बेगूसराय: प्रदेश में बड़ी संख्या में किसान अपनी आय का मुख्य जरिया पशुपालन को मानते हैं. दुधारू पशुओं की सेहत और दूध उत्पादन पर ही किसानों की कमाई निर्भर करती है. लेकिन जैसे ही रवि मौसम आता है, खासकर दिसंबर के महीने में हरे और पौष्टिक चारे की कमी के कारण दूध उत्पादन घटने लगता है. इसका सीधा असर पशुपालकों की आमदनी पर पड़ता है. ऐसे में अगर सही किस्म का चारा और उसे खिलाने का सही तरीका अपनाया जाए, तो इस समस्या से काफी हद तक निजात मिल सकती है.
पशु वैज्ञानिक डॉ. विपिन के अनुसार, रवि मौसम में किसान अपने खेतों में बरसीम की उन्नत किस्में उगाकर दूध उत्पादन को बढ़ा सकते हैं. इसमें बीआर-43, वरदान और मस्काईसी प्रजाति प्रमुख हैं. ये सभी किस्में न केवल स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि पोषण से भरपूर भी होती हैं. बरसीम में लगभग 20 प्रतिशत तक प्रोटीन पाया जाता है. इसके अलावा इसमें फास्फोरस और कैल्शियम की भी पर्याप्त मात्रा होती है, जो दुधारू पशुओं की हड्डियों को मजबूत बनाने के साथ-साथ दूध उत्पादन बढ़ाने में मदद करती है. यही वजह है कि इसे भारत में रवि मौसम की सर्वोत्तम चारा फसलों में गिना जाता है.
बुआई का सही समय और सावधानी
बरसीम की बुआई नवंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर दिसंबर के पहले या दूसरे सप्ताह तक की जा सकती है. सही समय पर बुआई करने से चारे की गुणवत्ता बेहतर होती है और उत्पादन भी अच्छा मिलता है. हालांकि, इसे खिलाते समय किसानों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. विशेषज्ञों के अनुसार, बरसीम को कभी भी सीधे पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए. इसके साथ कम से कम 25 प्रतिशत भूसा मिलाना जरूरी है, ताकि अफरा (ब्लोट) जैसी बीमारी से बचा जा सके.किसानों के लिए फायदे
संतुलित मात्रा में बरसीम खिलाने से पशुओं की सेहत बेहतर रहती है, दूध की मात्रा बढ़ती है और दूध की गुणवत्ता में भी सुधार होता है. इससे पशुपालकों की आमदनी में सीधा इजाफा होता है.अच्छी बात यह है कि बरसीम के बीज बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं और इसकी कीमत करीब 200 रुपये प्रति किलो है.कुल मिलाकर, रवि मौसम में अगर किसान सही किस्म का चारा चुनें और वैज्ञानिक तरीके से पशुओं को खिलाएं, तो दूध उत्पादन में गिरावट की चिंता खत्म हो सकती है.बरसीम जैसी उन्नत चारा फसल पशुपालकों के लिए न सिर्फ सेहतमंद विकल्प है, बल्कि आमदनी बढ़ाने का भरोसेमंद जरिया भी साबित हो सकती है.





