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बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ ‘पॉक्सो’ के तहत केस तो बंद हो गया लेक‍िन आगे और क्‍या हो सकता है

सोमवार 26 मई को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी के नेता और भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ दर्ज ‘पॉक्सो’ का केस बंद कर दिया. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस द्वारा केस बंद करने की रिपोर्ट मंज़ूर कर ली.

बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ महिला पहलवानों ने आरोप लगाए थे कि कुश्ती संघ का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने कुछ महिला पहलवानों का यौन शोषण किया था. इस स‍िलस‍िले में दो एफ़आईआर या शिकायतें दर्ज की गई थीं.

प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ़्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेंसेज़ यानी ‘पॉक्सो’ नाबालिगों के साथ होने वाले यौन शोषण के मामले में सज़ा देने वाला क़ानून है.

साल 2023 में एक नाबालिग़ पहलवान के पिता ने पुलिस में एक एफ़आईआर दर्ज करवाई थी जिसमें उन्होंने बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाया था.बृजभूषण शरण सिंह के ख़‍िलाफ़ दूसरा केस अभी भी कोर्ट में चल रहा है. इस केस में अभियोजन पक्ष अपने गवाह और सबूत पेश कर रहा है.

आइए समझते हैं क‍ि बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ दोनों मामले क्‍या हैं. सबसे पहले किसी भी अपराध की क़ानूनी प्रक्रिया समझने की कोश‍िश करते हैं.

पहला क़दम होता है, किसी व्यक्ति का एक एफ़आईआर दर्ज करवाना. इसके बाद पुलिस उस शिकायत की तहक़ीक़ात करती है. तहक़ीक़ात करने के बाद पुलिस अपनी रिपोर्ट फ़ाइल करती है.

इसे ‘चार्जशीट’ कहा जाता है. चार्जशीट में पुलिस अभियुक्त के ख़‍िलाफ़ सबूतों की व्याख्या करती है.

अगर पुलिस को अभियुक्त के ख़िलाफ़ सबूत नहीं मिलते हैं तो वह अपनी रिपोर्ट में कहती है कि केस ख़ारिज होना चाहिए.

ये चार्जशीट फिर कोर्ट जाती है. कोर्ट के सामने दोनों पक्षों के वकील शुरुआती बहस करते हैं. अगर पुलिस ने मामला रद्द करने की रिपोर्ट दायर की है तो अदालत के पास तीन रास्ते होते हैं.

या तो वह इस रिपोर्ट को मंज़ूर कर केस बंद कर सकती है. अगर अदालत को लगता है क‍ि पुलि‍स के पास जो भी सबूत हैं, उनमें दम है तो वह मुक़दमा आगे बढ़ाने को कह सकती है.

इसके अलावा, अगर अदालत को लगे कि पुलिस की जाँच में कुछ कमी रह गई है तो वे पुलिस को इस मामले की और जाँच करने को कह सकती है.

अगर पुलिस ने अपनी तहक़ीक़ात में अभियुक्त के ख़िलाफ़ कुछ सबूत पाए हैं तो अदालत वकीलों के बहस के बाद केस में इस तरह से आगे बढ़ती है.

अगर उसे लगे कि अभ‍ियुक्‍त के ख़िलाफ़ पुलिस द्वारा पेश किए सबूत मज़बूत नहीं हैं तो वह अभियुक्त को ‘डिस्चार्ज’ कर सकती है यानी केस ख़त्म कर सकती है.

अगर अदालत को पहली नज़र में सबूत सही लगे तो अभियुक्त के ख़िलाफ़ किन धाराओं में केस चलेगा, यह तय करती है. क़ानून की भाषा में इसे ‘चार्ज फ़्रेम’ करना कहते हैं.

एक बार अभियुक्त के ख़‍िलाफ़ ‘चार्ज फ़्रेम’ हो गए तो मुक़दमा शुरू होता है.

दोनों पक्ष अपने सबूत और गवाह पेश करते हैं. इन सब को सुनने और सारे सबूतों को क़रीब से देखने के बाद अदालत फ़ैसला देती है कि अभियुक्त दोषी है या निर्दोष.

अप्रैल 2023 में एक नाबालिग़ पहलवान के पिता ने पुलिस में दर्ज शिकायत में कहा था कि बृजभूषण शरण सिंह ने उनकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया है.

पिता का आरोप था कि जब उनकी बेटी ने बृजभूषण शरण सिंह के यौन शोषण से बचने की कोशिश की तो भारतीय कुश्ती महासंघ ने उनसे भेदभाव करना शुरू कर दिया.

इससे उनके कुश्ती करियर पर भी बुरा असर पड़ने लगा.

पुलिस ने इस मामले में पॉक्सो की धारा 10 (गंभीर लैंगिक हमला), भारतीय दंड संहिता की धाराएँ 354 (महिला की लज्जा भंग करना), 354ए (लैंगिक उत्पीड़न) और 354डी (कि‍सी का पीछा करना) के तहत एफ़आईआर दर्ज क‍िया.

हालाँकि, बृजभूषण शरण सिंह ने इन आरोपों को ग़लत बताया

Manoj Mishra

Editor in Chief

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