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Gustakhi Maaf: मारो भी और सबूत भी दो

-दीपक रंजन दास
क्या गजब का देश है भाई। पड़ोसी देश की जमीन से आतंकी हमला होता है। सेना मुंहतोड़ जवाब देती है। इसके बाद पड़ोसी मुल्क हमारे सैन्य ठिकानों पर हमला करता है तो हम उसकी खाट खड़ी कर देते हैं। कायदे से तो इसपर जश्न होना चाहिए। पर हुआ ठीक उलटा। पड़ोसी देश अपनी करारी हार को जीत मानकर जश्न मनाता रहा और यहां हम अपने वीर सपूतों से सबूत मांगते रहे। मजबूर सेना को एक बार फिर दुश्मन मिसाइलों को मार गिराने और अपने इलाके में पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइलों का मलबा दिखाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है? जिन्हें भी लगता है कि सीज फायर के बाद दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य हो गए हैं, वो निरे मूर्ख हैं। बेशक सीमा पर औऱ सीमा पार के खेतों में एक बार फिर से गतिविधियां प्रारंभ हो चुकी हैं। परिवहन सेवा पटरी पर लौट आई है पर खतरा अभी टला नहीं है। कई राज्यों की पुलिस सेना के साथ मिलकर ऐसे लोगों की तेजी से पहचान करने में जुटी है जिनका पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह का कोई भी संबंध हो। ऐसे लोगों की निगरानी की जा रही है। संदिग्ध लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है। गिरफ्तारियां हो रही हैं। जहां-जहां दुश्मन सामने से हमला कर रहा है वहां-वहां उसे सबक भी सिखाया जा रहा है। यह सारी कवायद इसलिए कि यह कोई साधारण युद्ध नहीं है। जिस तरह का हमला पुलवामा या पहलगाम में किया गया, वैसे हमला देश के किसी भी हिस्से में कभी भी हो सकता है। ऐसे हमलों को रोकना आसान नहीं है। स्थिति तब और भी विकट हो जाती है जब हम यह पाते हैं कि चंद हथियारों के बल पर देश की शांति व्यवस्था को किस तरह से छिन्न-भिन्न किया जा सकता है। लालची, स्वार्थी और बेईमान हर जगह हो सकते हैं। पुलिस में भी और सेना में भी। माओवादी नक्सलियों से लेकर पूर्वोत्तर के हिंसक आंदोलनकारियों तक के पास उपलब्ध असलहा इसकी पुष्टि ही करते हैं। इसे रोकने के लिए नागरिकों का भी सक्रिय सहयोग चाहिए होता है। पर यहां तो पूरा दृश्य ही उलटा हुआ पड़ा है। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी अपने सांसद से इसलिए नाराज है कि ऑपरेशन सिन्दूर को लेकर वह राष्ट्र के साथ खड़ा नजर आया। उसे मिर्ची और भी जोर की लगी क्योंकि इस सांसद को अमेरिका जाने वाले डेलीगेशन का मुखिया बनाया गया। ऐसे ऐसे खूबसूरत यूट्यूबर धरे जा रहे हैं जो सोशल मीडिया पर संवेदनशील जानकारियां साझा करते रहे हैं। आखिर यह सब क्यों चलता रहा है? सीधी सी बात है कि देश की सुरक्षा को लेकर हम संवेदनशील नहीं हैं। हमें लगता है कि यह सेना और सरकार का काम है। हमारा यही भाव राष्ट्र को कमजोर करता है। और उकसाने वाली बातें इस आग में घी ही डालती हैं।

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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