सेहत

काफी काम के हैं ये साग, आदिवासी भी करते हैं सेवन, सर्दी-खांसी ही नहीं कब्ज को भी फटकने नहीं देगा आसपास

रांची के हर घर के आंगन में मिलने वाला सबसे पहला नाम आता है फुटकल साग का. यह आसानी से उगने वाला साग है, जो खाने में बेहद स्वादिष्ट होता है. विशेष रूप से इसकी चटनी बनाई जाती है, जो खट्टी-मीठी होती है. आयुर्वेदिक डॉक्टर वी.के. पांडे बताते हैं कि यह साग आपकी इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करता है दूसरे नंबर पर आता है कुटाई साग. यह साग विशेष रूप से पेट को ठंडा रखने में सहायक होता है और बुखार, सर्दी-खांसी जैसी छोटी-मोटी बीमारियों के लिए रामबाण माना जाता है. इसका सब्जी और भुजिया बनाकर भी सेवन किया जाता है.तीसरे स्थान पर आता है चाकोड़ साग. आदिवासी लोग इसे विशेष रूप से चावल के मांड के साथ मिलाकर पीते हैं. वे इसका सूप बनाकर भी चावल के साथ सेवन करते हैं. चाकोड़ साग का खास गुण यह है कि इसे खाने के बाद दाल-सब्जी की जरूरत महसूस नहीं होती. यह साग कब्ज को ठीक करने के लिए जाना जाता है.चौथे नंबर पर आता है खट्टा साग. यह साग खासतौर पर रांची के आसपास के जंगलों में पाया जाता है. ग्रामीण महिलाएं इसे जंगलों से लाकर बाजार में बेचती हैं. खाने में इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है और स्वाद में यह इतना लाजवाब है कि चिकन-मटन भी इसके आगे फीके पड़ जाते हैं.इनके अलावा, डालकुची साग भी अपने अद्भुत स्वाद के लिए जाना जाता है. इसे महिलाएं दाल में फ्लेवर लाने के लिए डालती हैं, जिससे दाल का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है. खासकर जब घर में मेहमान आते हैं, तब इसका उपयोग किया जाता है. डालकुची साग पेट की अपच और कब्ज की समस्या को दूर करने में सहायक होता है.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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