-दीपक रंजन दास
कथावाचक प्रदीप मिश्रा ने कहा है कि जब तक देश में इसके खिलाफ कोई कानून नहीं आ जाता, सनातनियों को 4-4 बच्चे पैदा करना चाहिए। दो बच्चे घर के लिए और दो राष्ट्र के लिए। यह सब सुनने में तो बड़ा अच्छा लगता है। दो बच्चे आगे चलकर माता-पिता का ख्याल रखेंगे। एक उन्हें कांधे पर बैठाकर तीर्थ यात्रा कराएगा। दूसरा घर का खर्चा चलाएगा। बाकी के दो राष्ट्र पर शहीद हो जाएंगे। इसलिए ज्यादा सोचने-विचारने की जरूरत नहीं है। वैसे भी महंगाई और रोजगार का जैसा आलम है, चार बच्चों को उनकी पसंद का भोजन और कपड़ा मिल जाए, यही बहुत होगा। सरकारी स्कूल में मध्यान्ह भोजन कर लेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आने के बाद ग्रेजुएशन की पूरी पढ़ाई करने की भी जरूरत नहीं रही। दो सेमेस्टर पास कर लिया तो सर्टिफिकेट मिल जाएगा, चार सेमेस्टर पढ़ लिया तो डिप्लोमा और छह सेमेस्टर पढ़ लिया तो डिग्री। जेब जहां तक पढऩे की इजाजत देगी, वहां तक का सर्टिफिकेट मिल जाएगा। उन्होंने लड़कियों से भी कहा कि वे प्रेम विवाह न करें। पढ़ाई और नौकरी के दौरान 100 प्रकार के लड़के मिलेंगे। पर ये जीवन भर साथ नहीं देंगे। पिताजी जो लड़का ढूंढ कर ला देंगे, उनके साथ जिन्दगी गुजारी जा सकती है। कुछ साल पहले तक केवल हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई की बातें होती थीं। अब सनातनी और आ गए हैं। सनातनी चाहते क्या हैं, कहना मुश्किल है। क्या वो उस युग में लौट जाना चाहते हैं जहां से हम बड़ी मुश्किल से बाहर निकले हैं? हम उस युग की बात कर रहे हैं जब वर्ण व्यवस्था की विसंगतियां अपने चरम पर थीं। जब भीमराव अम्बेडकर को कक्षा से बाहर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती थी। लड़कियों को इसलिए ज्यादा नहीं पढ़ाया जाता था कि फिर वो ससुराल में एडजस्ट नहीं कर पाएगी। कम उम्र में शादी करवा दी जाती थी ताकि उसे ससुराल के लोग अपने अनुसार ठोंक-पीट कर ठीक कर सकें। वह दौर गुजर चुका। तब शादियां शायद इसलिए टिकी रह जाती थीं कि लड़की पूरी तरह से ससुराल और पति पर निर्भर होती थी। इसलिए न चाहते हुए भी उसे सबकुछ सहकर वहीं पड़े रहना होता था। अब स्थिति बदल चुकी है। लड़कियां लड़कों के बराबर ही नहीं खड़ीं बल्कि कई क्षेत्रों में उनसे आगे निकल चुकी हैं। अब वह भी आत्मनिर्भर है, स्वावलंबी है और आत्मसम्मान के साथ जीवन यापन करना चाहती है। अब एडजस्ट करना उसके लिए जरूरी नहीं रहा। एक खराब शादी से निकलकर वह भी नए सिरे से घर बसा सकती है, चाहे तो अकेले जिन्दगी काट सकती है। इसका लव मैरिज से कोई सीधा संबंध नहीं है। डिवोर्स अरेंज्ड मैरिज में भी होते हैं। बेशक कुछ लोगों को कोर्ट मैरिज से दिक्कतें हो सकती हैं। इससे उनका धंधा खराब होता है। डर है कहीं भोले-भाले लोग ऐसे कथावाचकों के झांसे में न आ जाएं। उनका तो जीना मुश्किल हो जाएगा।
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