सतारा: सतारा जिले के कोरेगांव तालुका के ताड़वाले गांव के टमाटर उत्पादकों ने कहा, ‘टमाटर हमारा है, रेट हमारा है..!’ और खेत से ही टमाटर की बिक्री शुरू हो गई है. वर्तमान में ताड़वाले गांव के किसान सामूहिक रूप से मुंबई, पुणे की बाजार समिति में थोक विक्रेताओं से बात करके अपनी दरें तय करते हैं और उसी के अनुसार लेनदेन करते हैं. इसीलिए ताड़वाले गांव को टमाटर गांव के नाम से जाना जाता है. इनमें से एक किसान और उनकी पहल की चर्चा सतारा समेत पूरे महाराष्ट्र में है. आइए जानते हैं कि यह क्या है पूरा मामला.
टोमेटो विलेज के नाम से मशहूर है ताड़वाले गांव
सतारा के कोरेगांव तालुका में ताड़वाले गांव को बागवानी कृषि भूमि के गांव के रूप में जाना जाता है. इस गांव में समृद्ध किसान बड़ी मात्रा में टमाटर का उत्पादन करते हैं। इन गांवों से हर दिन सब्जियों और टमाटरों के कई ट्रक मुंबई, वाशी, पुणे और अन्य बाजारों में जाते हैं. इसमें टमाटर की फसल की हिस्सेदारी अहम है.
200 एकड़ से ज्यादा में होती है टमाटर की खेती
सतारा जिले का ताड़वाले गांव महाराष्ट्र में टमाटर गांव के नाम से मशहूर है. इस गांव में 200 एकड़ से ज्यादा जमीन पर टमाटर उगाए जाते हैं. इस गांव में टमाटर की खेती की जाती है. टमाटर की यह खेती युवा किसान मिलकर करते हैं. एक औसत के मुताबिक गांव में ताड़वाले के 80 से 90 प्रतिशत ग्रामीण टमाटर उगाते हैं.
टमाटर की खेती से होती है अच्छी कमाई
अन्य फसलों की तुलना में इस टमाटर की खेती से कम समय में अधिक उत्पादन प्राप्त होता है, टमाटर की खेती गाँव में हर जगह की जाती है. युवा प्रगतिशील किसान सचिन जांजर्न ने यह भी कहा कि युवा काम पर जाकर घंटों काम करने के बाद जितना पैसा नहीं कमा पाएंगे उससे ज्यादा पैसा वो कम समय में अपने खेत में टमाटर उगाकर करते हैं. इसलिए यहां के ज्यादा युवा आज भी खेती ही करते हैं.
टमाटर हमारा, दाम हमारा और बिक्री किसान की बाड़ पर
ताड़ावले के ग्रामीणों ने संकल्प लिया है कि टमाटर हमारा, दाम हमारा और बिक्री किसान की बाड़ पर.24 साल से इन गांवों में टमाटर की खेती ही प्रमुख फसल है. इसके जरिए ताड़वाले गांव से हर साल हजारों टन टमाटर बेचे जाते हैं. ग्रामीणों ने यह भी कहा कि इन टमाटरों की रिकॉर्ड बिक्री से ताड़वाले गांव का औसत कारोबार 10 से 15 करोड़ रुपये है.