-दीपक रंजन दास
पूरा देश जहां सिंहासन की लड़ाई में उलझा हुआ है वहीं केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी अलग ही चल रहे हैं. देश के लगभग सभी नेता कुर्सी की इस दौड़ में किसी भी सीमा तक जाने को तैयार हैं. भले ही देश में दंगे-फसाद हो जाएं, भले ही नागरिकों के एक हस्से को रोजी-रोटी के लिए मोहताज होना पड़े, पर इससे उनके मंसूबों पर कोई फर्क नहीं पड़ता. इन मूर्खों को यह तक नहीं पता कि अपने ही घर में अलग-थलग किये जाने पर किसी भी व्यक्ति के सामने मरने-मारने के अलावा कोई और चारा नहीं रह जाता. फिर पूरा समाज ही असुरक्षित हो जाता है. ऐसे समय में नितिन गडकरी मजबूती के साथ अपनी बात रखते हैं. वे एक बार फिर से दोहराते हैं, ‘जो करेगा जात की बात, उसको मारूंगा कस के लात.’ नागपुर में एक अल्पसंख्यक संस्थान के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने अपनी इस बात को दोहराया. उन्होंने कहा, वे धर्म और जाति की बातें सार्वजनिक रूप से नहीं करते. चाहे चुनाव हार जाएं या मंत्री पद चला जाए, अपने इस सिद्धांत पर अटल रहेंगे. मंत्री पद नहीं मिला तो मर नहीं जाएंगे. कदाचित गडकरी आजाद भारत की पहली और दूसरी पीढ़ी के नेताओं की तरह हैं जिनके सामने एकमात्र लक्ष्य देश का विकास करना था. यही कारण है कि आजादी के बाद की पहली सरकार ने डेढ़ दशक के अपने कार्यकाल में देश को एम्स, आईआईटी, इसरो, बार्क, आईआईएम जैसे चोटी के संस्थान दे दिए, पांच बड़ी इस्पात परियोजनाएं दे दीं. भाखड़ा नांगल बांध, सरदार सरोवर बांध, हीराकुंड बांध, नागार्जुन सागर बांध, कोयना बांध, टिहरी बांध जैसी बड़ी बड़ी बांध परियोजनाएं देश को दीं. इस्पात नगरियां, खनिज नगरियां बसीं तो शिक्षा का प्रचार प्रसार शुरू हुआ. चिकित्सा और वकालत के साथ-साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई देश में शुरू हुई. बाद के वर्षों में देश के तीव्र विकास की यही चाभियां थीं. गडकरी के भाषण में भी इसकी झलक दिखाई देती है. वे कहते हैं कि उन्होंने अपने तरीके से काम करने का फैसला किया है. उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि कौन उन्हें वोट देगा. उन्होंने बताया कि एमएलसी रहते हुए उन्होंने एक इंजीनियरिंग कालेज की अनुमति अंजुमन-ए-इस्लाम संस्थान को ट्रांसफर कर दी. उन्हें लगा कि मुस्लिम समुदाय को इसकी ज़्यादा जरूरत है. उनका मानना था कि अगर मुस्लिम समुदाय से ज्यादा इंजीनियर, आईपीएस और आईएएस अफसर बनेंगे तो सबका विकास होगा. उनका दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा जीवन को बदल सकती है. पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को एक उदाहरण की तरह प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं कि आज अंजुमन-ए-इस्लाम के बैनर तले हजारों छात्र इंजीनियर बन चुके हैं. अगर उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिलता, तो कुछ नहीं हो पाता. शिक्षा की यही ताकत है. यह जीवन और समुदायों को बदल सकती है. कर्म उत्तम हों तो जाति कदापि मायने नहीं रखती.

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