हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। बता दें कि साल में कुल 4 नवरात्रि पड़ती है। जिसमें 2 गुप्त नवरात्रि और अन्य चैत्र और शारदीय नवरात्रि होती है। मार्च-अप्रैल में पड़ने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि कहते हैं। इसके साथ ही आश्विन मास में पड़ने वाली को शारदीय नवरात्रि कहते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के साथ चैत्र नवरात्रि आरंभ हो रही है, जो नवमी तिथि को समाप्त होगी। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा करने का विधान है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करने के साथ-साथ मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं चैत्र नवरात्रि का शुभ मुहूर्त, कलश स्थापना विधि, मंत्र, आरती सहित अन्य जानकारी…घटस्थापना या कलश स्थापना का मुहूर्त- 30 मार्च, रविवार को सुबह 06 बजकर 13 मिनट से प्रारंभ होगा और सुबह 10 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 50 मिनट तक
100 साल बाद नवरात्रि पर पंच ग्रही योग
बता दें कि चैत्र नवरात्रि के दौरान मीन राशि में शनि, सूर्य, बुध, शुक्र और राहु विराजमान रहेंगे, जिससे पंचग्रही राजयोग का निर्माण हो रहा है। बता दें कि ऐसा संयोग करीब 100 साल बाद बन रहा है। ऐसे में जातकों के जीवन में सुख-शांति, समृद्धि आएगी। इसके अलावा चैत्र नवरात्रि में सर्वार्थ सिद्ध, इंद्र, बुधादित्य, शुक्रादित्य, लक्ष्मी नारायण योग जैसे शुभ योगों का भी निर्माण हो रहा है।
चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना विधि (Chaitra Navratri 2025 Ghatasthapana Puja Vidhi)
- चैत्र नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इसके लिए सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी रखें और उसमें लाल रंग की वस्त्र डाल दें। इसके बाद इसमें मां दुर्गा की तस्वीर या फिर मूर्ति स्थापित कर दें।
- अब प्रथम पूज्य गणपति का ध्यान करके कलश स्थापना करें। इसके लिए पहले शुद्ध मिट्टी में थोड़े जौ मिला लें। इसके बाद चौकी के बगल में मिट्टी को रखें और इसके ऊपर मिट्टी या फिर पीतल के कलश के मुख में कलावा बांधे और फिर इसमें स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।
- इसके बाद इसमें जल, गंगाजल डाल दें और 2 लौंग, एक हल्दी की गांठ, एक सुपारी,थोड़ीदूर्वा और एक रुपए का सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रखकर मिट्टी, पीतल या स्टील के ढक्कन से बंद कर दें और उसके ऊपर चावल या फिर गेहूं भर दें। अगर आप कलश के ऊपर नारियल भी रख रहे हैं, तो उसमें स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर लाल कपड़ा लपेटकर कलावा से बांध दें। इसके बाद इसे रख दें।
- इसके बाद कलश और मां दुर्गा की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत का संकल्प ले लें। इसके बाद मां दुर्गा और शैलपुत्री मां का मनन करते हुए सफेद फूल, माला, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, सोलह श्रृंगार चढ़ाने के बाद फल और मिठाई आदि का भो लगाएं। इसके बाद घी का दीपक, धूप जलाने के साथ मां शैलपुत्री मंत्र, मां दुर्गा मंत्र स्तोत्र, कवच, मंत्र आदि का पाठ करने के अंत में आरती कर लें और अनजाने में हुई गलतियों के लिए माफी मांग लें।
चैत्र नवरात्रि घट स्थापना का षोडशोपचार पूजन (Chitra Navratri Ghatasthapana Shodashopachara Puja)
कलश के नीचे जौ और सप्तधान बिछाने का मंत्र
ओम धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्यो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि।। इस मंत्र को बोलते हुए सप्तधान और जौ को कलश की नीचे मिट्टी पर फैला दें।
कलश में जल भरने का मंत्र
कलश में जल भरते समय इस मंत्र को बोलना चाहिए। ओम वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्काभसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद।।
कलश की पूजा करते समय
ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः।। इसके बाद कलश पर एक फूल चढ़ा दें।
कलश में चंदन लगाते समय बोलें ये मंत्र
चंदन लगाते समय इस मंत्र को बोलें और फिर इस फूल को जल में अर्पित कर दें। ओम त्वां गन्धर्वा अखनस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः। त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत।।
कलश में सर्वौषधि डालने का मंत्र
कलश में सर्वोषधि डालने का मंत्र – ओम या ओषधी: पूर्वाजातादेवेभ्यस्त्रियुगंपुरा। मनै नु बभ्रूणामह ग्वंग शतं धामानि सप्त च।।
कलश पर पंच पल्लव रखने का मंत्र
आम पल्लव रखते हुए यह मंत्र बोले। ओम अश्वस्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता।। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्।।
कलश में सप्तमृत्तिका डालने का मंत्र
अब इसके बाद कलश में सात प्रकार की मिट्टी जिसे सप्तमृतिका कहते हैं डालें। ओम स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथाः।
कलश में सुपारी छोड़ने का मंत्र
अब आप कलश में एक सुपारी और पान छोड़ें और यह मंत्र बोलें। ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ग्वंग हसः।।
कलश में अब एक सिक्का रखें
कलश में अब आपको एक सिक्का चाहे वह सोने का हो, चांदी का हो वह छोड़ना चाहिए और यह मंत्र बोलना चाहए।
ओम हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।कलश को वस्त्र अर्पित करने का मंत्र
ओम सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः । वासो अग्ने विश्वरूप ग्वंग सं व्ययस्व विभावसो।। इस मंत्र को बोलते हुए आप एक लाल अथवा पीला कपड़ा कलश के गर्दन पर लपेट दें।
कलश के ऊपर चावल रखते समय बोलें ये मंत्र
ऊं पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत। वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज ग्वंग शतक्रतो।। इस मंत्र को बोलते हुए कलश के ऊपर चावल से भरा पात्र रख दें। फिर नारियल रखें।
कलश पर नारियल स्थपित करने का मंत्र
नारियल में स्वास्तिक लगाने के साथ लाल रंग के कपड़े या टून को कलावा से बांधते समय बोले ये मंत्र ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हसः।।
कलश में वरुण सहित सभी देवी देवताओं, तीर्थों का आह्वान
ओम तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ग्वंग स मा न आयुः प्र मोषीः। अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि। ओम भूर्भुवः स्वः भो वरुण, इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण। ‘ओम अपां पतये वरुणाय नमः।
अब कलश को भगवान गणेश मानकर पंचोपचार सहित पूजा करें। इसके बाद कलश में सिक्का सहित अन्य चीजें डाल दें।
मां दुर्गा के मंत्र( Mantras of maa Durga)
1- ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।2- या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।3- या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।5- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।