-दीपक रंजन दास
सोशल मीडिया के केवल नाम में ही ‘सोशल’ है वरना सामाजिकता से इसका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। इसकी हालत उस पागल से भी बदतर है जो चौक-चौराहे पर खड़ा होकर चीखता-चिल्लाता और गालियां दे रहा होता है। पागल को अधिकांश लोग सीरियसली नहीं लेते। पर सोशल मीडिया के साथ ऐसा नहीं है। कुछ लोगों के लिए सोशल मीडिया ही सबकुछ है। अखबार तो लोग आधा-एक घंटा ही पढ़ते होंगे पर सोशल मीडिया दिन भर उसका मनोरंजन करता है। यहां कोई चीख-चीख कर सच बता रहा होता है तो कोई पानी पी-पी कर किसी को कोस रहा होता है। इतिहास की तो नई क्लास ही खुल गई है। कोई इनसे नहीं पूछता कि उनकी जानकारी का स्रोत क्या है? क्या उसने कर्णपिशाचिनी सिद्ध किया हुआ है जो उसके कान में आकर सच बता जाती है। अज्ञात को छोड़ भी दें तो ज्ञात और लिखित इतिहास की भी ये ऐसी-ऐसी व्याख्या करते हैं कि इनके दिमाग की बोली लगाने को मन करने लगता है। आम तौर पर इनके निशाने पर राजनेता होते हैं। किसी को ये महिमामंडित कर रहे होते हैं तो किसी की मिट्टी पलीद कर रहे होते हैं। इनका भाषा ज्ञान तो कमाल का है। न जाने कहां से ऐसे-ऐसे शब्द खोज लाते हैं जो कानों में पिघले शीशे की तरह पड़ते हैं और दिल को चीर जाते हैं। एक ऐसा ही वाकया हुआ था तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में। एक आईटी प्रोफेशनल अपने बच्चे को स्तनपान करा रही थी। वह अपार्टमेंट की चौथी मंजिल पर थी। तभी बच्चा उसके हाथ से छूट जाता है और नीचे गिर जाता है। गनीमत है कि बच्चा शेड पर अटक जाता है और लोग किसी तरह उसे बचा लेते हैं। पर इसके बाद सोशल मीडिया के महाज्ञानी पंडित लग जाते हैं मां को कोसने। वह उस मां को इतना कोसते हैं कि वह डिप्रेशन में चली जाती है। सोशल मीडिया के ज्ञानियों को क्या पता कि एक मां का दिल क्या होता है? उसकी भावनाएं कैसी होती हैं? बच्चे के गिरने के बाद से उसके दिल पर क्या गुजर रही होगी। यदि बच्चे को कुछ हो जाता तो क्या वह जिन्दगी भर खुद को माफ कर पाती? यह एक हादसा था। एक ऐसा हादसा जो किसी के भी साथ हो सकता था। ऐसे हादसे पहले भी हुए हैं और फिर हो सकते हैं। पर इसका मतलब यह तो नहीं कि आप मां को इतना प्रताडि़त कर दो कि वह आत्महत्या कर ले। 28 अप्रैल की इस घटना के बाद सोशल मीडिया ने महिला को इतना जलील किया कि 19 मई को उसने कोयम्बतूर स्थित अपने मायके में खुदकुशी कर ली। कायदे से तो ट्रोलर्स को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी मानना चाहिए। टीवी चैनल के डेढ़ होशियार संवेदनाशून्य कथित पत्रकारों को भी कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। सभ्य समाज में ऐसी मानसिकता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
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