-दीपक रंजन दास
कुछ लोग होते हैं जमाने में जिन्हें लगता है कि बेइज्जत होंगे तो क्या नाम न होगा। लगता है कांग्रेस भी उसी रास्ते पर चल पड़ी है। ऑपरेशन सिन्दूर के बाद पाकिस्तान समर्थित एवं प्रायोजित आतंकवाद पर अपनी बात विश्व बिरादरी के सामने रखने के लिए भारत सरकार सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडलों को अंतिम रूप दे रही है। इसके लिए चुन-चुन कर ऐसे सांसदों को रखा गया है जो अपनी बात रखने की कला में निपुण हैं। इसीलिए इन प्रतिनिधिमंडलों में सभी दलों के ऐसे सांसदों को लिया गया है जो पार्टी लाइन से ऊपर उठकर देश की बात रख सकें। इनमें कांग्रेस सांसद शशि थरूर का भी नाम है। उन्हें एक डेलीगेशन का नेतृत्व सौंपा गया है। कांग्रेस को तो खुश होना चाहिए कि उसका एक प्रखर नेता किसी डेलीगेशन का नेतृत्व कर रहा है। उसे शशि थरूर पर गर्व होना चाहिए। पर उसने यह मौका सौतिया डाह के लिए चुना। कांग्रेस अब खुद लोगों को बता रही है कि थरूर का नाम तो उसने दिया ही नहीं था। उसने तो चार ऐसे लोगों का नाम भेजा था जिससे कांग्रेस नेतृत्व को कोई खतरा नहीं था। वो ऐसे लोग थे जिनका नाम भी बहुत कम लोगों ने ही सुना होगा। अपनी जगहंसाई कराने की कोई जरूरत नहीं थी। पहली बात तो यह कि यह दल किसी पिकनिक पर नहीं जा रहा है। पहले ऐसा होता रहा होगा पर अब भारत जहां भी जाता है, अपना झंडा गाड़कर आता है। इसके लिए दमदार वक्ता चाहिए। दूसरी बात यह कि ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान थरूर मुखर थे। उन्होंने बड़ी मजबूती के साथ अपनी बात रखी थी। तब भी कांग्रेस ने यही कहा था कि थरूर ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी है। तीसरी बात यह कि भारत सरकार को किसी दल से सांसदों की सूची मांगने की जरूरत ही नहीं थी। संसद में बैठा प्रत्येक व्यक्ति देश की सरकार का हिस्सा है – चाहे वह पक्ष में हो या विपक्ष में। सरकार ने एक औपचारिकता के तहत पार्टियों से नाम मांगे थे। यदि कांग्रेस ने थरूर का नाम भेज दिया होता तो बात वहीं खत्म हो जानी थी। यहां इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है कि सरकार ने एआईएमआईएम नेता असद उद्दीन ओवैसी को भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया है। इसके अलावा इन प्रतिनिधिमंडलों में जदयू के संजय कुमार झा, डीएमके से कनिमोझी करुणानिधि, एनसीपी (एसपी) की सुप्रिया सुले और शिवसेना (शिंदे गुट) के श्रीकांत एकनाथ शिंदे को शामिल किया गया है। इससे पहले 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का पक्ष रखने के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में डेलिगेशन को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग भेजा था। जब सवाल वैश्विक मंच पर अपनी बात रखने का हो तो हमें अपने सबसे अच्छे वक्ताओं को भेजना चाहिए। इतनी सी बात को कांग्रेस समझ ही नहीं पाई।

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