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Gustakhi Maaf: एक लड़ाई घर के भीतर भी

-दीपक रंजन दास
भारत और पाकिस्तान के बीच सिर्फ सीज फायर हुआ है। तनाव की जड़ें इससे कहीं ज्यादा गहरी हैं। भारत अपनी बात अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने रखने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल तैयार कर रहा है। इसमें भाजपा के अलावा कांग्रेस, बीजेडी, टीएमसी, डीएमके से लेकर एआईएमआईएम तक के सांसद शामिल होंगे। इस प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस के शशि थरूर और एआईएमआईएम के असदउद्दीन ओवैसी के नाम भी शामिल हैं। यह प्रतिनिधिमंडल कई देशों का दौरा करेगा और वहां लोगों को भारत में पाक प्रायोजित आतंकवाद के बारे में विस्तार से बताएगा। इस बीच खबर है कि पाकिस्तान ने भारत को अस्थिर करने के लिए खालिस्तान समर्थित आतंकवाद को सक्रिय करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। यह एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है जिसकी जड़ें कनाडा से लेकर अमेरिका तक फैली हुई हैं। वक्त है अब युद्ध के लिए खुद को तैयार करने का। ऐसी लड़ाइयां केवल मजबूत सैन्य शक्ति के सहारे नहीं जीती जा सकतीं। इसके लिए प्रत्येक नागरिक को अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी। यही वह मोर्चा है जहां एक विशाल देश कमजोर पड़ जाता है। जब कुछ समझ में नहीं आता तो अधिकांश लोग कोई टिप्पणी करने से चुप रहना बेहतर समझते हैं। यह अच्छा भी है। पर कुछ लोगों को अनावश्यक टिप्पणी करने की आदत सी पड़ी हुई है। ऐसे लोगों का एकमात्र मकसद सुर्खियां बटोरना होता है। वे अपनी चुटीली बातों से लोगों का ध्यान आकर्षित करते रहते हैं। जाने-अनजाने में ऐसे लोग अवाम में खलबली मचा देते हैं जिसके नतीजे अकसर राष्ट्र को नुकसान पहुंचाते हैं। जिम्मेदार मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के साथ ही अब सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स भी इस भीड़ का हिस्सा हैं। पुलिस अकसर इनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। इनके खिलाफ मामले बनते भी हैं तो बेहद लचर और कमजोर किस्म के। इनकी गिरफ्तारियां भी मुश्किल से ही होती हैं खासकर अगर उनका संबंध डबल इंजन सरकार से हो। ताजा मामला मध्यप्रदेश के मंत्री शाह का है। वह तो अच्छा हुआ कि अदालत ने इस मामले में स्वयं संज्ञान लिया और पुलिस को ठोस कार्रवाई करने के आदेश दे दिये। पुलिस की अनिच्छा इस मामले में साफ-साफ जाहिर भी हुई। पर यहां सवाल अदालत के संज्ञान लेने या पुलिस के आत्मबल का नहीं है। सवाल एक जिम्मेदार नागरिक के फर्ज का है। अपने-अपने क्षुद्र स्वार्थों और छोटी सोच को दरकिनार करके एक राष्ट्र के रूप में उठ खड़ा होने का है। ऐसी कोई भी बात जो राष्ट्र को अस्थिर करती हो, अवाम को बांटती हो, किसी कौम के प्रति दुर्भावना से प्रेरित हो, राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाती है। आखिर हम इतिहास से सीख कब लेंगे। रामायण-महाभारत काल से लेकर आज तक जितनी भी लड़ाईयां हुई हैं उसमें घर के भेदी की बड़ी भूमिका रही है। हम इन से लड़ तो नहीं सकते पर इनकी संख्या कम करने की कोशिश जरूर कर सकते हैं। क्या हम इसके लिए तैयार हैं?

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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