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बादल गरजने और आकाशीय बिजली से पैदा होने वाली इस ‘सब्जी’ के दीवने हैं लोग, कीमत सुनकर छूट जाएगा पसीना

बादल गरजने और आकाशीय बिजली की आवाज से बरसात में बिना बीज के जंगल में पैदा होने वाली फली को “गरजे” के नाम से पुकारा जाता है. इटावा के लोग इस गरजे के खासे दीवाने होते हैं. बाजार में यह गरजे 600 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से बेची जा रही है. बिना बीज के ही बरसात के दिनों में जंगल में पैदा होने वाली अनोखी फली को गरजे के साथ साथ कुछ लोग जंगली मशरूम भी कहते हैं.

ऐसा कहा जाता है कि हर साल बरसात के दिनों में बिना बीज के ही जंगली मशरूम की पैदाइश जंगल में बड़े पैमाने पर होती है. इस गरजे को खाने का इंतजार गांव वाले पूरे साल करते रहते हैं लेकिन जैसे ही बरसात शुरू होती है वैसे ही गांव वालों में इस जंगली मशरूम को हासिल करने की होड़ मच जाती हैगरजे को पसंद करने वाले उसे भारी मात्रा में खरीदकर घर ले जाते हैं और साफ सफाई करके सब्जी बनाकर इसका सेवन करते हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि गरजे इंसानी सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है. गरजे को प्रोटीन का बड़ा सोर्स माना जाता है. इसी वजह से लोगों की खासी पसंद जंगली मशरूम अरसे से बना हुआ हैइटावा जिले में चंबल इलाके से लेकर के आम बीहड़ में गरजे की बढ़िया पैदाइश होती है. स्थानीय गांव वाले गरजे को जमीन से खोद कर बाहर निकाल कर खुद तो सेवन करते ही है और इसे खुले बाजार में भी बेचते हैं.

इटावा के जिला वन अधिकारी अतुल कांत शुक्ला बताते हैं कि जंगली मशरूम इटावा जिले के जंगलों में बड़े पैमाने पर बरसात के दिनों में पैदा हो रही है. ऐसा नहीं है कि यह केवल जंगलों में ही पैदा हो रही है. किसानों के खेतों में भी इस मशरूम की पैदाइश हो रही है. उनका कहना है कि जंगली मशरूम को इंसानी सेहत के लिए बेहद मुफीद माना जाता है और इसीलिए गांव वाले इसको खासी तादात में पसंद भी करते हैं. वन अधिकारी यह भी बताते हैं कि उनके संज्ञान में यह भी आया है कि कुछ बाहरी लोग भी जंगल में घुसकर जंगली मशरूम को जमीन से खोद कर बाहर निकाल कर दूसरे जिलों में ले जा रहे हैं. इसको लेकर के उन्होंने वन विभाग के वाचरों को सक्रिय कर दिया है. वन विभाग के वाचरों को इस बात के निर्देश दिए गए हैं कि जंगल में कोई बाहरी व्यक्ति घुसकर के जंगली मशरूम को जंगल से ना खोज पाए. इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए.

विशेषज्ञ बताते हैं की बरसात के दिनों में बिना बीज के पैदा होने वाली इस फली को उत्तराखंड में गुच्ची के नाम से पुकारा जाता है जो खुले बाजार में 30,000 प्रति किलो के हिसाब से बिक्री होती है. इसके रेट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह फली इंसानी सेहत के लिए कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है. देश भर के जंगलों में इस फली की पैदाइश होती है जिसको अलग-अलग नाम से हर जगह पुकारा जाता है. चंबल इलाके के वासी एडवोकेट विकास दिवाकर बताते है कि चंबल के बीहड़ों में बड़े पैमाने पर बरसात के दिनों में जंगली मशरूम की पैदाइश होती है. उसको गरजे के रूप में पुकारा जाता है, यह भी कहा जाता है कि जैसे-जैसे बादल गरजते हैं और आकाशीय बिजली जोर पकड़ती है वैसे ही फली नुमा यह सब्जी जमीन के भीतर से एकाएक बाहर निकलना शुरू हो जाती है और इसी वजह से इसको गरजे कहते हैं.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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