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आपातकाल भारतीय लोकतंत्र में काला अध्याय – पीएल चौधरी..

आपातकाल भारतीय लोकतंत्र में काला अध्याय – पीएल चौधरी……….. सांकरा जोंक शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सावित्रीपुर में 25 जून को आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने पर संविधान हत्या दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया।इस अवसर पर संस्था के प्राचार्य पी सिदार सर ने कहा कि इस कार्यक्रम को मनाने का उद्देश्य नई पीढ़ी को आपातकाल के काले अध्याय के बारे में बताना है।ताकि आज के युवा जान सके कि उस दौर में लोकतंत्र की रक्षा के लिए कितना संघर्ष किया गया था।25 जून 1975 को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल की घोषणा की थी और उस दौरान नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकार सीमित कर दिए गए थे और बड़े पैमाने पर विपक्षी दलों के नेताओं को जेल में डाला गया था।जबरन नसबंदी कार्यक्रम की वजह से जनता में भारी आक्रोश था। इस अवसर पर संकुल समन्वयक पीएल चौधरी सर ने कहा कि 25 जून देशवासियों को याद दिलाएगा कि संविधान के कुचले जाने से के बाद देश को कैसे-कैसे हालात से गुजरना पड़ा था।यह दिन उन सभी लोगों को नमन करने का भी है जिन्होंने आपातकाल की घोर पीड़ा झेली। यह आपातकाल लोकतंत्र में काला अध्याय है। मिडिल स्कूल हेडमास्टर एसएल पटेल ने कहा की 25 जून उस घटना की याद दिलाता है जब संविधान को रौंदा गया था। वरिष्ठ व्याख्याता एन साहू सर ने कहा कि 25 जून उन सभी लोगों के विशाल योगदान को याद करेगा जिन्होंने 1975 के आपातकाल के अमानवीय दर्द को सहन किया था। प्राइमरी प्रधान पाठक महेंद्र तांडी सर ने कहा कि भारत के लोगों को भारत के संविधान और भारत के लोकतंत्र पर दृढ़ विश्वास है,इसलिए भारत सरकार ने आपातकाल की अवधि के दौरान सत्ता के घोर दुरुपयोग का सामना और संघर्ष करने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित किया है,और भारत के लोगों को भविष्य में किसी भी तरह से सत्ता के घोर दुरुपयोग का समर्थन नहीं करने के लिए पुनः प्रतिबद्ध किया है। बी डी साहू सर ने कहा कि इंदिरा गांधी सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम देश में कई ऐतिहासिक घटनाओं की वजह बना।स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद समय था।25 जून 1975 को घोषणा के बाद 21 मार्च 1977 तक यानी कि करीब 21 महीने तक भारत में आपातकाल लागू रहा।आपातकाल के दौरान देशभर में चुनाव स्थगित हो गए थे।आपातकाल की घोषणा के साथ हर नागरिक के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे,लोगों के पास ना तो अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार था ना हीं जीवन का अधिकार,बड़ी संख्या में लोगों को जेल में डाला गया था जेल में जगह ही नहीं बची थी। प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई,हर अखबार में सेंसर अधिकारी रख दिए गए थे और उसे सेंसर अधिकारी की अनुमति के बिना कोई खबर छप नहीं सकती थी अगर किसी ने सरकार के खिलाफ खबर छाप दी तो उसे गिरफ्तारी झेलनी पड़ी।आपातकाल के दौरान प्रशासन और पुलिस ने लोगों को प्रताड़ित किया,जिसकी कहानियां बाद में सामने आई।इस अवसर छात्र छात्राओं ने भी अपने विचार रखें।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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