-दीपक रंजन दास
बचपन में एक कहानी पढ़ी थी जिसमें एक मूर्ख का वर्णन किया गया था। वह कथित मूर्ख आदमी लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ जाता है। फिर वह उसी शाख को काटने लगता है जिसपर वह बैठा होता है।शाख कटते ही वह उसके साथ नीचे आ गिरता है। शाख उसके ऊपर गिरती है और उसके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं। आज लगता है कि वह कहानी एक कटाक्ष थी। कहानी का मतलब लोगों को यह समझाना था कि वह उन चीजों के साथ ही खिलवाड़ करने लगता है जिसपर उसकी जिन्दगी चलती है। भारत भूमि पर रहने वालों को जीवन उपयोगी तीन चीजें इफरात मिली हुई थीं। शुद्ध हवा, पानी और वनस्पति।यही कारण है कि हमारी संस्कृति में इन तीनों चीजों को भरपूर सम्मान देते हुए हमने उनका सत्यानाश कर दिया। आबादी कम थी और प्राकृतिक संसाधन ज्यादा इसलिए कभी इनके संरक्षण की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं गया। सबसे पहले हमने अपने पानी की स्रोतों का सत्यानाश किया। बर्फिले पहाड़ों से उतरती सदानीरा स्वच्छ नदियों को हमने डस्टबिन बना दिया। हमने इन नदियों को नाला समझ लिया जिसमें हम कूड़ा करकट डालते रहेंगे और वो उसे बहाकर हमसे दूर ले जाएगी। हमारी समझ में स्वच्छता का यही मतलब है। अर्थात कचरा आंखों के सामने से हटा तो हम मान लेते हैं कि उसका निष्पादन हो गया। इसलिए कचरा कम करने की ओर कभी हमारा ध्यान ही नहीं गया। नदियां अब पहले की तरह नहीं बहतीं। चेक डैम, स्टॉप डैम, बराज और बांध जैसी संरचनाएं उसका रास्ता रोके खड़ी हैं।सतही जल को नष्ट करने के बाद हमने भूगर्भीय जल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन प्रारंभ कर दिया। अब इस पानी को भी पीने के योग्य बनाने के लिए आरओ, यूवी और न जाने कौन-कौन से फिल्टर से छानना पड़ रहा है। तेल जलाकर हमने इतना धुंआ पैदा किया कि हवा सांस लेने लायक नहीं रही। रहे भी तो कैसे? प्रकृति हवा का शोधन भी करती थी। पेड़-पौधे हवा में ऑक्सीजन भी घोलते हैं। जंगलों को इसीलिए प्रकृति का फेफड़ा भी कहा गया है। जंगलों की लगातार हो रही कटाई के कारण आज देश संकट में है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2000 से अब तक 23.3 लाख हेक्टेयर ट्री कवर खत्म हो गया है। अर्थात प्रतिवर्ष एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा जंगल नष्ट हुए हैं। संस्था सैटेलाइट डेटा और अन्य रि-सोर्सेज से रियल टाइम में जंगलों के घटने पर नजर रखती है। 2002 से 2023 के बीच में देश का ह्यूमिड प्राइमरी फॉरेस्ट एरिया 4.14 हेक्टेयर कम हो गया। इस अवधि में खत्म हुए कुल ट्री कवर का यह 18 परसेंट है। जिस मनुष्य को अपने ही फेफड़ों की चिंता नहीं वह प्रकृति के फेफड़ों की चिंता करता भी तो क्यों? इसलिए वह उसी शाख को काट रहा है जिसपर बैठा है।
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