-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ में शराब एक बड़ा मुद्दा रहा है। बात यहां तक बिगड़ी थी कि यहां शराबबंदी की मांग होने लगी थी। इस बात पर भी बहस होने लगी थी कि शराब बंदी के बाद आदिवासियों को अपनी जरूरत के लिए मिली शराब बनाने की इजाजत का क्या होगा। पर अब ये सब बीते दिनों की बातें हैं। शराब अब न केवल लाइफ स्टाइल का हिस्सा है बल्कि इससे मिलने वाले राजस्व पर भी सरकार की पैनी नजर है। शराब न केवल सेहत के लिए खराब है बल्कि यह जेब पर भी भारी है। मजदूरों में शराब की लत के कारण कई गृहस्थियां बर्बाद हो चुकी हैं। युवाओं के बीच शराबखोरी के बाद खूनखराबा होने की खबरें भी आती रहती हैं। शराब को लेकर फिल्म शराबी का एक मजेदार गीत याद आता है। ‘..पी गया चूहा सारी व्हिस्की… कड़क के बोली… कहां है बिल्लीÓ। किसी को गाली देना हो या मारपीट करनी हो और हिम्मत जवाब दे जाए तो हौसले के लिए शराब का सहारा लिया जा सकता है। दो-चार पेग लगाने के बाद हिम्मत खुद-ब-खुद आ जाती है। ऐसी करामाती शराब को कोई बंद करने की बात करे तो उसे लोगों की नाराजगी भुगतनी पड़ सकती है। अंग्रेजी शराब पीने वालों के लिए तो बार होते ही हैं जहां लोग एयरकंडिशन्ड रूम में कुर्सी टेबल पर बैठकर चुस्कियां लेते हैं। देसी शराब के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। वो सड़क किनारे लगने वाली रेहडिय़ों से चखना लेते थे और अकसर वहीं खड़े-खड़े डिस्पोजेबल गिलास में शराब पीते थे। इसे व्यवस्थित रूप देने के लिए अहातों की व्यवस्था की गई थी। लोग अपना-अपना चेप्टी-खंबा लेकर वहां जाते थे और चखना का आर्डर देकर आराम से बैठकर पीते थे। इस व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए पिछली सरकार ने एक अहाता नीति बनाई। इसके तहत एसी अहातों का निर्माण किया जाना था। ऑनलाइन टेंडर प्रक्रिया द्वारा इनकी नीलामी की जानी थी। धंधा चले इसकी गारंटी करने के लिए सड़क किनारे के ठेलों को हटाया जाना था। इन ठेलों से न केवल यातायात व्यवस्था बिगड़ती थी बल्कि माहौल भी खराब होता था। पर इसे लागू नहीं किया जा सका। अधिकांश अहातों पर नेताओं का कब्जा था। अहातों की कमाई से वो अपना स्टेटस मेन्टेन करते थे। अहातों ने कुछ जमीनी नेताओं की फजीहत भी कराई। इसके बाद कुछ नेताओं ने तो पार्टी ही छोड़ दी। पर अब इस नीति को छत्तीसगढ़ की नई सरकार लागू करने जा रही है। छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कार्पोरेशन लिमिटेड ने राज्य के विभिन्न जिलों में 537 अहातों के लिए ऑनलाइन टेंडर मंगवाया। प्रथम चरण में 457 अहातों के लिए ऑनलाइन टेंडर आए। शेष 80 अहातों के लिए दोबारा टेंडर मंगवाए जाएंगे। अहातों की नीलामी से सरकार को 103 करोड़, 54 लाख, 17 हजार 300 रुपए का राजस्व भी मिला। वैसे चखना, डिस्पोजेबल गिलास और पानी पाउच तो अब कहीं भी मिल जाता है।
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