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Gustakhi Maaf: भूकम्प के बीच दिखा वीरांगनाओं का साहस

-दीपक रंजन दास
म्यांमार में 28 मार्च को आए भूकम्प ने जहां भारी तबाही मचाई वहीं इंसानियत और स्वास्थ्य प्रदाता उद्योग का वह चेहरा भी दिखा गई जिसकी चर्चा कम ही होती है. इस भूकम्प की जद में थाईलैंड, चीन, भारत और बांग्लादेश के कुछ हिस्से भी आए थे. एक तरफ जहां तबाही की तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ बचाव कार्य और मानवता की मिसालें भी सामने आ रही हैं. चीन के यूनान प्रांत के रुइली शहर के अस्पताल में भी भूकम्प के तेज झटके महसूस किये गये. जब अस्पताल की दीवारें थरथरा रही थीं, पूरा भवन खतरनाक ढंग से झूल रहा था तब भी यहां की नर्सें और डॉक्टर मरीजों को बचाने की कोशिशें कर रहे थे. अपनी जान की परवाह किये बिना नर्सें नियोनेटल आईसीयू में दाखिल शिशुओं को संभाल रही थीं. मानवता का यह चेहरा अस्पताल के बाहर भी नुमायां हो रहा था. एक गर्भवती महिला की प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी तो चिकित्सकों की टीम उसे लेकर निकट के पार्क में पहुंची. वहां इंसानों का घेरा बनाकर प्रसव कराया. ऐसी अनेक मिसालें हैं जहां लोगों ने व्यक्तिगत सुरक्षा और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता किये बिना कर्त्तव्य को आगे रखा. 26/11 के नाम से एक घटना भारत में भी सुर्खियों में रही. 2008 में होटल ताजमहल मुम्बई में आतंकियों ने हमला बोल दिया था. चारों तरफ तड़ातड़ गोलियां चल रही थीं, आतंकवादी धमकियां दे रहे थे. तब ताजमहल होटल के स्टाफ ने अपनी जान की परवाह किये बिना सैकड़ों लोगों की जानें बचाईं. इनमें होटल के फ्रंट ऑफिस, प्रबंधकीय, किचन और फ्लोर स्टाफ सभी शामिल थे. ऐसी मिसालें औद्योगिक इकाइयों में, भूमिगत कोयला खदानों में भी मिलती हैं. देश की पुलिस चाहे जितनी भी बदनाम हो पर ऐसे किस्से सामने आते रहते हैं जब अदम्य साहस का परिचय देकर कोई एक अधिकारी या सिपाही किसी की जान बचा ले जाता है. दरअसल, सही मायने में देखें तो यही सच्ची वीरता है. शिवाजी, लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, नेताजी और उनके जैसे जांबाजों से धरती अटी पड़ी है. ऐसे लोग अपने अपने-स्थान पर वीरता के सर्वोच्च उदाहरण गढ़ रहे हैं. और कायरों की टोलियां झुण्ड बनाकर कभी सरकारी दफ्तरों पर, कभी अस्पतालों पर तो कभी इबादतगाहों और मंदिरों में तोड़फोड़ करती घूमती हैं. साहस की इसी गलत परिभाषा ने लोगों को उनके रास्ते से भटका दिया है. साहस स्थितियों का सामना करने में है. साहस दिल को बड़ा कर लोगों का अपराध क्षमा करने में है. सच्चा साहसी पुरुष धीर, गंभीर और बड़े दिल वाला होता है. कहते हैं बचाने वाला हमेशा मारने वाले से बड़ा होता है. यदि यही एक सीख को हमारे युवा साथी अपने दिल में बैठा लें तो देश से अपराध, आतंक और नफरत का चैप्टर हमेशा के लिए खत्म हो सकता है. जरूरत इस तरह के साहस का यशगान करने की है ताकि लोग कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित हों.

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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