होगा, उतने में तो एक बेटी की शादी कर दूंगी।’

पापा एक ठेला चलाकर हम 6 लोगों के परिवार का पेट पालते थे। प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज कराना कहां हमारे बस की बात थी। हम वापस लौट आए, लेकिन कुछ ही दिन बाद मम्‍मी की तबीयत एक बार फिर बिगड़ गई।

हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उन्‍हें पैरालिसिस का अटैक आ गया और शरीर का दाहिना हिस्‍सा पैरालाइज हो गया। डॉक्‍टर ने उनकी दवाइयों का डोज बढ़ा दिया, मगर कुछ महीने बाद ही मम्‍मी हम सबको छोड़कर चली गईं।

मैंने उसी दिन सोच लिया कि डॉक्‍टर बनूंगा और अपनी मां पूनम देवी के नाम से क्लिनिक खोलूंगा। इंजीनियर बनने का सपना छोड़ मैं मेडिकल की पढ़ाई में लग गया। 5 साल जीतोड़ मेहनत की, मगर अब NEET पेपर लीक की वजह से वो सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा।’

मैंने 10वीं तक हिंदी मीडियम से पढ़ाई की थी। 11वीं में लैंग्वेज बैरियर के कारण कुछ समझ नहीं आ रहा था और मैं फेल हो गया। 11वीं में दूसरा साल था जब मम्मी की तबीयत खराब हो गई थी। मैं पढ़ाई के साथ मम्मी का ख्याल रखता था, मगर फिजिक्स के एग्जाम से 4 दिन पहले मम्मी की डेथ हो गई। तब भी मैंने पेपर दिया। माइंड बिल्कुल ब्लैंक हो गया था, लेकिन मेरा सपना था कि कैसे भी पास होना ही है। मैंने पढ़ाई को हमेशा सबसे आगे रखा। मैं जानता हूं कि पढ़ाई से ही अपनी और अपने परिवार की किस्‍मत बदल सकता हूं।’

हरेंद्र हमें किताबों का ढेर दिखाते हैं। टेबल के नीचे हाथ से लिखे नोट्स का अंबार लगा है। जूलॉजी की किताब दिखाकर कहते हैं, ‘NEET एग्जाम में इस साल मेरा 5वां अटेम्प्‍ट था। पिछले साल मेरा स्‍कोर 720 में से 442 था। मुझे BDS में सीट मिल रही थी, मगर मुझे MBBS चाहिए था। मैंने एक साल और तैयारी में लगाया और इस साल 548 स्‍कोर किया।

जब रिजल्‍ट देखा तो होश उड़ गए। AIR 1 पर ही 67 स्‍टूडेंट्स थे। पेपर में ऐसी गड़बड़ी हुई कि 548 स्‍कोर पर भी मेरी रैंक 1 लाख 40 हजार से ऊपर है। खबरों से पता चला कि बिहार, झारखंड में पेपर लीक कराने वालों की गिरफ्तारी हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि पटना और हजारीबाग में पर्चा लीक हुआ है। इसी की वजह से रैंक इन्‍फ्लेशन (ज्‍यादा स्‍कोर पर भी कम रैंक) हुआ है।

गड़बड़ी न होती तो मेरी रैंक 60-65 हजार होती। किसी सरकारी कॉलेज में एडमिशन मिल जाता। मगर 1 लाख 40 हजार की रैंक में प्राइवेट कॉलेज मिलेगा। प्राइवेट कॉलेज की फीस तो आप जानते ही हो। ऑल इंडिया काउंसलिंग में तो मैंने रजिस्‍ट्रेशन ही नहीं किया, पता था कि नहीं होगा।

पता नहीं क्‍यों लोग ताने देते हैं कि तुम्हारे पास तो SC सर्टिफिकेट है, तुम्हें तो आसानी से कॉलेज मिल जाएगा। कोई ये नहीं समझता कि इसके लिए भी कड़ी मेहनत लगती है।

पापा अकेले कमाने वाले हैं, उन पर कितना जोर डालूं। सबसे सस्‍ती कोचिंग में भी 4 हजार महीने का खर्च करना पड़ता है। 30 हजार कोचिंग में लगाकर भी नंबर नहीं ला पाया। मेरे थर्ड अटेम्प्‍ट में मॉपअप राउंड में सीट मिल सकती थी, मगर मुझे पता ही नहीं था कि उसके लिए दोबारा रजिस्ट्रेशन करना होता है। मेरे हाथ से कॉलेज चला गया। फोर्थ अटेम्प्ट में BDS मिला, लेकिन मुझे MBBS चाहिए था। पांचवे अटेम्‍प्‍ट में अब तक का बेस्‍ट स्‍कोर किया, लेकिन पेपर लीक ने डुबो दिया।’

हरेंद्र की बड़ी बहन रिंकी बचपन से पढ़ाई में तेज थीं। मगर घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि दो बच्‍चे पढ़ सकें। इसलिए उन्‍होंने भाई के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी। वो कहती हैं, ‘जो मेरे भाई का सपना है वही मेरा सपना है। मैं भी उसे डॉक्टर बनते देखना चाहती हूं।

मैं भी पढ़-लिखकर टीचर बनना चाहती थी, पर नहीं पढ़ पाई। हालांकि, अब सिलाई का काम करके 200 से 250 कमा लेती हूं। जो मैं नहीं कर पाई वो मेरा भाई करेगा। मम्मी की डेथ के बाद लगा कि घर में एक डॉक्टर होना चाहिए। मम्मी दूसरों के घरों में बर्तन धोती थीं। जैसे-तैसे पैसे बचाकर हम सबको पढ़ाया, लेकिन कभी घर से बाहर काम के लिए नहीं भेजा। मैंने भी हमेशा खुद से पहले भाई को रखा। हमारी सारी उम्‍मीदें तो अब भाई से ही हैं।

हरेंद्र के पिता नरेश से मिलने हम उनकी दुकान पर पहुंचे। लकड़ी की कटाई और भीड़-भाड़ से गली में काफी शोर है। नरेश बताते हैं, ‘मेरी कोई फिक्स कमाई नहीं है। काम के हिसाब से पैसे मिलते हैं। कभी 100, कभी 200 और कभी खाली हाथ भी घर लौटना पड़ता है।

हम नहीं चाहते कि हमारा बेटा मेरी तरह मजदूरी करे। मेरा बेटा पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करे ताकि हमारा भी जीवन सही हो जाए। उसने पढ़ाई में बहुत मेहनत की। कहता है कि सरकारी कॉलेज से बिना फीस के पढ़कर डॉक्‍टर बन सकते हैं। बस नंबर अच्‍छे होने चाहिए। इस साल कहता है कि नंबर अच्‍छे हैं, लेकिन पेपर लीक हो गया था तो सरकारी कॉलेज मिले उतनी रैंक नहीं आ पाई।

अब उसे और नहीं पढ़ा पाएंगे। अब जो काम मिले वो करेगा। काम करके ही तो घर का काम चलेगा। उसने एक दिन रोकर कहा था कि बस इस साल तैयारी कर लेने दो। अब बस हो गया।’

हरेंद्र कहते हैं, ‘अब तो डॉक्‍टर बनने का सपना भी गया और जिंदगी के 5 साल भी गए। अब तो बस ऐसे ही मजदूरी वगैरह का काम करना पड़ेगा। बाकी 12वीं पास के लिए क्‍या ही नौकरियां हैं हमारे यहां।

मेरा सपना था कि डॉक्‍टर बनकर इलाज का एक हाइब्रिड मॉडल तैयार करूं। अभी सरकारी अस्‍पतालों में पैसा कम लगता है पर टाइम ज्‍यादा लगता है। वहीं प्राइवेट अस्‍पतालों में टाइम कम लगता है, लेकिन पैसा बहुत ज्‍यादा लगता है। मैं एक ऐसा मॉडल बनाना चाहता था जिसमें टाइम भी कम लगे और पैसा भी कम लगे।

वैसे मैं कभी रोता नहीं हूं, लेकिन इस साल मैंने बहुत रोकर घरवालों से आखिरी मौका मांगा था। मेरा ये एक ही सपना था मुझे MBBS करके कार्डियोलॉजिस्ट बनना है क्योंकि मेरी मां एक हार्ट पेशेंट थी और इलाज न मिलने से उनकी मौत हो गई। खैर अब तो… कुछ मजदूरी या ट्यूशन पढ़ाने का काम करना होगा या पापा की तरह मेहनत करूंगा।’ कहते हुए हरेंद्र की आंखें भर आती हैं।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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