-दीपक रंजन दास
प्रेम और नफरत दोनों ही भावनाएं जीवन को प्रभावित करती हैं. कोई लाख दावा करे कि वह इन भावनाओं से परे हो गया है और संतत्व को प्राप्त कर चुका है, पर इतिहास बताता है कि ऐसा कुछ भी नहीं होता. पौराणिक गाथाएं भी बताती हैं कि ईश्वरत्व को प्राप्त हो चुके महात्मा भी कुपित होते रहे हैं. उनके श्राप से पौराणिक काल में भी कई घटनाएं बनती-बिगड़ती रही हैं. इसलिए यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं कि जब तक इंसान इस धरती पर है – प्रेम और नफरत का भाव भी बना रहेगा. आज हम बात कर रहे हैं प्रेम की. प्रेम को परिभाषित करना कठिन है. विस्तारित रूप में प्रेम बेहद व्यापक है. यह हमें प्रकृति से भी हो सकता है. ऐसे सैकड़ों किस्से हम सभी ने सुन रखे है जिसमें लोगों ने प्रकृति के प्रति अपने प्रेम का इजहार ऐसे-ऐसे रूपों में किया कि लोग दांतों तले उंगलियां दबाने के लिए विवश हो गए. पर मोटी समझ में प्रेम दो मनुष्यों के बीच होता है. स्त्री और पुरुष का एक दूसरे के प्रति आकर्षण नैसर्गिक होता है. एक खास उम्र में यह भावना बहुत जोर मारती है. इसे आकर्षण भी कह सकते हैं और आसक्ति भी. बहुधा यह हिन्दी फिल्मों से प्रभावित होती है. इसमें हीरो-हिरोइन के बीच आकर्षण होता है, फिर नाच-गाना होता है और अंत में दोनों का मिलन हो जाता है. फिल्म तो यहीं आकर खत्म हो जाती है पर जिन्दगी के थपेड़ों की शुरुआत यहीं से होती है. छत्तीसगढ़ से एक ऐसी ही घटना सामने आई है. बिलासपुर जिले के अमाली गांव में एक युवक ने अपनी लिव-इन पार्टनर को कुल्हाड़ी से काट डाला. 24 वर्षीय युवक और 22 वर्षीय युवती के बीच काफी समय से प्रेम संबंध था. घर वालों ने विवाह के लिए इजाजत नहीं दी तो दोनों लिव-इन में रहने लगे. युवती ने इसके बाद विवाह के लिए दबाव बनाना शुरू किया. रोज-रोज की इस झिक-झिक और किच-किच से तंग आकर युवक ने उसकी हत्या कर दी और खुद ही थाने जा पहुंचा. उसे इस बात का कोई इल्म नहीं था कि प्रेम संबंधों के परवान चढ़ने के बाद क्या-क्या करना होता है. इसके आगे गृहस्थी शुरू होती है. गृहस्थी की अपनी जरूरतें होती हैं, सामाजिक मान्यताएं होती हैं. भविष्य को लेकर चिंताएं होती हैं. एक युवती के लिए सिर्फ साथ-साथ रहना ही काफी नहीं होता. वह चार दीवारों के कमरे को घर बनाना चाहती है. वह अपनी संतान को जन्म देना चाहती है, उसे पिता का नाम देना चाहती है. यह सब लिव इन में संभव नहीं होता. इसीलिए लिव-इन के अधिकांश मामलों में दबाव वही बनाती है. पुरुष उसकी इन गूढ़ भावनाओं को समझने में अकसर विफल हो जाता है. यहीं से तनाव, झगड़े, दोषारोपण की शुरुआत होती है. आगे चलकर ये घटनाएं हिंसक हो जाती हैं और उनके दुष्परिणाम सामने आ जाते हैं. प्रेम गली अति सांकरी…
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