देश दुनिया

हाईकोर्ट: “सास-ससुर की सेवा नहीं करती है बीबी, तलाक चाहिये” कोर्ट ने कर दी ये अहम टिप्पणी , कहा, सेवा करना…

हाई कोर्ट ने तलाक की एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की है कि अगर महिला अपने बुजुर्ग सास-ससुर की सेवा नहीं करती है तो इसे क्रूरता नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले काफी व्यक्तिगत होते हैं। ऐसे में कोर्ट हर परिवार में ऐसे मामलों की विस्तार से जांच नहीं कर सकती। यह कोर्ट का काम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पति जब घर से दूर हो तब केवल उसके माता-पिता की देखभाल न करना क्रूरता के अंतर्गत नहीं आता। दरअसल एक पुलिसकर्मी ने इस आधार पर पत्नी को तलाक की अर्जी कोर्ट में डाली थी कि वह उसके माता-पिता की सेवा करने का अपना नैतिक दायित्व नहीं निभा रही है।हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सास-ससुर की सेवा नहीं करना क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता है। कोर्ट ने कहा कि इसे क्रूर व्यवहार नहीं कहा जा सकता। दरअसल, इलाहाबाद कोर्ट ने एक शख्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें पति ने पत्नी को क्रूर बताते हुए तलाक की मांग की थी।

शख्स ने याचिका में कहा कि उसकी पत्नी उसके बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल करने के अपने नैतिक कर्तव्य को निभाने में नाकाम रही थी, जबकि वह पुलिस की नौकरी के दौरान बाहर रहता था।जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनादि रमेश की खंडपीठ ने मुरादाबाद के इस पुलिसकर्मी की अपील खारिज कर दी। पुलिसकर्मी ने 14 साल पहले मुरादाबाद की फैमिली कोर्ट में पत्नी के खिलाफ क्रूरता के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की थी। पति का आरोप है कि वह पुलिस की नौकरी में है।

ऐसे में उसे दूसरे शहर में रहना होता है। माता-पिता की सेवा के लिए पत्नी को घर छोड़ा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, वह सेवा नहीं करती, इसे क्रूर व्यवहार माना जाए।इस दलील पर फैमिली कोर्ट के चीफ जस्टिस ने पुलिसकर्मी की अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद उसने हाई कोर्ट में गुहार लगाई थी। हाई कोर्ट ने याचिका को खारित करते हुए कहा कि क्रूरता का आरोप पति की व्यक्तिगत अपेक्षाओं पर आधारित है।

इससे क्रूरता के तथ्यों को स्थापित नहीं किया जा सकता। पति ने पत्नी पर किसी तरह की अमानवीय यातना देने जैसा न तो आरोप लगाया है और न ही मामले में ऐसा कोई तथ्य उजागर हो रहा है।कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की विधि व्यवस्थाओं का हवाला भी दिया और कहा कि क्रूरता का आकलन पति या पत्नी पर पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर किया जाना चाहिए। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि मुरादाबाद की फैमिली कोर्ट का आदेश सही है।

ऐसे में पति की अपील खारिज की जाती है। कोर्ट ने कहा कि सास-ससुर की सेवा से इनकार करने भर को क्रूरता नहीं माना जा सकता। ऐसा तब तक नहीं माना जा सकता, जब तक घर के हालातों की रिपोर्ट और सही आकलन न हो जाए।

Manoj Mishra

Editor in Chief

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button