देश दुनिया

पहाड़ का अमृत फल! स्वाद और औषधीय गुणों की है खान, सिरदर्द, बुखार और घाव भरने के लिए है रामबाण

नैनीताल: उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों की वादियों में कई दुर्लभ और औषधीय गुणों से भरपूर फल पाए जाते हैं. इन्हीं में से एक फल हिसालु है, जिसे पहाड़ का अमृत कहा जाता है. यह जंगली फल अपनी मिठास, स्वाद और औषधीय गुणों के कारण बेहद खास माना जाता है, लेकिन इसे सालभर नहीं, बल्कि केवल 3 महीने मार्च से मई तक ही देखा और चखा जा सकता है.

बता दें कि हिसालु फल का रंग पकने पर गहरा पीला या नारंगी हो जाता है. यह आकार में छोटा और हल्का खट्टा-मीठा होता है, जिसे खाने पर रसभरी जैसा स्वाद महसूस होता है. इसकी झाड़ियां पहाड़ी क्षेत्रों में जंगलों, सड़कों के किनारे और खेतों की मेढ़ों पर उगती हैं. उत्तराखंड के नैनीताल के आसपास के जंगलों में आजकल हिसालु बड़ी मात्रा में उगा हुआ हैउत्तराखंड के नैनीताल स्थित डीएसबी कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. ललित तिवारी बताते हैं कि हिसालु का वैज्ञानिक नाम रूबस इलिपासस (Rubus ellipticus ) है. यह एक छोटा, हल्का खट्टा-मीठा जंगली फल है, जिसका रंग पकने पर गहरा पीला या नारंगी हो जाता है. यह गुलाब परिवार का पौधा है. जो भारतीय उपमहाद्वीप, नेपाल, फिलीपींस, चीन में पाया जाता है. यह झाड़ीनुमा पौधा स्वाद में काफी हद तक रसभरी जैसा लगता है. इसे स्थानीय लोग ताजे फल के रूप में खाने के साथ-साथ शरबत और जैम बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. इसकी झाड़ियां पहाड़ी जंगलों, सड़कों के किनारे और खेतों की मेढ़ों पर आसानी से पाई जाती हैं.

औषधीय गुणों से भरपूर

प्रोफ़ेसर तिवारी बताते हैं कि हिसालु केवल स्वाद में ही बेहतरीन नहीं है, बल्कि यह कई औषधीय गुणों से भी भरपूर है. इसमें विटामिन-C, एंटीऑक्सिडेंट और अन्य पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार होते हैं. पारंपरिक चिकित्सा में इसे पेट से जुड़ी समस्याओं, सरदर्द, बुखार और घाव भरने के लिए उपयोग किया जाता है. यही वजह है कि पहाड़ी क्षेत्रों में इसे स्वास्थ्यवर्धक फल माना जाता है.

जल्द ही होगा विलुप्ति की कगार पर?

हिसालु की लोकप्रियता के बावजूद यह धीरे-धीरे दुर्लभ होता जा रहा है. जंगलों की कटाई और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव के कारण इसकी उपलब्धता में कमी देखी जा रही है. स्थानीय लोग इसे बचाने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन बढ़ते शहरीकरण और अनियंत्रित दोहन से इस अमृत तुल्य फल के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.

जानें स्थानीय लोगों की पहल

उत्तराखंड के नैनीताल और अन्य पर्वतीय इलाकों में स्थानीय लोग हिसालु को संरक्षित करने और इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहे हैं. कई स्वयंसेवी संगठन और किसान अब इसकी व्यावसायिक खेती पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. ताकि यह दुर्लभ फल आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रह सके. हिसालु न केवल पहाड़ों की सौगात है, बल्कि यह वहां के जीवन और संस्कृति का अहम हिस्सा भी है. इसकी औषधीय खूबियों और अनोखे स्वाद के कारण इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है. यदि इसके संरक्षण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में यह दुर्लभ फल सिर्फ कहानियों तक ही सीमित रह जाएगा.

Manoj Mishra

Editor in Chief

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button