*आदर्श दलहन ग्राम योजना अंतर्गत मसूर फसल का समूह प्रदर्शन*
कवर्धा, दिसंबर 2025। कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा द्वारा आदर्श दलहन ग्राम योजना के अंतर्गत मसूर फसल की उन्नत कास्त तकनीक विषय पर कृषक संगोष्ठी सह आदान सामग्री वितरण कार्यक्रम का आयोजन 02 दिसंबर 2025 को किया गया। कार्यक्रम के अंतर्गत मसूर की उन्नत किस्म कोटा मसूर-4 का समूह प्रदर्शन किया जा रहा है। कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.पी. त्रिपाठी ने बताया कि कोटा मसूर-4 की खेती के लिए बलुई दोमट अथवा दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, सर्वाधिक उपयुक्त होती है। मसूर की बुवाई अक्टूबर-नवंबर माह में की जाती है तथा इसके लिए 30 से 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। खेत की तैयारी के समय सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। फसल में हल्की सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण एवं बीजोपचार आवश्यक है। झुलसा रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजेब या डाइथेन एम-45 (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करने की सलाह दी गई। वहीं, ठंड के मौसम में माहू की रोकथाम हेतु समय पर उचित उपाय अपनाने की आवश्यकता बताई गई।
विषय वस्तु विशेषज्ञ (सस्य विज्ञान) डॉ. बी.एस. परिहार ने बताया कि मसूर की खेती के लिए भारी एवं अम्लीय मिट्टी से बचना चाहिए। खाद एवं उर्वरक प्रबंधन के अंतर्गत बुवाई से पूर्व प्रति एकड़ 1 से 2 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालने तथा बुवाई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 40-50 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर देने की सिफारिश की गई। इंजी. टी.एस. सोनवानी, विषय वस्तु विशेषज्ञ (कृषि अभियांत्रिकी) ने बताया कि खरीफ फसल के बाद खेत की गहरी जुताई कर 2-3 बार कल्टीवेटर चलाकर खेत को समतल करना चाहिए। मध्य एवं उत्तर भारत में मसूर की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच उपयुक्त रहती है। कतार से कतार की दूरी 25-30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखना चाहिए। सिंचाई सुविधा होने पर बुवाई के 40-45 दिन बाद पहली हल्की सिंचाई करना लाभकारी होता है।
कबीरधाम जिले में लगभग 50 हेक्टेयर क्षेत्र में मसूर फसल के प्रदर्शन का लक्ष्य प्राप्त किया गया है। यह प्रदर्शन विकासखण्ड लोहारा के ग्राम कोसमंदा एवं विकासखण्ड पण्डरिया के ग्राम खैरवारकला में किया जा रहा है। योजना के दिशा-निर्देशानुसार कृषकों को उन्नत किस्म का प्रमाणित आधार बीज (10 वर्ष के भीतर की अवधि का) मसूर किस्म कोटा मसूरदृ4, साथ ही बीजोपचार हेतु पी.एस.बी. कल्चर का वितरण किया गया। कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदर्शन पूर्व कृषकों को संगोष्ठी के माध्यम से मसूर की वैज्ञानिक पद्धति की संपूर्ण जानकारी प्रदान की गई। इस अवसर पर सैकड़ों कृषकों ने सहभागिता कर उन्नत तकनीकों की जानकारी प्राप्त की।





