बेल्जियन (Belgian) में एक शख्स को शराब पीकर गाड़ी चलाने के शक में पकड़ा गया. बाद में जब उसकी जांच हुई तो पुलिस वाले भी दंग रह गए. शख्स को सारे आरोपों से बरी कर दिया गया. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेडिकल जांच में पाया गया कि उस शख्स को ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम (ABS) नाम की दुर्लभ बीमारी है. इस बीमारी से पीड़ित इंसान के शरीर में अपने आप अल्कोहल बनने लगती है और वह नशे जैसा दिखाई देता है. रॉयटर्स के मुताबिक आरोपी के वकील एंसे गेशक्वीयर ने बताया कि यह संयोग है कि उनका क्लाइंट शराब की फैक्ट्री में काम करता है, लेकिन कम से कम 3 मेडिकल एग्जामिनेशन में पता लगा कि उसे एबीएस नाम की बीमारी है.
क्या है ये बीमारी?
डॉक्टरों के मुताबिक ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम (ABS) को गट फर्मेंटेशन सिंड्रोम (GFS) भी कहते हैं, जो बहुत दुर्लभ है. इस बीमारी से पीड़ित मरीज की जठराग्नियों में मौजूद एक खास फुंगी, कार्बोहाइड्रेट्स को माइक्रोबैक्टीरिया फर्मेंटेशन के जरिये अल्कोहल में बदल देती हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के स्कूल ऑफ मेडिसिन के मुताबिक एबीएस एक दुर्लभ बीमारी है. पिछले 50 साल से ज्यादा वक्त से मेडिकल साइंस को इसकी जानकारी है, पर अब भी इसके बारे में बहुत सीमित जानकारी उपलब्ध है.
क्यों होता है ABS सिंड्रोम?
डॉक्टरों के मुताबिक जब छोटी आंत में कुछ फर्मेंटेशन वाले सूक्ष्मजीवों, विशेष रूप से सैक्रोमाइसेस सेरेविसिया जैसे यीस्ट का असंतुलन हो जाता है या ये बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं, तो एबीएस सिंड्रोम की वजह बनते हैं. यह असंतुलन, कार्बोहाइड्रेट को फर्मेंट कर इथेनॉल में बदल देता है, जिससे नशा जैसे प्रभाव पैदा होता है. डॉक्टर कहते हैं कि अमूमन ABS का पता वयस्क होने पर ही लगता है.किसे ज्यादा खतरा?
ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम (ABS) को गट फर्मेंटेशन सिंड्रोम (GFS) किसी भी लिंग या उम्र के व्यक्तियों को चपेट में ले सकता है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक डायबिटीज, मोटापा, पहले से आंत की बीमारी से जूझ रहे इंसान और कमजोर इम्युनिटी वालों को इस बीमारी का ज्यादा खतरा है. ऐसे व्यक्ति, जिन्हें अनुवांशिक तौर पर एडीएच (अल्कोहल डिहाइड्रोजनेज) और एएलडीएच (एल्डिहाइड डिहाइड्रोजनेज) है, उन्हें इथेनॉल पचाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है. ये दो ऐसे फैक्टर हैं, जो ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम को बढ़ावा देने में मदद करते हैं.
क्या हैं इस सिंड्रोम के लक्षण?
ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम (ABS) का लक्षण बिल्कुल शराब के नशे जैसा ही है. खून में अल्कोहल का स्तर बढ़ जाता है. इसके अलावा बोलने में कठिनाई, भ्रम की स्थिति और जुबान लड़खड़ाने लगती है. त्वचा लाल हो जाती है. कुछ मरीजों को सूजन, पेट फूलना और दस्त जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण भी सकते हैं.
कैसे लगा सकते हैं पता?
अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को अल्कोहल सेवन के बगैर नशे जैसा अनुभव होता है यह ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम (ABS) का पहला क्लू है. अगला चरण है लैब टेस्ट. डॉक्टर कुछ बेसलाइन टेस्ट करवा सकते हैं. जैसे- मेटाबॉलिक प्रोफाइल, ब्लड अल्कोहल लेवल आदि. इसके अलावा यीस्ट ग्रोथ का पता लगाने के लिए मल परीक्षण भी करवा सकते हैं. अगर इससे पुष्टि नहीं होती है तो ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट करवा सकते हैं. इससे बीमारी पकड़ में आ जाती है.क्या है इस बीमारी का इलाज?
ऑटो ब्रिवरी सिंड्रोम (ABS) को कंट्रोल किया जा सकता है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सबसे पहले मरीज को अपनी डाइट और लाइफस्टाइल सुधारनी पड़ती है. खानपान में कार्बोहाइड्रेट और शुगर को कंट्रोल करना पड़ता है. कुछ मरीज ऐसे होते हैं, जो गंभीर होते हैं या जिनके शरीर में ज्यादा इथेनॉल प्रोड्यूस होता है, उन्हें एंटीफंगल दवाईयां और प्रोबायोटिक्स देना पड़ता है, यीस्ट या बैक्टीरिया का संतुलन बनाया जा सके. इसके अलावा यदि शख़्स को पहले से शुगर (Blood Sugar), मोटापा जैसी कोई दूसरी बीमारी है तो उसे भी कंट्रोल करने की जरूरत पड़ती है.