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Gustakhi Maaf: खान-पान को लेकर शायद अब जागें लोग

-दीपक रंजन दास
लोगों का खान-पान इस कदर बिगड़ चुका है कि अब चिकित्सकों को भी बीमारी की थाह नहीं मिलती. एक बीमारी होती है और सौ प्रकार के कुपोषण निकल आते हैं. किसी के शरीर में आयरन नहीं, तो कोई जिंक की कमी से जूझ रहा है. आधे से ज्यादा लोग भर-भर के नमक खा रहे हैं. इस बिगड़ी सेहत का पहली बार खुलासा हुआ था कोरोना काल में जब अच्छे-खासे खाते-पीते लोग टपाटप मर रहे थे. उधर गांव का गरीब कंधे पर बच्चा और सिर पर गृहस्थी उठाए हजार किलोमीटर का पैदाल सफर तय कर रहा था. कोरोना काल में एक काम और हुआ. सोशल मीडिया पर लोग खूब एक्टिव हुए. यहां तरह-तरह का ज्ञान मिलने लगा. फैशन से शुरू होकर बात कब पूजा-पाठ विधि और सेहत तक जा पहुंची किसी को भनक ही नहीं लगी. एक से बढ़कर एक टोटका पैदा किये जाने लगे. कोई सिर के बाल घने-लंबे-काले करने का नुस्खा देता तो कोई चमकदार चेहरे का राज बताता. कोई पेट की चर्बी कम करने का गुरूमंत्र देता तो कोई अंग्रेजी के शब्दों के घालमेल के साथ ऐसा ज्ञान झाड़ता कि लोग उनके मुरीद हो जाते. चिकित्सकों से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक ने लोगों को समझाने की बहुत कोशिश की पर फैंसी हेल्थ प्रोडक्ट की तरफ लोगों का आकर्षण कम होने की बजाय बढ़ता चला गया. एक तरफ सोशल मीडिया इसके लिए माहौल बनाता और दूसरी तरफ चतुर व्यापारी इससे मिलते-जुलते प्रॉडक्ट ले आते. “घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध”. यह कोई मजाक में कही गई बात नहीं है. हमारी सोच ऐसी ही है कि हम स्वयं विदेश भले न जा पाएं पर फारेन रिटर्न ज्ञान की देश में बहुत पूछ है. विवेकानंद यदि शिकागो न जाते तो शायद उन्हें भी किसी ने स्वीकार न किया होता. महर्षि महेश योगी और ओशो रजनीश को भी पहले विश्व ने अपनाया. योग भारतीय जनजीवन का हिस्सा रहा है. पर जब से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा हुई है, इसे भी पंख लग गए हैं. गांधी और नेहरू भी विदेश में रहकर आए थे. वे भारत को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखते थे, इसलिए दोनों में घनिष्टता थी. बहरहाल, यहां बात हो रही थी फॉरेन रिटर्न ज्ञान की. सोशल मीडिया पर बिखरे मुफ्त ज्ञान को लेकर देसी जानकारों ने भी कई बार चेतावनी दी, समझाने बुझाने की कोशिश भी की पर उनकी आवाज “नक्कारखाने में तूती” बनकर रह गई. पर शायद उनकी अड़ियल समझ में भी अब बात आ जाए क्योंकि अब फॉरेन में इसकी स्टडी हुई है. ‘माई फिटनेस पाल’ पोर्टल और डबलिन सिटी यूनिवर्सिटी द्वारा किये गए शोध के अनुसार 57 प्रतिशत लोग आज सोशल मीडिया पर दी गई जानकारी को सच मानते हैं. शोध में यह भी सामने आया है कि स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े 98 प्रतिशत वीडिया बकवास होते हैं. लोग इन्हें फॉलो कर रहे हैं और पहले से भी कहीं ज्यादा बीमार हो रहे हैं.

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