-दीपक रंजन दास
मान्यता है कि हनुमत कृपा से न केवल सभी प्रकार के संकट टल जाते हैं बल्कि बिगड़े कार्य भी बन जाते हैं। हनुमानजी साढ़े 85 लाख साल पहले त्रेतायुग में प्रकट हुए और तब से आज तक पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। हनुमानजी की पूजा का कोई विशेष विधि विधान भी नहीं है। यदि आप भक्त हैं और सदैव उनका नाम लेते रहते हैं तो हनुमानजी की कृपा हमेशा आपपर बनी रहती है। उन्हें श्रीरामजी का नाम भी बहुत प्यारा है इसलिए राम-राम और सीता-राम कहने वालों पर भी हनुमानजी की कृपा बनी रहती है। हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए लोग हनुमानाष्टक, हनुमान चालीसा और सुन्दरकाण्ड का पाठ भी करते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि हनुमानजी की कृपा पाने का असली तरीका क्या है? इसके लिए हमें हनुमानजी के जीवन दर्शन पर गौर करना होगा। हनुमानजी अत्यंत बलशाली थे पर उनमें वैसी कोई उत्कट महत्वाकांक्षा नहीं थी जैसी रावण या बाली में थी। उन्होंने स्वयं को पूरी तरह से रामकाज के प्रति समर्पित कर दिया। स्वयं प्रभु श्रीराम के पास भी कोई उत्कट महत्वाकांक्षा नहीं थी। उन्होंने किष्किंधा के राजा को पराजित किया पर स्वयं राज करने की बजाय सिंहासन सुग्रीव को सौंप दिया। रावण को पराजित करने के बाद उन्होंने लंका पर राज नहीं किया बल्कि विभीषण का राजतिलक कर राजपाट उसे सौंप दिया। इस तरह से वो बिना मालिक बने ही दो शक्तिशाली राज्यों के लिए पूजनीय हो गए। यही गुण हनुमानजी के थे। किष्किंधा का राजा बने बिना ही वे सभी वानरों के लिए अग्रगण्य हो गये, बिना सिंहासन पर बैठे भी श्रीराम के जैसे पूजनीय हो गए। दरअसल, जिस तरह यह सत्य है कि सभी राजा नहीं हो सकते, उसी तरह यह भी सत्य है कि सभी राजा सुखी नहीं होते। सुख और दुख अपनी सोच का परिणाम हैं। हनुमानजी की भक्ति करने वाला जब स्वयं को उनके हाथों में सौंप देता है तो वह जीवन से संतुष्ट हो जाता है। जो मिलता है उसे प्रसाद समझता है और जो नहीं मिला उसके लिए प्रयत्न करता रहता है। आज सारी आपाधापी इसलिए है कि जीवन में संतोष नहीं है। जो है उसके लिए ईश्वर का शुक्रगुजार होने की बजाय जो नहीं है उसे प्राप्त करने के लिए लोग दिन भर मारे-मारे फिर रहे हैं। इसके लिए उधार ले रहे हैं, अपराध कर रहे हैं। इसलिए जीवन में कष्ट बढ़ रहा है। अत: जो है, जितना है उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद करें और उसे बेहतर बनाने के लिए पुरुषार्थ करते रहें। हनुमानजी मंगल करेंगे।
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