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सुप्रीम कोर्ट ने पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करने वाले सीआईएएसफ कर्मी की बर्खास्तगी बहाल की

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऐसे नियम बल के सभी सदस्यों के लिए अनुशासन, सार्वजनिक विश्वास और सत्यनिष्ठा के उच्चतम मानकों को बनाए रखने की संस्थागत आवश्यकता पर आधारित हैं।सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में कार्यरत एक व्यक्ति पर अनुशासनात्मक कार्यवाही के परिणामस्वरूप लगाए गए सेवा से बर्खास्तगी के दंड को बहाल कर दिया, क्योंकि उसने अपनी पहली पत्नी के रहते हुए दोबारा शादी कर ली थी।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति विपुल एम पंचोली की पीठ ने कहा कि कानून के उल्लंघन से होने वाली असुविधा या अप्रिय परिणाम कानून के प्रावधान को कमतर नहीं कर सकते। उच्चतम न्यायालय ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अनुशासनात्मक प्राधिकारी को सजा कम करने का आदेश दिया गया था।

केंद्र और अन्य द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर पीठ ने अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने उल्लेख किया कि संबंधित व्यक्ति ने जुलाई 2006 में सीआईएसएफ में कांस्टेबल के रूप में सेवा देना शुरू किया था और उसकी पत्नी ने एक लिखित शिकायत में और बाद में पूछताछ के दौरान अधिकारियों को सूचित किया था कि उसने मार्च 2016 में दूसरी शादी कर ली थी।

इसने कहा कि मामले में एक जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था और बाद में, अनुशासनात्मक, अपीलीय और पुनरीक्षण अधिकारियों ने जीवित जीवनसाथी के रहते हुए दूसरी शादी करने के कारण उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद मामला उच्च न्यायालय में गया जहां एकल न्यायाधीश का मत था कि सेवा से ‘बर्खास्तगी’ के बजाय, उसे सेवा से ‘हटाना’ अधिक उचित होगा और इसलिए उन्होंने मामले को संबंधित प्राधिकरण को वापस भेज दिया।

इसके बाद अधिकारियों ने खंडपीठ से संपर्क किया, जिसने मामले को उचित दंड लगाने के लिए संबंधित प्राधिकारी को वापस भेज दिया। शीर्ष अदालत ने अपील पर सुनवाई करते हुए प्रासंगिक नियमों का उल्लेख किया, जिनमें वे नियम भी शामिल हैं जो बल में भर्ती और उन शर्तों का प्रावधान करते हैं जिनके कारण किसी भर्ती को अयोग्य घोषित किया जा सकता है।पीठ ने कहा, ‘‘यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ऐसे नियम बल के सभी सदस्यों के लिए अनुशासन, सार्वजनिक विश्वास और सत्यनिष्ठा के उच्चतम मानकों को बनाए रखने की संस्थागत आवश्यकता पर आधारित हैं।’’ उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए, पीठ ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी के उन निष्कर्षों को बहाल कर दिया, जिनकी पुष्टि अपीलीय और पुनरीक्षण प्राधिकारियों द्वारा की गई थी।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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