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IAS की तैयारी कर रहा बेटा हुआ ब्रेन डेड, टीचर पिता ने दान किए 7 अंग; सुपर कॉरिडोर बनाकर मुंबई, सूरत, अहमदाबाद और चेन्नई के हॉस्पिटल्स को भेजे ऑर्गन

खरगोन की कसरावद तहसील के छोटे से गांव सांगवी के मोयदे परिवार ने ब्रेन डेड बेटे के एक नहीं, बल्कि सात अंग दान कर दिए. ग्रेजुएशन के बाद 24 वर्षीय विशाल मोयदे के ख्वाब बड़े थे. यूपीएससी की तैयारी कर रहे विशाल का सपना था कि वह कलेक्टर बने.

साल 2018 में खरगोन शहर के खंडवा रोड स्थित शासकीय बालक हायर सेकेंडरी स्कूल क्रमांक-2 में B.Ed का पर्चा हल करने के दौरान विशाल के सिर में अचानक दर्द उठा और वह बेहोश हो गया. उसे तत्काल जिला अस्पताल पहुंचाया गया. ज्यादा समस्या होने पर इंदौर ले जाया गया और फिर यहां से गुजरात के ज़ाइडस अस्पताल में भर्ती कराया गयापता चला कि विशाल के सिर पर नसों का एक गुच्छा बन गया है. इसके बाद से विशाल का लगातार इलाज जारी रहा. लगातार बीमार रहने के चलते विशाल ने अपने मन की बात अपनी मां सुशीला मोहित को बताई और कहा- ‘मेरा जीवन अगर अंतिम क्षण में आ जाए तो मेरे शरीर के अंगों को गरीबों जरूरतमंदों को दान कर देना

जब लगातार स्वास्थ्य में सुधार नहीं नजर आया और डॉक्टर ने विशाल को  ब्रेन डेड घोषित कर दिया. इसके बाद मां सुशीला बाई ने अपने बेटे विशाल की इच्छा उनके सरकारी शिक्षक पति अम्बाराम मोयदे को बताई.

विशाल के माता-पिता ने साहस का काम किया और अपने बेटे की इच्छा डॉक्टर को बताई. अहमदाबाद के डॉक्टर ने पहले तो कहा कि आप अपने परिवार में किसी जरूरतमंद को अंगदान कर सकते हैं लेकिन जब कोई नहीं मिला तो डॉक्टर की टीम ने ऑनलाइन वेटिंग लिस्ट पर काम शुरू

इन अस्पतालों को भेजे अंग 
विशाल के माता-पिता की इच्छा अनुसार, बड़ोदरा में सुपर कॉरिडोर तैयार किया गया. डॉक्टरों की टीम ने सात अंग विशाल के शरीर से लिए. लिवर, हार्ट, छोटी आंत, दोनों फेफड़े और दोनों किडनी दान की गई. किडनी, जाइडस हॉस्पिटल अहमदाबाद, लंग्स, केडी हॉस्पिटल अहमदाबाद, हार्ट, रिलायंस हॉस्पिटल मुम्बई, छोटी आंत, एमजीएम हॉस्पिटल चेन्नई और लिवर किरण हॉस्पिटल सूरत भेजे गए.

अंगों की पूजा भी की माता-पिता 
वडोदरा में अपने बेटे के अंगदान करने के दौरान विशाल की मां सुशीला और उनके पिता अंबाराम ने बेटे के अंगों की पूजा भी की और उन्हें डॉक्टर को सुपर कॉरिडोर के माध्यम से भेजने का अनुरोध भी किया. विशाल के पिता अंबाराम ने बताया मानव जगत को यह संदेश देना चाहता हूं कि हर मानव ने ऐसे ने काम करना चाहिए क्योंकि हमारी आत्मा तो शरीर को छोड़कर चली जाती है. यदि हमारे मानव अंग किसी जरूरतमंद के काम आएं. किसी को एक नया जीवन मिल सके तो यह बड़ा सौभाग्य होता है.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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